मनुष्य मात्र दो प्रकार से रोगी होता है, एक शरीर से दूसरा मन से !
मनुष्य मात्र दो प्रकार से रोगी होता है, एक शरीर से दूसरा मन से! शारीरिक रोगों को दूर करने के लिए अनेक औषधियों और पथियों का उपयोग किया जा सकता है, लेकिन अप्रत्यक्ष दिखने वाला मानसिक रोग अति भारी है, मनुष्य जब मानसिक रोग से पीड़ित होने लगता है तो उसका आंतरिक स्वभाव, विवेक, व्यवहार, बुद्धि आदि नष्ट भ्रष्ट होने लगते है, मनुष्यकाम, क्रोध, लोभ, मोह, स्वार्थ, दम्भ, छल-कपट, ईर्ष्या, राग, द्वेष आदि दुर्गुणोंसे रोगी होता चला जाता है! मन के रोगों को दूर करने के लिए ऋषि-मुनियों द्वारा निर्दिष्ट योग के महत्वपूर्ण अंग प्राणायाम, धारणा , प्रत्याहार, ध्यान आदि मन और मस्तिष्क पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं, निरंतर योग के अभ्यास से मनुष्य अपने स्वभाव, मन मस्तिष्क के तनाव और आंतरिक रोगों पर नियंत्रण पाकर अपना जीवन शांत, पवित्र और निर्मल बनाने में सक्षम हो सकता है!
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