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5/08/2022

श्मशान की सिद्ध भैरवी ( भाग--04 )

   
                           
   

श्मशान की सिद्ध भैरवी भाग--04 )




परम श्रध्देय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अलौकिक अध्यात्म-ज्ञानधारा में पावन अवगाहन


पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन

    

     किसी भी वस्तु की सृष्टि में दो तत्व कार्य करते हैं--चेतन तत्व और जड़ तत्व जिन्हें वैदिक विज्ञान में--'देवतत्व' और 'भूततत्व' कहते हैं। सूक्ष्म प्राण-चेतना या शक्ति 'तत्व' है पर उसके द्वारा सृष्टि के लिए भूततत्व का होना भी अनिवार्य है।

      वायुमण्डल में सभी प्रकार के भूततत्व के अणु-परमाणु विद्यमान हैं। योगी लोग सूक्ष्मतम प्राण की आकर्षण व विकर्षण शक्ति के माध्यम से उन अणु-परमाणुओं को केंद्रित कर इच्छानुसार किसी भी वस्तु की सृष्टि कर देते हैं। सभी प्रकार की भौतिक वस्तुओं में 'पृथ्वीतत्व' मुख्य होता है। पृथ्वीतत्व सबसे अधिक स्थूल होता है जिस कारण वे वस्तुएं आँखों को दिखाई पड़ती हैं,  शेष तत्व गौण होते हैं। इसलिए यौगिक सृष्टि में पृथ्वी तत्व के अणु-परमाणुओं को मुख्य आधार बनाया जाता है। योगी की इच्छा-शक्ति भी वहीँ केंद्रित रहती है। शेष तत्व 'चेतना' की सहायता से वस्तु या पदार्थ के निर्माण में सहयोग देते हैं। प्राकृतिक सृष्टि और यौगिक सृष्टि के मूल से कोई अन्तर नहीं है, और अन्तर है भी।

      वह क्या--मैंने पूछा।

      प्राकृतिक सृष्टि 'स्वयंभू' सृष्टि है। उसके आधार पर किसी की इच्छा नहीं है, इसलिए प्रकृति-प्रदत्त वस्तु धीरे-धीरे नाश की ओर उन्मुख होती जाती है। प्रकृति में जहाँ निर्माण है, वहीँ नाश भी है, मगर यौगिक सृष्टि में यह बात नहीं है। वह स्वयंभू सृष्टि नहीं है। उसके पीछे योगी की इच्छा है जो कार्य करती है। इच्छा के आधार पर 'भूततत्व' और 'चेतनतत्व' मिलकर वस्तु की रचना करते हैं, इसलिए जिस वस्तु की यौगिक सृष्टि होती है, उस का कभी किसी काल में नाश नहीं होता। उसके रूप और गुण में भी कोई परिवर्तन नहीं होता या विकृति नहीं पैदा होती।

       मनोबल से कैसे सृष्टि सम्भव है ?

       प्राण सबसे 'सूक्ष्म' और 'सूक्ष्मतर' है, मगर 'मन' प्राणों से भीे 'सूक्ष्मतर' और 'सूक्ष्मतम' है। इसलिए मन की शक्ति और गति प्राण से अधिक है और यही कारण है कि योग से तंत्र को ऊँचा माना गया है। 

       स्वप्न और कल्पना बहिर्मन का विषय है। बहिर्मन सपने देखता है और कल्पना करता है। यही दो विषय बहिर्मन के हैं, मगर जब वही सपना और कल्पना अंतर्मन की सीमा में प्रवेश करते हैं और अंतर्मन का विषय बनते हैं तो उनके रूप और गुण-- दोनों बदल जाते हैं। सपना 'अतीन्द्रिय दर्शन' एवं 'ज्ञान' तथा कल्पना 'संकल्प' का रूप धारण कर लेती है। एक हो जाता है--अतीन्द्रिय दर्शन व ज्ञान तथा दूसरा हो जाता है--संकल्प। मतलब यह कि सपना और कल्पना का चरम विकसित रूप है--अतीन्द्रिय दर्शन और संकल्प।

      इन दोनों का चरम विकास सम्भव कैसे है ?

      इसके लिए केवल एक ही उपाय है और वह है एकमात्र ध्यान, और वह ध्यान भी ऐसा कि जिसमे चित्त एकाग्र और विचारशून्य हो। कहीं कोई विकार न हो। विकारशून्य और विचारशून्य ध्यान ही हमें बहिरमन से अंतर्मन में ले जा सकता है। हम जितना इसमें सफल होंगे, उतने ही मन के आतंरिक रूप को पकड़ सकेंगे। एक बात और समझ लो तुम, वह यह कि मन के दोनों रूप जहाँ जिस सीमा पर मिलते हैं, वहीँ 'समाधि' की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मतलब यह कि हम मन के आतंरिक रूप के द्वारा 'समाधि की स्थिति' में पहुँचते हैं। #विकारशून्य #और #विचारशून्य #अवस्था #का #नाम #ही #समाधि #है।

      आतंरिक मन के दो विषय हैं। पहला है--संकल्प और दूसरा है--अतीन्द्रिय दर्शन या ज्ञान। अंतर्जगत की ये दो महान शक्तियां हैं--इसमें सन्देह नहीं। यदि इन दोनों शक्तियों की उपलब्धि हो जाये तो निस्संदेह मनुष्य एक विशेष सीमा तक अपने आप में मानवेतर कार्य कर सकने की क्षमता उत्पन्न कर सकता है। संकल्प में असीम शक्ति है। संकल्प-शक्ति के द्वारा वह इच्छानुसार किसी भी वस्तु या पदार्थ का निर्माण कर सकता है। इसके आलावा वह जो चाहे, वह कर सकता है। कुछ भी असम्भव नहीं उसके लिए।

      इसी प्रकार अतीन्द्रिय दर्शन या ज्ञान के द्वारा वह एक स्थान पर बैठे-बैठे ही सैकड़ों-हज़ारों मील दूर घटने वाली घटनाओं और सम्बन्धित दृश्यों को आँख बंद करके देख-सुन और समझ सकता है।

      संकल्पसृष्टि के अंतर्गत क्रम से चार प्रक्रियाएं हैं। पहली है--संकल्प, दूसरी है--वस्तु का ध्यान, तीसरी है उस ध्यान के सहयोग से समाधि की स्थिति में पहुँचना और चौथी प्रक्रिया है--सम्बंधित वस्तु के रूप-गुण और स्वभाव का उस स्थिति में बोध करना। मैंने इन्हीं चार प्रक्रियाओं द्वारा शराब की बोतलों की सृष्टि की थी।


क्रमशः--


नोध : इस लेख में दी गई सभी बातें सामान्य जानकारी के लिए है हमारी पोस्ट इस लेख की कोई पुष्टि नहीं करता

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