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12/21/2021

नवगुंजर अवतार ( श्रीहरि के इस विचित्र अवतार का वर्णन )

   
                           
   

नवगुंजर अवतार श्रीहरि के इस विचित्र अवतार का वर्णन )




भगवान विष्णु के मुख्य 10 (दशावतार) एवं कुल 24 अवतार माने गए हैं किन्तु यह उनका एक ऐसा अवतार भी है जिसके विषय में बहुत ही कम जानकारी है। इस अवतार का महाभारत या किसी भी पुराण में कोई वर्णन नहीं है, केवल उड़ीसा के लोक कथाओं में श्रीहरि के इस विचित्र अवतार का वर्णन मिलता है। वहाँ नवगुंजर को श्रीकृष्ण का अवतार भी माना जाता है।


उड़ीसा का महाभारत जिसकी रचना 15वीं शताब्दी में जन्में उड़ीसा के आदि कवि माने जाने वाले श्री सरला दास ने की है में ही केवल नवगुंजर अवतार का वर्णन मिलता है। #महाभारत के अतिरिक्त उड़िया #बिलंका_रामायण की भी रचना भी इनकी है। 


इनके द्वारा लिखे महाभारत का मूल स्वरुप तो महर्षि व्यास के महाभारत का ही है किन्तु इसमें इन्होने अपनी अपूर्व मौलिकता दर्शाते हुए कुछ बातें अपनी ओर से भी जोड़ी हैं जिसका कोई वर्णन मूल महाभारत में नहीं है। नवगुंजर अवतार भी उन्ही में से एक है।


इनके द्वारा लिखित महाभारत के अनुसार जब अर्जुन अपने निर्वासन के दौरान मणिभद्र की पहाडियों में तपस्या कर रहे थे तब इन्होने इस अद्भुत जीव के दर्शन किये। इस जीव का पूरा शरीर 9 भिन्न पशुओं का मिश्रण था और आकर बहुत बड़ा था। जब अर्जुन ने इन्हे देखा तो वे घबरा गए और उन्होंने अपनी रक्षा के लिए गांडीव धारण किया। वे उस विचित्र प्राणी पर आक्रमण करने ही वाले थे कि उन्होंने सोचा कि ऐसा कोई जीव तो इस पृथ्वी का हो ही नहीं सकता। तब उन्होंने ध्यान से देखा तो उन्हें उस प्राणी के हाथों में #कमल_का_पुष्प दिखाई दिया। ये देख कर वे समझ गए कि ये जीव अवश्य ही श्रीहरि का अवतार है। सत्य से परिचित होते ही प्रभु #श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए और बताया कि विश्वरूप की ही भांति ये भी इनका एक रूप है।


इस अवतार का "नवगुंजर" नाम 9 प्राणियों के मिश्रण होने के कारण पड़ा है। वे हैं:


सर: मुर्गे का

गर्दन: मयूर का

कूबड़: ऋषभ का

कमर: शेर की

पिछला बांया पैर: बाघ का

पिछला दायां पैर: अश्व का

अगला बांया पैर: गज का

अगला दायां पैर: मनुष्य का

पूँछ: सर्प की


श्रीकृष्ण का अर्जुन को अपने इस अवतार को धारण करने का कारण समझाया था कि इतनी विविधताओं से भरे जीवों को मिला कर भी एक सम्पूर्ण मनुष्य की रचना हो सकती है। 


नवगुंजर को नौ अलग-अलग दिशाओं से देखने पर मनुष्य को अलग-अलग जीव दृष्टिगोचर होते थे किन्तु वास्तव में वो प्राणी एक ही था। इसका अर्थ ये है कि किसी मनुष्य को देखने का दृष्टिकोण अलग-अलग मनुष्यों का भिन्न हो सकता है, किन्तु वास्तव में वो मनुष्य वही होता है जो वो है। इसे साधारण भाषा में समझें तो इस अवतार के द्वारा श्रीकृष्ण ने अर्जुन को "एकम सत विप्रा बहुधा वदन्ति" का सूत्र दिया, अर्थात "सत्य एक ही होता है जिसे ज्ञानी मनुष्य अलग-अलग नामों से बुलाते हैं।"


भगवान के इस नवगुंजर अवतार का महत्त्व अद्वैत साहित्य में बहुत है। इस अद्भुत अवतार की कलाकृति पुरी जगन्नाथ मंदिर में स्थापित है। इसके अतिरिक्त जगन्नाथ मंदिर के नीलचक्र पर 8 नवगुंजरों की आकृति उकेरी गयी है जिसे देखने दूर-दूर से लोग वहाँ आते हैं। इसके अतिरिक्त उड़ीसा में खेले जाने वाले एक प्राचीन खेल "गंजपा" में भी नवगुंजर एवं अर्जुन एक पात्र के रूप में उपस्थित होते हैं। ये श्रीकृष्ण के विषरूप का ही एक रूप माना जाता है।

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