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5/05/2022

पुराण की कथा # puran ki katha

   
                           
   

पुराण की कथा # puran ki katha


हजार वर्ष तक अंधकासुर को महादेव ने त्रिशूल में लटकाकर रखा, बाद में उसे बना लिया अपना प्रधान गण- अंधकासुर कथा अंतिम भाग


पार्वतीजी के पुकारने पर महादेव ने हुंकार भरी. अंधक को भय हुआ कि वह अकेला है, कहीं शिवगण घेरकर उसपर आक्रमण न करें इसलिए वह फिर से युद्धभूमि मंदार क्षेत्र में लौट गया.


अंधक लौटकर आया तो उसने देखा कि शिवगणों और देवों की सेना ने मिलकर असुर सेना का भारी विनाश कर दिया है. शुक्राचार्य मंदार पर आए और अंधक को शिवजी से क्षमा मांगकर युद्ध समाप्त करने की सलाह दी.


लेकिन अंधक तैयार नहीं हुआ. उसने इंद्र पर आक्रमण किया. इंद्र की रक्षा के लिए नंदी पर सवार होकर महादेव आए और उन्होंने अंधक पर अपने त्रिशूल से प्रहार किया. त्रिशूल उसके सीने में धंस गया. छटपटाते अंधक ने शिव के सिर पर गदा से प्रहार किया.


महादेव के मस्तक रक्त की धारा फूटी और उससे कालराज, कामराज, चक्रमाला, सोमराज, शोभराज, स्वच्छराज, ललितराज और विघ्नराज नामक भैरव पैदा हुआ.


महादेव ने अंधक का अपने त्रिशूल में उठा लिया. अंधक के शरीर से गिरते रक्त से उनका शरीर नहा गया. अंधक के शरीर से धरती पर गिरती रक्त की हर बूंद से एक अंधक पैदा हो जाता था.


कुछ ही समय में युद्धभूमि में अंधक ही अंधक भर गए. शिव जितना विनाश करते उतने ही अंधक बन जाते. क्रोध में हुंकार भरते महादेव ने लालट पर उभरी पसीने की बूंदें धरती पर फेकीं.


उससे एक बालक और एक बालिका पैदा हुए. दोनों अत्यंत क्रोधित मुद्रा में युद्ध के लिए उत्सुक थे. दोनों अंधक के शरीर से बहते रक्त को पीने लगे. बालक का नाम मंगल और बालिका का नाम चर्चिका पड़ा.


श्रीविष्णु के सुधाव पर महादेव ने अष्ट मातृकाओं को अंधक के रक्त की बूंदों को धरती पर गिरने से रोकने के लिए कहा. देवियों ने चर्चिका जैसी असंख्य देवियां पैदा कर दीं जो अंधक का रक्त पीने लगीं.


महादेव ने एक-एक करके अंधक के सभी अंशों का अंत कर दिया जबकि मूल अंधक उनके त्रिशूल पर लटका था. महादेव ने उसी तरह उसे सहस्त्र वर्षों तक लटकाए रखा.


अंधक का रक्तहीन शरीर सूखकर कांटे जैसा हो गया. शुक्राचार्य के समझाने पर उसने महादेव से क्षमा मांग ली. उसने पार्वती को अपनी माता स्वीकार लिया और क्षमा के लिए गिड़गिडाने लगा.

पार्वती ने महादेव से कहा कि इसके जन्म के समय सृष्टि अंधकारमय थी इससिए यह बुद्धिहीन था. अंधक को क्षमा कर देना चाहिए. महादेव ने उसे त्रिशूल से उतार दिया.


अंधक ने अपना जीवन महादेव और पार्वती की सेवा में बिताने की इच्छा व्यक्त की. महादेव ने उसे अपनी सेना का गणनायक बनाया. वही अंधकासुर शिव का प्रधान गण भृंगीरिटी बना. ( अंधकासुर कथा समाप्त)


!! ॐ नमो शिवाय !!

भांग धतूरा बेल फल भोले की सौगात

 हिम अच्छादित चोटियां करें शिवा की बात

!! ओम नमः शिवाय!!





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