मां छिन्नमस्तिका सिद्धपीठ
माँ सती की दस महाविद्याओं में से माँ छिन्नमस्ता छठी महाविद्या हैं जिनका रूप अत्यंत भीषण व डराने वाला हैं। माता छिन्नमस्ता इस रूप में अपने एक हाथ में किसी राक्षस का सिर नही बल्कि अपना ही कटा हुआ सिर पकड़े हुए रहती हैं और उनकी गर्दन में से रक्त की तीन धाराएँ निकल रही होती हैं।
यह सुनकर आप अवश्य ही छिन्नमस्ता देवी का रहस्य जानने को व्याकुल होंगे। इसलिए आज हम आपको इस सिर कटी हुई छिन्नमस्ता देवी की कथा, महत्व व साधना मंत्र बताएँगे ताकि आप इनके बारे में संपूर्ण रूप से जान सके।
छिन्नमस्ता का अर्थ :
छिन्नमस्ता शब्द दो शब्दों के मेल से बना हैं जिसमें से छिन्न का अर्थ अलग होने से हैं जबकि मस्ता का अर्थ मस्तक या सिर से हैं। इस प्रकार छिन्नमस्ता का मतलब जिसका मस्तक अपने धड़ से अलग हो गया हो।
छिन्नमस्ता देवी का स्वरुप :
छिन्नमस्ता माता का स्वरुप अत्यंत ही भीषण हैं। यह माँ का उग्र रूप हैं, इसलिए उनके इस रूप को प्रचंड चंडिका भी कहा जाता हैं। माँ अपने अन्य उग्र रूपों में राक्षसों की कटी खोपड़ी हाथ में लिए रहती हैं जबकि इस रूप में उनके एक हाथ में स्वयं उनकी ही खोपड़ी रहती हैं।
माँ एक मैथुन करते हुए जोड़े के ऊपर खड़ी हैं। उनका वर्ण गुड़हल के समान लाल हैं तथा वस्त्रों के रूप में उन्होंने केवल आभूषण पहने हुए हैं। उनका सिर कटा हुआ हैं तथा धड़ में से रक्त की तीन धाराएँ निकल रही हैं। उनके आसपास उनकी दो सेविकाएँ खड़ी हैं। रक्त की तीन धाराएँ दोनों सेविकाओं के मुहं में जा रही हैं जबकि एक धारा उनके स्वयं के मुख में जा रही हैं।
गले में उन्होंने राक्षस की खोपड़ियों की माला पहने हुई हैं। कटे हुए सिर पर उन्होंने एक मुकुट पहना हुआ हैं जिसके तीन नेत्र हैं। माँ के दो हाथ हैं जिनमें से एक में खड्ग तथा दूसरे में अपना ही कटा हुआ सिर पकड़ा हुआ हैं। माँ ने कमरबंद के रूप में भी राक्षस की खोपड़ियों को बांधा हुआ हैं।
सिर कटी देवी का रहस्य :
एक बार माता पार्वती अपनी दो सेविकाओं जया व विजया के साथ मंदाकिनी नदी पर स्नान करने गई थी। वहां स्नान करने के पश्चात तीनों को भूख लगी। दोनों सेविकाओं ने मातारानी से भोजन माँगा जिस पर माता पार्वती ने उन्हें प्रतीक्षा करने को कहा।
कुछ समय बाद भी जब उन्हें भोजन नही मिला तो मातारानी ने खड्ग से स्वयं का ही मस्तक धड़ से काटकर अलग कर दिया। मातारानी के धड़ से तीन रक्त की धाराएँ फूटकर निकली जिसमें से उनकी दोनों सेविकाओं ने रक्त पीकर अपनी भूख शांत की। इसी कारण मातारानी का यह रूप प्रचलन में आया।
देवी छिन्नमस्ता साधना मंत्र :
।। ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट् स्वाहा।।
माँ छिन्नमस्ता पूजा विधि का लाभ :
माँ छिन्नमस्ता के रूप व स्वभाव को देखते हुए इनकी पूजा तांत्रिकों द्वारा तंत्र व शक्ति विद्या अर्जित करने व अपने शत्रुओं का नाश करने के उद्देश्य से की जाती हैं। आम भक्तों को केवल इनकी उपासना करने की सलाह दी जाती हैं ना की विशेष रूप से पूजा या साधना की।
तांत्रिकों व साधुओं के द्वारा माँ छिन्नमस्ता की पूजा करने के पीछे अपने शत्रुओं का समूल नाश, भय को दूर करने व विपत्तियों को समाप्त करने के लिए किया जाता हैं। माँ छिन्नमस्ता की कृपा से भक्तों पर आई विपत्ति व संकट दूर होते हैं तथा उनका मार्ग प्रशस्त होता हैं।
माता छिन्नमस्ता महाविद्या की पूजा मुख्य रूप से गुप्त नवरात्रों में की जाती हैं। गुप्त नवरात्रों में मातारानी की 10 महाविद्याओं की ही पूजा की जाती हैं जिसमे से छठे दिन महाविद्या छिन्नमस्ता की पूजा करने का विधान हैं।
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