वीर शिरोमणि बर्बरीक की गाथा
हरियाणा के पानीपत जिले में एक गाँव है चुलकाना. इसे चुलकाना धाम भी कहते हैं.
यही वो स्थान हैं जहाँ घटोत्कच पुत्र बर्बरीक का शीश भगवान श्रीकृष्ण ने मांग लिया था.
कथा है जब तीन वाणधारी बर्बरीक कुरुक्षेत्र युद्धस्थल की ओर जा रहा था तब श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर वेश बदल कर उसे रोका था.
बर्बरीक के यह कहने पर कि वह केवल हारते हुए पक्ष की ओर से ही युद्ध करेगा श्रीकृष्ण चिंतित हो गए. यह बेहद गंभीर बात थी. इस तरह तो कौरव और पांडव दोनों का सफाया हो जायेगा. क्योंकि कोई एक पक्ष तो हारेगा ही और बर्बरीक उसकी तरफ से युद्ध करने लगेगा. जब दूसरा पक्ष हारने लगेगा तो बर्बरीक पाला बदल कर उसकी तरफ हो जाएगा. इसका परिणाम यह होगा कि एक समय ऐसा आएगा जब दोनों पक्षों का सफाया हो जायेगा.
बर्बरीक का कहना था सम्पूर्ण विश्व को नष्ट करने के लिए उसका एक वाण ही बहुत है. अपनी बात सिद्ध करने के लिए बर्बरीक ने वहाँ स्थित पीपल के वृक्ष पर वाण चलाया जिसने वृक्ष के सभी पत्तों को छेद दिया. एक पत्ता श्रीकृष्ण ने अपने पाँव के नीचे दबा लिया था जिसे छेदने के लिए वाण उनके पाँव पर मंडराने लगा. बर्बरीक के चेतावनी देने पर श्रीकृष्ण ने पत्ते पर से अपना पाँव हटा लिया और वाण ने उस आखिरी पत्ते को भी छेद दिया. आश्चर्यजनक रूप से आज भी उस पीपल वृक्ष के पत्तों में छेद होता है और इसे कोई भी वहाँ जाकर देख सकता है.
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर माँग लिया. आश्चर्य की बात यह कि उसका सिर धड़ से अलग होने के बाद भी श्रीकृष्ण से वार्तालाप करता रहा और उसने महाभारत युद्ध देखने की इच्छा जाहिर की. तब श्रीकृष्ण द्वारा बर्बरीक के शीश को एक ट्राइकोप्टर का रूप देकर युद्ध क्षेत्र में उड़ाया गया. सम्भावना यह भी है संजय द्वारा धृतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का जो आँखों देखा हाल सुनाया गया उसका प्रसारण इसी बर्बरीक के शीश द्वारा बने ट्राइकोप्टर से प्रसारित किया गया.
बर्बरीक का जो वर्णन है वो उसे अतिमानवीय सिद्ध करता है. बर्बरीक की योग्यताएं एक इंसान की बजाय किसी सुपर कंप्यूटर जैसी अधिक लगती हैं. बर्बरीक शब्द बर्बर से बना है और संस्कृत में बर्बर का अर्थ अमानवीय होता है. इसी से अंग्रेजी शब्द बारबेरियन की उत्पत्ति हुई है. शायद यही कारण है पूरे महाभारत में कहीं भी बर्बरीक का जिक्र नहीं मिलता क्योंकि वह कोई मानव नहीं बल्कि AI यानी आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस था.
ईसवी सन 1027 में कुछ मजदूर वर्तमान राजस्थान के सीकर जिले के गांव खाटू में कुआं खोद रहे थे.
लगभग तीस फ़ीट की खुदाई के बाद उन्हें एक धातु का बक्सा मिला. बक्सा बहुत अच्छी तरह से सील किया हुआ था और उसपर संस्कृत में बर्बरीक खुदा था.
बक्से को खोलने पर उसमें से एक चमकीली धातु से बना मानव सिर मिला. इस सिर की आंखें बिलकुल मानव आंखों जैसी और सचेत थीं.
इस सिर को तत्काल वहां के राजा रूप सिंह चौहान के पास ले जाया गया. राजा रूप सिंह ने अनेक विद्वानों को इस शीश का रहस्य और उद्गम जानने के काम पर लगा दिया.
ढेरों प्राचीन ग्रंथों को खंगालने के बाद विद्वान बर्बरीक और श्रीकृष्ण की कथा तक पहुँचे. इसके बाद पूर्ण श्रद्धा और विधि विधान के बाद इस शीश को इसके प्राप्ति स्थल पर मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया गया.
आज यह शीश श्री खाटू श्यामजी के नाम से विख्यात है...
जय सनातन धर्म🔱🚩🔱
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