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10/10/2021

गोंडवाना की वीरांगना रानी दुर्गावती जी

   
                           
   

गोंडवाना की वीरांगना रानी दुर्गावती जी




रानी दुर्गावती जी के पिता :- रानी दुर्गावती के पिता महोबा के पास राठ के चंदेल राजा शालिवाहन थे, परन्तु विंसेट स्मिथ, केशवचंद्र मिश्र आदि इतिहासकारों ने कालिंजर के राजा कीरत सिंह को रानी दुर्गावती का पिता होना लिखा है। कुतुबउद्दीन एबक के आक्रमण के समय चंदेल राजपूतों ने महोबा छोड़कर कालिंजर में अपना राज कायम किया, लेकिन चंदेलों की एक शाखा महोबा में ही रही और इसी शाखा में राजा शालिवाहन हुए। कालिंजर में स्थापित चंदेल शाखा 15वीं सदी तक बनी रही, तत्पश्चात वहां भी राजा शालिवाहन का अधिकार हो गया।

रानी दुर्गावती की बहन :- कुछ इतिहासकारों ने कमलावती को रानी दुर्गावती की बहन होना लिखा है, जबकि कुछ का मानना है कि ये रानी दुर्गावती की सगी बहन नहीं थी। रानी दुर्गावती के ससुर :- राजा संग्रामशाह :- ये अमन दास नाम से भी जाने जाते थे। इनके अधिकार में 52 दुर्ग थे। सास :- रानी पद्मावती। 


पति :- राजा दलपतिशाह :- राजा संग्रामशाह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दलपतिशाह गद्दी पर बैठे। इनका विवाह रानी दुर्गावती से हुआ। ये सिंगोरगढ़ (दमोह) में रहा करते थे। रानी दुर्गावती के गुरु :- रानी दुर्गावती के गुरु गोस्वामी विट्ठलदास जी थे, जो वल्लभ संप्रदाय के संपादक वल्लभाचार्य के पुत्र थे। रानी दुर्गावती ने इनको 108 गांव दान में दिए थे, जो गोस्वामी जी ने तेलंग ब्राह्मणों में बांट दिए। ये मेवाड़ की महारानी अजबदे बाई जी के भी गुरु थे। 


प्रिय हाथी :- रानी दुर्गावती के प्रिय हाथी का नाम सरमन था, जो उस राज्य के सभी हाथियों में सर्वश्रेष्ठ था। युद्ध के समय रानी दुर्गावती इसी हाथी पर सवार हुआ करती थीं। आश्रित लेखक :- रानी दुर्गावती के दरबारी विद्वान पदमनाथ भट्टाचार्य ने ‘दुर्गावती विलास’ नामक रचना की। 


रानी दुर्गावती का व्यक्तित्व :- रानी दुर्गावती सुंदर, निर्भय, चेहरे पर तेज, स्वभाव से दयालु, स्वाभिमान से ओतप्रोत, प्रजापालक, प्रणपालक, हाजिरजवाबी, धार्मिक, बहादुर, तीर-बन्दूक की अचूक निशानेबाज़, हाथियों की शौकीन, हिंसक जीव-जंतुओं के आखेट की प्रबल इच्छुक, कुशल प्रशासक, राज्य प्रबंध में निपुण व एक योग्‍य माँ थीं। रानी दुर्गावती अपने विशाल राज्य के हर जागीरदार को उसके नाम से जानती थीं। रानी ने आदिवासी जातियों से मधुर संबंध बनाए रखे और राज्य के पहाड़ी इलाकों समेत चप्पे-चप्पे से परिचित थीं। 


5 अक्टूबर, 1524 ई. – रानी दुर्गावती का जन्म :- रानी दुर्गावती का जन्म कालिंजर दुर्ग में दुर्गाअष्‍टमी के दिन होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। हालांकि इनके जन्म का एक अन्य चर्चित किस्सा कुछ इस तरह है :- 


चंदेल राजा शालिवाहन की कोई संतान नहीं थी। कालिंजर दुर्ग में दुर्गादेवी का एक मंदिर था। तो लोगों में उस वक़्त एक धारणा थी कि जो कोई भी निसंतान जोड़ा मंदिर जाकर अपनी होने वाली पहली संतान को दुर्गादेवी की गोद में समर्पित करने का संकल्प लेता है, उसे संतान अवश्य होती है।

अर्थात् पहली संतान को मढ़िया में रखकर द्वार हमेशा के लिए बंद कर दिया जाता है और उस शिशु का दम घुट जाता है। राजा शालिवाहन ने अपनी रानी के साथ मंदिर जाकर संकल्प किया और उन्हें कुछ समय बाद पुत्री के रूप में पहली संतान हुई। जिसे राजा ने संकल्प करने से कई बार मना किया, लेकिन रानी नहीं मानी। राजा द्वारा मना करते-करते कई साल गुजर गए और रानी दुर्गावती बड़ी हो गईं और उनके रूप व गुण की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी।

बहरहाल, सत्य जो भी हो, मुगल सल्तनत को चुनौती देने के लिए एक महान वीरांगना जन्म ले चुकी थी। रानी दुर्गावती जी का जीवन शुरू से ही संघर्षमय रहा।

1541 ई. में गोंडवाना के राजा संग्रामशाह का देहांत हुआ और उनके पुत्र दलपतिशाह गोंडवाना के शासक बने। दलपतिशाह के छोटे भाई चंद्रशाही नाराज़ होकर महाराष्ट्र चले गए, जहां उन्होंने चंद्रपुर में अपना राज कायम किया।

1542 ई. – रानी दुर्गावती का विवाह :- रानी दुर्गावती गोंडवाना के शासक राजा दलपतिशाह से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन इस विवाह के लिए उनके पिता राजा शालिवाहन राजी नहीं हुए और उन्होंने एक स्वयंवर रखा, जिसमें दलपतिशाह को न्यौता नहीं भेजा। रानी दुर्गावती भागकर विवाह करने के पक्ष में नहीं थीं, इसलिए उन्होंने दलपतिशाह को पत्र लिखा, जिसमें कहा कि वे अपने पराक्रम और वैभव से स्वयं को साबित करते हुए मेरा हरण करे।

स्वयंवर के अवसर पर राजा दलपतिशाह ने 12 हजार की फौज समेत हमला किया और विरोधी पक्षों पर जोर जमाते हुए कुछ को पराजित कर दिया। फौज की कमी के चलते राजा शालिवाहन भी कुछ न कर सके और दलपतिशाह रानी दुर्गावती को साथ ले गए। रानी दुर्गावती का विवाह 18 वर्ष की उम्र में 25 वर्षीय दलपतिशाह के साथ हुआ। 


1543 ई. में राजा दलपतिशाह व रानी दुर्गावती के पुत्र वीर नारायण का जन्म हुआ। 1546 ई. में गढ़ा राज्य के प्रतापगढ़ पड़रिया के ज़मींदार ने विरोध किया, तो राजा दलपतिशाह ने उसे हटाकर श्यामचंद्र को वहां की ज़मींदारी सौंपी। राजा दलपतिशाह ने अपनी राजधानी गढ़ा से सिंगोरगढ़ स्थापित कर ली।

राजा दलपतिशाह ने उमर खां रूहिल्ला नामक आक्रांता को पराजित किया। राजा दलपतिशाह के शासनकाल में आधारसिंह का योगदान महत्वपूर्ण रहा। 1548 ई. में राजा दलपतिशाह का देहांत हो गया। इनका शासनकाल मात्र 7 वर्ष रहा। इस समय उनके पुत्र वीर नारायण मात्र 5 वर्ष के थे।

आधारसिंह और मान ब्राह्मण की सलाह से राज्य की बागडोर रानी दुर्गावती ने संभाली और वीर नारायण को राजा की पदवी दे दी। रानी दुर्गावती का देवर चंद्रशाही मौके का फायदा उठाकर गोंडवाना का उत्तराधिकारी बनने के इरादे से आया, लेकिन प्रजा के विरोध के कारण उसे भागकर चांदा में शरण लेनी पड़ी।

रानी दुर्गावती ने सिंगौरगढ़ के स्थान पर चौरागढ़ (वर्तमान मध्य प्रदेश में स्थित) को राजधानी बनाई। सतपुड़ा पर्वत के शिखर पर स्थित चौरागढ़ दुर्ग बहुत मजबूत था।

मियानां आक्रमण :- होशंगाबाद के मियानां अफगानों के सरदार महंत खां की मौत के बाद नेतृत्वविहीन अफगानों के दल ने गढ़ कटंगा पर एक रानी का राज होने की ख़बर सुनकर बिना विचारे गढ़ा पर हमला कर दिया। रानी दुर्गावती की सेना ने मियानां अफगानों को बुरी तरह पराजित किया।

इनमें से कई अफगान भाग निकले और बचे-खुचे अफगानों ने रानी की अधीनता स्वीकार की और सेना में भर्ती हो गए। शमशेर खां मियानां, मियां मिकारी, खान जहां आदि रानी दुर्गावती की फौज में प्रमुख अधिकारियों में से थे।

1556 ई. – रघुनंदन राय की नाराजगी :- राजपुरोहित महेश ठाकुर हमेशा रानी दुर्गावती को पुराण सुनाया करते थे, लेकिन एक दिन किसी कारण से नहीं आ पाए, तो उन्होंने अपने शिष्य रघुनंदन राय को भेज दिया। रानी को रघुनंदन राय की भाषा क्लिष्ट लगी और रानी ने कुछ आक्षेप किया।

इस बात से नाराज होकर रघुनंदन राय बस्तर के राजा के यहां चले गए, जहां उन्हें 7 हाथी देकर सम्मानित किया गया। रघुनंदन राय ने वापिस लौटकर एक हाथी रानी दुर्गावती को भेंट किया व शेष हाथी अपने गुरु महेश ठाकुर को दान कर दिए। रघुनंदन राय अकबर के पास चले गए, जहां अकबर ने उनको मिथिला की जागीर दी।

बाज बहादुर का पहला हमला :- यह घटना 1556 से 1561 ई. के बीच की है। मालवा के बाज बहादुर ने गोंडवाना पर हमला किया। रानी दुर्गावती ने बाज बहादुर को बुरी तरह परास्त किया। इस लड़ाई में बाज बहादुर का चाचा फतह खां मारा गया।

बाज बहादुर का दूसरा हमला :- तारीख-ए-फरिश्ता में फरिश्ता लिखता है कि “रानी दुर्गावती से पहली दफ़ा शिकस्त खाकर बाज बहादुर सारंगपुर लौट आया और उसने गढ़ा पर हमला करने का इरादा किया। गढ़ा में कदम रखते ही उसे रानी दुर्गावती की फौज से लोहा लेना पड़ा। एक दर्रे के सिरे पर रानी की फौज से टक्कर हुई, जिसमें बाज बहादुर भाग निकला। लड़ाई की शुरुआत में ही बाज बहादुर की फौज घेर ली गई। उसकी फौज के बहुत से आदमी रानी ने बंदी बना लिए और बहुत से मौत के घाट उतार दिए। बाज बहादुर भागते हुए सारंगपुर पहुंचा। इस हार से बाज बहादुर ने खुद को बहुत ज़लील महसूस किया और खुद को हरम में कैद कर लिया। वह कई दिनों तक अपनी रानियों के बीच हरम में बैठा रहा।”

1562 ई. – रानी दुर्गावती के राज्य के आसपास मुगलों को आधिपत्य :- अकबर की धाय माँ माहम अनगा के बेटे आधम खां ने रानी दुर्गावती के शत्रु बाज बहादुर को पराजित किया। बाज बहादुर की प्रिय रानी रूपमती ने ज़हर खाकर आत्महत्या की।

बाज बहादुर भागकर मेवाड़ नरेश महाराणा उदयसिंह की शरण में चला गया। मालवा पर अकबर का अधिकार हुआ और रानी दुर्गावती के राज्य के आसपास मुगलों का आधिपत्य प्रारंभ हुआ।

1562-63 ई. – अकबर द्वारा रानी दुर्गावती का राज छीनने हेतु पहला कूटनीतिक प्रयास :- विशाल मुगल सल्तनत में मुगल बादशाह अकबर को रानी दुर्गावती के विस्तृत प्रदेश की स्वतंत्रता सहन नहीं हुई। इसके अतिरिक्त यह भी मान्यता है कि वह रानी दुर्गावती की सुंदरता के किस्से सुनने के बाद उन्हें पाना चाहता था। 


अकबर ने गोप महापात्र और नरहरि महापात्र को दूत बनाकर रानी दुर्गावती के दरबार में भेजा। आधारसिंह ने आदर सहित इन्हें दरबार के भीतर बुलाया। इन दूतों ने आगरा लौटकर अकबर को रानी के राजकाज के बारे में बताया।

अकबर का दूसरा कूटनीतिक प्रयास :- अकबर ने आधारसिंह को मुगल दरबार में आमंत्रित किया और रानी से मुगल अधीनता स्वीकार करवाने का प्रस्ताव रखा। आधारसिंह ने अकबर के प्रस्ताव को नामंजूर करते हुए कहा कि “हमारा प्रदेश स्वर्ण से संपन्न है, लेकिन शत्रुओं के लिए हमसे अधिक कटु और कोई नहीं।” 


"चंदेलों की बेटी थी, गोडवानों की रानी थी,

चंडी थी रणचंडी थी वह दुर्गावती भवानी थी।"


शौर्य व साहस से परिपूर्ण, नारी शक्ति की प्रतीक, मुग़ल शासकों को पराजित करने वाली महान वीरांगना रानी दुर्गावती जी की जयंती पर उन्हें कोटि कोटि नमन।

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