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9/16/2020

आख़िर हम सूख से क्यू नहीं रह पाते ?

   
                           
   

आख़िर हम सूख से क्यू नहीं रह पाते ?

एक नगर सेठ था उसको कपड़े की दुकान थी
उसको बीबी बहोत ही सुसिल ओर होशियार
थी वो हर रोज़ साम को गुमने निकालती
गाँव के बाहर एक जुपडपट्टी थी वाह एक 
करसन्न रामी रहेता था वो कचरे से प्लास्टिक
वींन के बेचता ओर दो वक़्त की रोटी खाता
प्लास्टिक से उसे एक दिन का खाना मिल
सके उतना ही मिलता था वो सुबह को जाता
ओर ५ बजेतक फ़्री हो जाता बचा टाइम 
अपनी बीबी के साथ बेठ के बिताता ये
देखकर सेठ की बीबी को करसन की बीबी
से जलन होने लगी के मूँज से ज़्यादा तो ये
खुसनसीब है कि उसे पति का प्यार तो मिलता
है फिर उसने एक दिन सेठ से कहा की आप
को पेसो से प्यार है बीबी से नहीं आपको
मेरे किए थोड़ासा भी टाइम नहीं ओर वो
करसन दुखी है फिर भी अपनी बीबी को
खुस रखता है उसे वक़्त देता है आपको
एसी क्या मजबूरी है की आप मज़े टाइम
नहीं दे सकते सेठ ने हँसकर कहा को वो
99 की मायाजाल में नहीं फँसा ओर में
फँस गया हु बीबी ने कहा एसा कूच नहीं
होता तूजे यक़ीन नहीं आता तो कूच दिन
रुक जा में तूजे दिखता हु फिर सेठ ने रात
को करसन के धर के बाहर रोकड़ा 99 
रुपये की पोतलि रख दी सुबह जब करसन
ने पोतलि को देखा तो अंदर रोकड़ें रुपये थे
उसने गिना तो 99 रुपये निकाले उसने सोचा
100 में एक कम है आज थोड़ी महेनत ज़्यादा
करूँगा फिर वो 5 बजे के बदले 6 बजे तक 
काम किया ओर साम को 5 रुपये की बचत
हुई फिर उसने वो 99 में 5 रुपये डाले अब
हुए 104 अब उसे  110 करने की लालच
हुई जो आदमी 5 बजे फ़्री होने वाला अब 
रात के 9 बजे तक काम करने लगा जब
सेठ की बीबी ने देखा तो वो मान गई के
सेठ की बात सही है जो इस मायाजाल
में फँस गया वो कभी संतुष्ट जीवन नहीं
बिता सकता


नोध: कल की खूसी ख़रीद ने में हम आज की कुशी 
खो रहे है

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