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11/18/2021

देवतांखी और लिरलबाई

   
                           
   

देवतांखी और लिरलबाई




*लिरालबाई : मजेवाड़ी लुहार जाति में जन्मी*,

*पिता: वीरा अम्बाजी पीठवा (देवताखी)*


*देवटंखी बापा ने घुंघरू खटखटाया*

*संधि के ऊपर लोहे के दो टुकड़े चेक किए गए*

*देवायत पंडित का गौरव उतारा गया। *


विक्रम संवत चौदहवीं शताब्दी में पोरबंदर के पास बोखिरा गांव में रहता था, पीठवा शाखा का एक लुहार विराजी अम्बाजी नामक था, वहां उनका जन्म लिरालबाई नामक मिनाल्दे के पेट में हुआ था। वीरा भगत लोहार भजन का भक्त था इन्हें देवटंखी भी कहा जाता था। गिरनार की नाथ परंपरा के शांतिनाथजी के शिष्य देवतनखी स्वयं निजरपंथ का पालन करते हुए। देवतनखी भगत ने अपनी पत्नी मिनालडेन के साथ सात बार गिरनार की परिक्रमा लगाई। देवतनखी भगत ने गुरु की आज्ञा से गिरनार के पास मजेवाड़ी गांव में एक छोटा सा मोदी बनाया और अपनी परंपरा से लुहार का काम शुरू किया।


उस समय मारवाड़ के भजनिक संत भाटी उगमशी और उनके शिष्य शेलांशी सौराष्ट्र की यात्रा पर निकले और गाँव गाँव में निजरधर्म का प्रचार करते हुए कई शिष्यों को बनाया।


देवतनखी और उसकी बेटी लिरालबाई ने भी उगमशी गुरु से गुरुगम दीक्षा ली। एक बार एक समर्थ भजनकारी संत देवायत पंडित अपनी पत्नी के मंदिर छोड़ने के बाद वियोग में अपनी पत्नी को खोजते हुए सौराष्ट्र की यात्रा पर निकले।


रास्ते में जूनागढ़ के पास मजेवाड़ी गांव के पास उसकी गाड़ी का मकान टूटा हुआ था, देवायत पंडित देवटंखी भगत से गांव में एक लुहार का मकान ढूंढने पहुंचे। एकादशी का दिन था इसलिए लोहार की भट्टी बंद थी। देवायत पंडित को अपने ज्ञान का अभिमान था। एकादशी व्रत तोड़ने का पाप उसने अपने ऊपर लिया और देवतनखी भगत को भट्टी शुरू करने का आदेश दिया।


भगत की बेटी लिरालबाई धाम, देवटंखी लोहार ने लोहे के दो टुकड़े हवा में आग में रखे और देवायत पंडित ने अपनी जानकारी में बहुत मारा।

वही घाव जमीन में उतरने पर देवायत पंडित उलझन में पड़ गए। लिर्लबाई इसमें क्या कहती है? टखने को ऊपर रखने से बहुत जख्म देते हैं! यह शरीर भी एरन है!


आखिरकार देवतनखी लुहार ने लोहे के दोनों टुकड़े अपने टखने पर रख कर कई घाव दिए। त्रिकालिग्नि सिद्ध पुरुष होने का देवायत पंडित का अहंकार पिघलकर लिरालबाई और देवटंखी के चरणों में गिर पड़ा। लिरलबाई ने देवादयत पंडित की पत्नी देवलदे को बख्श दिया और देवायत की शंका का समाधान किया।


🙏 *भजन* 🙏


वीरा घाट की जिया लोहार की, तू हरिजन बना दे,

जिसकी तारीफ़ दुनिया हर बात पर करती है हाँ


जय हो भाई, करोड़ो लोगो के कोयले कहा है,

तुम उसे ब्रह्म की अग्नि में जला दो हाँ


अरे भाई धुंआ धुंआ हो रहा है, पहनते रहो,

फिर इसे जोर से बांधो और इसे हां बांधो


जय हो भाई, बांकनाल से अकड़ उड़ा दो,

तुम हवा को उल्टा चलाते हो हाँ


तुम त्रिकोण से आग लोग हो,

फिर उसे गिनां सनासी हाँ से ताव


जय हो भाई बिन चढ़े ही तू ही तू है

भंगेल यही करना चाहता है।


जियो भाई, मैं और मेरे दो लोधाणा कटका,

अपने मन और आदेश वचन से उसे मिलान करें हाँ


जी रे वीरा सतनी के चरणो में, चढ़ के देख लो,

माया हो या धूप हो तो पलट कर छू लो


जय हो भाई, आलस्य को तार ला दो,

तो आप सर्कुलर इनकार को सहन नहीं कर सकते हाँ


जियो भाई तुम दुनिया में ऐसा घाट बनाओ,

तो खाना मत खाओ भले ही हाँ खो दो


जी रे वीरा उगमशी चरण लिरालबाई बोली,

तो फिर आप सच कस्बी हाँ कैसे कहेंगे


संत कवयित्री लिराल्दे की भजन रचनाओं में गुरु उगमशी का नाम मिलता है।


*शत शत नमकन जय माता दी जय नारायण*


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