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11/23/2021

लुप्त हो चुके 6 दुर्लभ सूर्य मंदिरों में पहले का पता चला, मिस्र के रेगिस्तान में होती थी देवताओं की पूजा

   
                           
   

लुप्त हो चुके दुर्लभ सूर्य मंदिरों में पहले का पता चलामिस्र के रेगिस्तान में होती थी देवताओं की पूजा


#काहिरा, नवंबर 15: पिरामिडों के लिए प्रसिद्ध मिस्र में ऐसी ऐसी दुर्लभ वस्तुएं पुरातत्वविदों को मिलती रहती हैं, जो आश्चर्यजनक होती हैं और जिसपर विश्वास करना काफी मुश्किल हो जाता है। पिरामिडों से लेकर पिरामिडों के अंदर से मिलने वाली वस्तुओं को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है, कि उस वक्त की वास्तु शिल्प से लेकर उस वक्त की टेक्नोलॉजी कैसी रही होगी। मिस्र में इस बार खुदाई के दौरान पुरातत्वविदों को दुर्लभ और प्राचीन #सूर्य_मंदिर मिला है, जिसे देखकर पुरातत्वविद हैरान हो गये हैं और अब इस बात की पड़ताल कर रहे हैं, कि क्या उस वक्त मिस्र के रेगिस्तान में पूजा अर्चना होती थी?




रेगिस्तान में मिला दुर्लभ सूर्य मंदिर

मिस्र में पुरातत्वविदों को इस बात का प्रमाण मिला है कि वे एक दुर्लभ प्राचीन सूर्य मंदिर की खुदाई कर रहे हैं, जो अब तक का तीसरा और 50 वर्षों में मिला पहला खुला सूर्य मंदिर है। पुरातत्वविदों को पता चला है कि ये सूर्य मंदिर फिरौन राजवंश के दौरान उस वक्त बनवाया गया था, जब वो खुद जीवित थे। फिरौन साम्राज्य में शासकों को ही 'भगवान' का दर्जा दिया जाता था और उनके जिंदा रहते हुए ही मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इसके साथ ही मौत होने पर शासकों को पिरामिड में रख दिया जाता था, जो यह सुनिश्चित करता था कि मौत के बाद भी वो जिंदा हैं।


6 मंदिरों का हुआ था निर्माण


ऐसा माना जाता है कि छह मंदिरों का निर्माण किया गया था और अब तक सिर्फ दो मंदिरों का ही पता लगाया गया था, लेकिन अब पुरातत्वविदों ने मिस्र के पुरातत्व इलाके अबुसीर के उत्तर में अबू गोराब में ज्ञात सूर्य मंदिरों में से एक के अवशेषों के नीचे खुदाई करने पर तीसरे सूर्य मंदिर की खोज की गई है और ये सूर्य मंदिर खुला हुआ है, जो पहले दोनों से अलग है। सबसे खास बात ये है कि, इस सूर्य मंदिर को नुसेरो के पत्थरों से ढंक दिया गया था, ताकि सूर्य मंदिर का पता किसी को नहीं चले।


4600 साल पहले हुआ था निर्माण

पुरातत्वविदों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि, ईशा पूर्व 2500 साल पहले, यानि आज से करीब 4600 साल पहले इन मंदिरों का निर्माण करवाया गया था। इतिहासकारों का कहना है कि, उस वक्त फिरौन ने करीब 24 से 35 सालों तक शासन किया था और उन्हें राजवंश का पांचवां शासक माना जाता है। इस सूर्य मंदिर को ईंटों से बनाया गया था, जिससे पता चलता है कि, एक और इमारत वहां पर मौजूद थी। वारसॉ में साइंस एकेडमी में इजिप्टोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ मासिमिलियानो नुजोलो ने द टेलीग्राफ को बताया कि, 'हम जानते थे कि नुसेरे के पत्थर के मंदिर के नीचे कुछ था, जिसे अब खोज लिया गया है''।


लापता सूर्य मंदिरों का रहस्य

साइंस एकेडमी में इजिप्टोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ मासिमिलियानो नुजोलो ने कहा कि, ''प्रवेश द्वार काफी ज्यादा विशाल है और ये एक नई इमारत की तरफ इशारा करता हुआ मालूम होता है, जिससे अंदाजा लगता है कि क्या वहां पर एक और लापता सूर्य का मंदिर है, जिसके ऊपर इमारत बनाकर उसे ढंक दिया गया है? जब और मलबा हटाया गया तो पुरातत्वविदों को एक दो फुट का सफेद चूना पत्थर के स्तंभ का आधार दिखाई दिया। इसके साथ ही वहां पर मिट्टी के बड़े जार भी मिले हैं, जिसके आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि, सूर्य मंदिर से जो वस्तुएं मिली हैं, उससे पता चलता है कि, यह सबसे पवित्र स्थानों में से एक था और यहां पर धार्मिक अनुष्ठान किए जाते थे।


#मिस्र के पांचवें राजवंश को जानिए

इतिहासकारों का कहना है कि, मिस्र के पांचवें राजवंश के फिरौन ने आज से करीब 4600 साल पहले, यानि ईशापूर्व 2500 साल पहले राज किया था और मिस्र पर इस राजवंश का शासन करीब 150 सालों तक रहा। इस अवधि के दौरान राजाओं का उत्तराधिकार निश्चित नहीं है, क्योंकि कुछ निश्चित अवधियों के दौरान शासन करने वाले लोगों के बारे में विरोधाभासी सबूत मिले हैं, लेकिन ये राजवंश सूर्य मंदिरों समेत अलग अलग मंदिर बनवाने सहित कई उपलब्धियों के लिए जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि, इस राजवंश के हर शासक ने अपने शासनकाल में एक मंदिर का निर्मा करवाया और अंतिम दो शासकों ने दो मंदिरों का निर्माण करवाया।


#पिरामिड ग्रंथ' में है जिक्र

मिस्र के इतिहास को लेकर लिखी गई सबसे विश्वसनीय किताब पिरामिड ग्रंथ में इस बात का जिक्र किया गया है कि, प्राचीन मिस्र में धार्मिक कार्यों को काफी ज्यादा महत्व दिया गया था और काफी ज्यादा धार्मिक अनुष्ठान हुआ करते थे। इस राजवंश के अंतिम शासक का नाम उनास था और फिर इस राजवंश का पतन हो गया था। इतिहासकारों का कहना है कि, फिरौन राजवंश के दौरान बड़े अधिकारियों की संख्या में काफी वृद्धि की गई थी और शासनकार्य सिर्फ शाही परिवार तक ही सीमित नहीं था, बल्कि, शासन चलाने में अधिकारियों की मदद ली जाती थी।


मंदिरों का माना गया है दुर्लभ


इतिहासकारों और शिक्षाविदों का मानना ​​है कि, जब नई खोजी गई वास्तुकला को पहले खोजी गई वास्तुकलाओं के साथ जोड़ा जाता है, तो इस बात के स्पष्ट सबूत मिलते हैं कि, ये सूर्य मंदिर अति प्राचीन होने के साथ साथ अत्यंत दुर्लभ भी है। वहीं, डॉ नुजोलो ने कहा कि, 'मेरे पास अब कई सबूत हैं कि हम यहां जो खुदाई कर रहे हैं वह खोए हुए सूर्य मंदिरों में से एक है।' पुरातत्वविदों का कहा है कि, इस बात के प्रमाण मिल रहे हैं कि इस फिरौन राजवंश का पांचवां शासक था और इसने इस सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था। ये मंदिर सबसे शक्तिशाली देवता सूर्य की पूजा-अराधना के लिए बनवाया गया था, जिसके हर एक स्तंभ के साथ एक बड़ा आंगन जुड़ा हुआ था, जो सूर्य के पूर्व-पश्चिम अक्ष के साथ संरेखित था। इस सूर्य मंदिर से निकलने का रास्ता नील नदी की तरफ बना हुआ था। #सनातन_धर्म_ही_नित्य


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