हिंदुस्तान की आत्मा जगाने वाली राष्ट्रवादी
सोच :“ दकश्मीर फाईल
यह फिल्म नहीं है, पुरी दुनिया को जो नहीं दिखाया गया उस सच का
आईना है | फिल्म देख के आपको ऐसा ही लगेगा कि आप फिल्म नहीं पुरे कश्मीर को अपनी आंखों से देख रहे हो,
इतनी करीब से सभी घटनाएं प्रस्तुत कि गई है | मैं तो कहता हूँ कि सभी राष्ट्रवादी – सच्चे हिंदुस्तानीओं को यह
फिल्म इसलिए नहीं देखनी चाहिए की 1990 में कश्मीर में क्या हूआ था लेकिन इसलिए देखनी चाहिए की अगर
पुरा हिंदुस्तान अब एक नहीं हूआ तो आनेवाले कल हमारी पीढीयों के साथ क्या क्या हो सकता है ? इस बात को
भी फिल्म में समजाया गया है | इसलिए यह फिल्म 1990 के कश्मीर की ही नहीं बल्की आनेवाले कल की भी
तसवीर बन सकती है | अगर हमने अब भी हमारी आंखें नहीं खोली तो | जो भी लोग राष्ट्र को चाहते है, अपनी
मातृभूमि को प्यार करते है, आने वाले कल अपने बच्चों का उज्जवल भविष्य देखना चाहते है, उन सभी को यह
फिल्म देखना चाहिए | आधा हिंदुस्तान – पचास करोड लोग भी अगर यह फिल्म सो रूपयै खर्च कर के देख लेंगे
तो 50 करोड X 100 रूपये टिकट = रू/- 5000 पांच हजार करोड की फिल्म पुरी दुनिया को हिला देगी और फिर ऐसी
कई सच्ची कहानियाँ हमारे सामने आयेगी जिससे आज तक हम सब अनजान है | हमारे हिंदुस्तान की और
हमारे अंदर की आत्मा फिर से जाग जायेगी |
फिल्म के आरंभ में ही कश्मीर में बच्चे क्रिकेट खेल रहे है और वहाँ से फिर शुरु होता है संघर्ष जो कश्मीर के
प्रत्येक हिंदु पंडितों के घर तक पहूंचता है | विधर्मीओं का आतंकी हमला शुरु हो जाता है | सभी हिंदु पंडितों को
कश्मीर छोडने का फरमान किया जाता है | या तो कश्मीर छोडो, या मर जाओ या फिर इस्लाम का स्वीकार करो –
इस के अलावा चौथा कोई विकल्प है ही नहीं. पंडितों के घर में घूसकर कैसे सबको मारा है, उनकी औरतों को सब के
सामने कैसे नग्न किया जाता है, बच्चों को बंदूक की गोलियों से मार दिया जाता है, यह बर्बरता हमारी सभ्य
संस्कृत्ति को मिट्टी में मिला देती है | इस फिल्म में पंडित पुष्कर (अनुपम खैर)कहेते है “ कश्मीर को लोग जन्नत
मानते है और वही लोग उसे जहन्नूम बना रहे है, लेकिन जहन्नूम बनाने वाले जेहादी आतंकी इसे जहन्नूम
इसलिए बनाते है कि उसे जन्नत मिले |
इस फिल्म में उस समय की गंदी सोच, गंदी पॉलिटिक्स का पुरा सच बताया गया है, आज चिल्ला चिल्ला
कर जो राष्ट्रवादी मीडिया को गोदी मीडिया बताते है ऐसे दलाल मीडिया हाउस के लिए भी फिल्म में “टेररिस्टॉ की
रख्यैल है मीडीया “ ऐसा कहां गया है, उस समय के कश्मीर का सच छूपाकर जूठ दिखाने वाले विदेशी मीडिया के
स्पोन्सर भी पाकिस्तान या आतंकी अलगाववादी नेता होते थे | इसलिए तो फिल्म में कहा गया है कि “अगर आप
बिकने के लिए तैयार हो तो बाजार तो हमेशा खुला ही है |
कश्मीर से हिंदु – पंडितों को निकालने वाले सिर्फ आतंकी या विधर्मी ही नहीं थे, कूछ हमारे सेक्युलर
देशद्रोही नेता और उस समय की राजनीतिक ताकतें भी थी | जिसके कारण कश्मीर से धीरे धीरे स्कूली बच्चों को,
महिलाओं को और बडे पद पर रहे हिंदु अफसरों को मौत के घाट उतार दिया जाता था | हत्या की जाने लगी थी |
हिंदु महिलाओं पर सरेआम बलात्कार होने लगा था | उन्हे जबरजस्ती से निकाह कर के इस्लामिक बनाया जा रहा
था | इसलिए तो जो एक समय राज्य का बडा अफसर ब्रह्मा (मिथुन) कहते है “ कश्मीर में हम सिर्फ जिंदा रहने की
कोशिश कर रहे है “ इस फिल्म में बहोत सारे दृश्य संवेदनशील है, भावूक है जिसे देखने के बाद वो हमारे दिलोंदिमाग में पथ्थर पर खिंची हूई लकिर की तरह अंकित हो जाते है | फिल्म में “ भारत माता की जय “ बोलने
का दृश्य सब की आंखें नम कर देता है |
पूरी फिल्म “एक कश्मीर फाईल “ पर आधारित है, कश्मीर में रहनेवाले चार दोस्त एक बडा अफसर है, एक
डॉकटर है, एक पंडित है और एक आर्मी अफसर है जो चारों को अपनी जान बचाने के लिए सबकूछ छोडकर चूप
हो जाना पडता है | कश्मीर छोडना पडता है, | वहां उनके मित्र पुष्कर पंडित का एक पोता क्रिष्ना अपने नाना का
अस्थि कश्मीर के घर में रखने के लिए कश्मीर आता है और उन चारों दोस्तों को भी मिलता है | कश्मीर में क्रिष्ना
अपनी कॉलेज की सेक्युलर प्रो. राधिका मेंनन के कारण अपने ही मातापिता, भाई की हत्या करने वाले आतंकी से
मिलता है, और वह आतंकी पुरे इमोशनल के साथ क्रिष्ना का माईन्ड वॉश करता है | क्रिष्ना भी उनकी बातों में आ
जाता है लेकिन कहते है ना कि समय भी अपना भाग्य लेकर आता है क्रिष्ना को अपने नाना के दोस्त ब्रह्मा से
“कश्मीर में होनेवाली हत्याओं की पुरी फाईल “ देखने को मिलती है और पुरा सच उनके सामने आ जाता है |
इस फिल्म में कश्मीर में बडी बडी हवेलीयों में रहने वाले, सभी जाति व धर्म के लोगों को शिक्षा देने वाले
पंडितों को ही अपने परिवारों के साथ रास्ते में टेन्ट में, शिविरों में शरणार्थी बन कर रहना पडता है, वहां की
दिक्कते, मुश्केलियाँ भी इस फिल्म में सच्चाई के साथ दर्दनाक तरीके से दिखाई गई है | यहां खाने की इतनी कमी
थी की बच्चों को भी अनाज के एक एक दाने के लिए तरसना पडता था, पुष्कर पंडित अपने हाथ में एक पारले-जी
बिस्किट लेकर अपनी जबान को सिर्फ छूकर उसका स्वाद लेकर खाये बिना ही रख देते है ता कि अगर बच्चों को
जरूरत पडे दे सके | ऐसी भयानक भूख की करूणता हमारे दिल को तार तार कर देती है | एक एक टेन्ट में
पच्चीस, पच्चीस लोगों का रहना, देश का गृहमंत्री भी आते है वहां लेकिन वो भी पंडितो को आश्वासन देकर चले
जाते है | आर्टीकल 370 हताने की मांग पंडित करते रहते है, पंडितों को कश्मीर में पून:स्थापित करने की भी मांग
की जाती है लेकिन केंद्र सरकार भी उस समय कूछ नहीं करती |
अनेक पंडितों की हत्या करने वाला आतंकी बिट्टा को वहा का नायक बनाकर टी.वी. में इन्टरव्युं लिया जाता
है तो वो सब के सामने बोलता है कि उसने आर.एस.एस. के सतिश पंडित की हत्या की है | उसे कोई कूछ नहीं करता
| फिल्म में बताया गया है कि पुष्कर पंडित ने तत्कालिन प्रधानमंत्रीजी को छ हजार पत्र लिखे थे लेकिन कोई
रिप्लाय नहीं था ना कोई कार्यवाही |
सेक्युलर के रूप में प्रो. राधिका मेंनन आजकी युवा पीढी को गुमराह कर रही है, सब के मानस में आजाद
कश्मीर का जहर भर रही है | जो पहले जे.एन.यु में चलता था. भारत तेरे टूकडे होंगे, पाकिस्तान जिन्दाबाद,
कश्मीर आजाद करो.... जैसे नारा लगवाती थी | और वो ही राधिका क्रिष्ना को गुमराह करने का पुरा प्लान बनाती
है लेकिन सच आखिर सच होता है, जूठ कितना भी शक्तिशाली क्यो ना हो, वह सच को कभी जीत नहीं सकता |
क्रिष्ना के सामने सच आ ही जाता है, फिर राधिका उसे कॉलेज स्टूडेन्ट्स का प्रेसिडेन्ट बनाकर आजाद कश्मीर
अभियान सफल करना चाहती थी लेकिन वहां क्रिष्ना का हिंदुस्तानी हदय जाग उठता है, और वहाँ जो लेकचर देता
है वो पुरी दुनिया को हिला देता है, पचोत्तहर सालों से जिस कश्मीर को लेकर पुरी दुनिया को पाकिस्तान गुमराह कर
रहा है उसके गालों पे एक तमाचा हे यह लेकचर, जो हमारे ही देश में हिंदुस्तानी होकर भी देश के साथ गद्दारी करने
वाले कई जयचंद जैसे सेक्युलरों को एक तमाचा हे यह लेकचर, उस समय के जो भी गंदी राजनीति करने वाले
देशद्रोही राजकीय पक्षो, नेताओं और मीडिया को एक तमाचा हे यह लेकचर... कश्मीर क्या है ? नॉलेज सेन्ट्रल ओफ
ध वर्ल्ड कश्मीर हे, जहां कश्यप ऋषि ने तपस्या की है, जिन के नाम से कश्मीर नाम रखा गया है, जहां आदि
शंकराचार्य ने तप किआ है, जहां भरतमूनिने नाट्यशास्त्र का निर्माण किया है, पुरी दुनिया में एकमात्र ज्ञान का
स्त्रोत कश्मीर था | यहां के पंडित विश्वगुरु थे, ज्ञानी थे, कश्मीर का सच इतना सच हे कि हमे जूठ ही लगता है, यहां ऐसा नहीं की सिर्फ हिंदु पंडितों को ही मारा गया है, यहां देशभक्त मुसलमानों को भी मारा गया है, जो भी मुसलमान
आतंकीयों का विरोध करते थे या हिंदुओं – पंडितों का साथ देते है उसे भी बेरहमी से मारा गया है, इसलिए तो कहते
है कि आतंकीओं का कोई धर्म नहीं होता, एक पंडित की बेटी को नग्न कर के कटर मशीन में बेरहमी से काट डालने
का दृश्य कोई भी सच्चे हिंदुस्तानी को, राष्ट्र भक्त को नहीं भूलना चाहिये | और अंत में एक साथ 24 हिंदु पडितों
को एक साथ गोली मारकर हत्या कर के उसे बडे खड्डे मे दफना दिया जाय इतनी बडी क्रूरता, बडा धृणात्मक
त्रासवाद, भयानक और बीभत्स जूल्म हिंदुस्तानीओं को देश के हर चुनाव में याद रखना चाहिए | ताकि उनके एक
वॉट से देश का भविष्य एक सूरक्षित हाथों में रहा करे |
यह फिल्म सिर्फ ऐसे ही नहीं बनी है, फ्ल्म के डिरेक्टर विवेक अग्निहोत्री और उसकी पत्नी पल्लवी
जोशीजीने कश्मीर से विस्थापित हूए 700 से ज्यादा पंडितों को मिलकर उनकी जूबानी का वीडियो रेकर्ड किया है
तभी जा के यह सच बाहर आया है | पांच लाख पंडित परिवारों की लाईफ बरबाद करने वाले सभी आतंकीओ,
सेक्यूलरों और नेताओं का यह सच पुरे देश के सामने आया है इसलिए तो यह सभी लोग अभी भी इस फिल्म को
रोकने के लिए, असफल बनाने के लिए जी जान से मेहनत कर रहे है, लेकिन लोग घर से बाह्र निकल के सिनेमाहॉल
में जाकर स्वयभू फिल्म देख रहे है | आजकल ऐसा कडवा सच कौन दिखाता है ? किसी में हिंमत नहीं है | धार्मिक
आतंकवाद को छूपाने के लिए हमारे ही सैन्य पर निशाना साधा जाता है | पंडितों को ही गुहनेगार मान कर उनके
खिलाफ कॉर्ट में केस चलाया जाता है | हिंदु जज की खुल्ली बाजार में हत्या कर दी जाती है | कोई कूछ नहीं बोलता
|
पुरी दुनिया में यह “ कश्मीर फाईल “ एक ही ऐसी फिल्म है जिसने देश की आजादी के बाद भी देश के ही गद्दारों
ने, आतंकीओं ने हमारी ही ज्ञान की संस्कृति को, ज्ञान के यज्ञ को, ज्ञान की माता सरस्वती को बेघर किया है, लूंटा
है, उनकी हत्या कर दी गई है, फिर भी पुरे देश में कहीं भी कोई आवाज नहीं उठी, सब चूप रहे | उस समय कोई
सेक्युलर भी बाहर नहीं आये, यही विडंबना थी हमारी |
आज तो हम सब इस फिल्म के कारण जागृत हो रहे है, एक हो रहे है लेकिन कूछ ही समय में जब जरा सी
महेंगाई बढेगी कि हम सब इस सरकार को हटाने के लिए रास्ते पर उतर आयेंगे | हम अपने बच्चे को किसी भी
परीक्षा में नापास होने से या मेरिट में नही आने की वजह से नौकरी नहीं मिलती है तो भी हम सरकार बदलने की
बाते करने लगते है | हम आज इतने निक्कमे और स्वार्थी हो चूके है कि हम अपने स्वार्थ के अलावा कूछ सोचते ही
नहीं. अगर हमे या हमारे परिवार को कोई लाभ होता है तो सोसायटी, समाज, राज्य या राष्ट्र का जो होना है वो हो,
हमे उनसे कोई लेना देना नहीं है | यही मानसिकता के कारण हमारे देश पर विधर्मीओ ने, अंगेजों ने राज
किया है, लेकिन अब इस मानसिकता को हमे बदलनी होगी | अब समय राष्ट्र के बारे सोचने का है | वरना
1990 की कश्मीर की घटनायें 2034 के बाद फिर से पुरे भारत में होने वाली थी और हम सोते ही रहते | लेकिन
किस्मत नें फिर से एक बार हम सब हिंदुस्तानीओं को अच्छी तरह से जीने का मौका दिया है,
यह फिल्म बहोत कूछ कह जाती है, समजा जाती है, देश के युवाओं को गुमराह करने के लिए करोडों रूपये
खर्च किये जाते है, इस वर्तमान सरकार को किसी भी तरह से हटाने के लिए पुरी दुनिया की आतंकी ताकतें काम कर
रही है, अगर 2050 तक यह सरकार रही तो आनेवाले हजार साल तक हिंदुस्तान की तरफ कोई नजर उठाके देख भी
नहीं सकेगा | इतना सक्षम और मजबूत हो जायेगा |
फिल्म में मुख्य भुमिका में अनुपम खैर ने जानदार अभिनय किया है, वैसे भी वो कश्मीरी पंडित है, वो वहां से
विस्थापित हूए है तो उसका दर्द इसमे दिखता भी है, मिथुन दा, पल्लवी जोशी , चिन्मय मांडलेकर, प्रकाश बेलवाडी
और दर्शन कुमार ने अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ अभिनय कर के पुरे देश का गौरव बढाया है | इस फिल्म पुरे देश में करमूक्त होनी चाहिए ता कि सभी लोग उसे देख सके | इस फिल्म का स्पेशियल शॉ देश के हर एक शहेरों में, गांवों
में, संस्थाओं में होना चाहिए, कही पर भी हम शादि या पार्टी में जाते है तो इस फिल्म की एक डी.वी.डी “गिफ्ट” के
रूप में देकर सभी की राष्ट्र भावना जगानी चाहिए | इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार तो मिलेगा ही लेकिन
उसे ऑस्कार में भी नॉमिनेट किया जाना चाहिए, वहा भी वो जीत कर आयेगी | क्योंकि यह फिल्म सही
मे एक इतिहास है, इसको देखना राष्ट्रवाद है, देशभक्ति है, अस्तु | (plz share)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts,please let me know