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11/10/2021

बुजुर्गों का दर्द : कहानी घर घर की

   
                           
   

बुजुर्गों का दर्द कहानी घर घर की


शादी के बाद बेटी ससुर के पास आती है तो पति की पर्सनल सेक्रेटरी बन जाती है मुझसे इतने लोगों के लिए खाना नहीं बनता, देखो- इन कपड़ों को धोकर मेरे रेशमी हाथ काँच के कागज जैसे हो गए हैं...! मैं इस घर में अब और नहीं रह सकता- मैं हाँ कह रहा हूँ...! चलो कहीं और रहते हैं...


आग पर बांध, गिरने पर थप्पड़

सोचो- माँ बाप पर क्या बीत रही होगी...!!!

बहू के दुल्हन बनते ही बेटी गायब

चलता रहता है।


ज़िन्दगी की शाम में ज़ख्मों की लिस्ट देखनी थी,

बहुत कम पन्ने देख पाए,

कई निजी नाम थे...!


माता पिता को अपने पैरों में ले जाने वाले बच्चों की संख्या दिन ब दिन घटती जा रही है। समय आ गया है कि अब माँ बाप को अपने बच्चों के पैर महसूस होने लगे।

बेटा अब करो खमैया रोज रोज तेरी जमानत कहा से लाऊ


स्वार्थ में सबका एक ही हिसाब लगता है

खुशी ना दे तो भगवान भी बुरा मान जाते हैं

आखिरकार वही हुआ... किसका

मैं डरता था। वृद्धाश्रम, शांतिनिकेतन, निरंत और मावतार धाम में आश्रम ले लो

यह गिरता है जहां इन सेवा संस्थाओं का भला होता है वहां विकलांगता होती है वरना बूढ़े लोग कहां जाएंगे...?

घर घर की यही कहानी है


👏🏼 पाठकों के साथ जोड़े दो हाथ

विनम्र निवेदन है कि जीवन में हमेशा

पुनीत महाराज की यह अमर कृति

याद रखना तुम सचमुच अमर हो जाओगे....


बाकी सब भूल जाओ,

माँ बाप को मत भूलो,

उनका एहसान बेशुमार है

यह कभी मत भूलना...


ये वक्त भी गुजर जायेगा। और

मेरी प्रिय युवा महिलाओं को याद करते हुए

रख लो... आप भी घर बनने जा रहे हैं

पिंपल की पत्ती तैरती, मुस्कुराती झोपड़ी

हम गुजर जायेंगे तुम धीरे धीरे गुजर जाओगे बापूड़िया

क्या समझे...?


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