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12/21/2021

देवरानी जेठानी मन्दिर # ताला अमेरिकापा गांव विलासपुर जिल छत्तीसगढ़

   
                           
   

देवरानी जेठानी मन्दिर ताला अमेरिकापा गांव विलासपुर जिल छत्तीसगढ़ 




भगवान शिव की यह प्रतिमा 5-6वीं सदी की है। मूर्ति 5 टन बजनी औऱ 9 फीट ऊंची है। कहते हैं कि यह दुनिया की अनूठी प्रतिमा हैं 


देवरानी-जेठानी मन्दिर छत्तीसगढ़ राज्य में बिलासपुर जिले में ताला अमेरिकापा के गांव के पास मनियारी नदी के तट पर स्थित है। 


प्राचीन काल में दक्षिण कोसल के शरभपुरीय राजाओं के राजत्वकाल में मनियारी नदी के तट पर ताला नामक स्थल पर अमेरिकापा गाँव के समीप दो शिव मंदिरों का निर्माण कराया गया था जिनका संछिप्त विवरण निम्नानुसार है –

देवरानी मंदिर –  इस मंदिर का मुख पूर्व दिशा की ओर है।मंदिर के पीछे की ओर शिवनाथ की सहायक नदी मनियारी प्रवाहित हो रही है |इस मंदिर का माप बाहर की ओर से 7532 फीट है जिसका भुविन्यास अनूठा है | इसमें गर्भगृह ,अन्तराल एवं खुली जगहयुक्त संकरा मुखमंड़प है |मंदिर में पहुँचने के लिए मंदिर द्वार की चंद्रशिलायुक्त देहरी तक सीढ़ियाँ निर्मित है|मुख मंडप में प्रवेश द्वार है |मन्दिरं की द्वार पर नदी देवियो का अंकन है |सिरदल में ललाट बिम्ब में गजलक्ष्मी का अंकन है | इस मंदिर में उपलब्ध भित्तियो की उचाई 10 फीट है इसमें शिखर अथवा छत का आभाव है इस मंदिर स्थली से हिन्दू मत के विभन्न देवी-देवताओं ,वयंतर देवता,पशु ,पोराणिक आकृतिया ,पुष्पांकन एवं विविध ज्यामितिक एवं अज्यामितिक प्रतिको के अंकनयुक्त प्रतिमाये एवं वास्तुखंड प्राप्त हुए है |


जेठानी मंदिर – दक्षिणाभीमुखी यह मन्दिर भी भगवान शिव को समर्पित है। भग्नावशेष के रूप में ज्ञात संरचना को उत्खनन से अनावृत किया गया है। किन्तु कोई भी इसे देखकर इसकी भू-निर्माण योजना के विषय में जान सकता है।सामने इसके गर्भगृह एवं मंडप है जिसमे पहुँचाने के लिए दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम दिशा से प्रविष्ट होते थे |मंदिर का प्रमुख प्रवेश द्वार चौड़ी सीढियों से सम्बन्ध था |इसके चारों ओर बड़े एवं मोटे स्तंभों की यष्टियां बिखरी पड़ी हुई है और ये उनके प्रतीकों के अन्कंयुक्त है| स्तंभ के निचले भाग पर कुम्भ बने हुए है | स्तंभों के ऊपरी भाग पर कुम्भ आमलक घट पर आधारित दर्शाया गया है जो कीर्तिमुख से निकली हुई लतावल्लरी से अलंकृत है |मंदिर का गर्भगृह वाला भाग बहुत अधिक क्षतिग्रस्त है और मंदिर के ऊपरी शिखर भाग के कोई प्रणाम प्राप्त नहीं हुए हैं | दिग्पाल देवता या गजमुख चबूतरे पर निर्मित किये गये हैं। निःसंदेह ताला स्तिथ स्मारकों के अवशेष भारतीय स्थापत्यकला के विलक्षण उदहारण है | 


   दुर्लभ रुद्रशिव: देवरानी-जेठानी मंदिर भारतीय मूर्तिकला और कला के लिए बहुत प्रसिद्ध है। 1987-88 के दौरान  देवरानी मंदिर में खुदाई में भगवान शिव की एक बेहद अनोखी ‘रुद्र’ छवि वाली मूर्ति प्रकट हुई।

  शिव जी की यह अनूठी मूर्ति विभिन्न प्राणियों का उपयोग करके तैयार की जाती है। प्रतीत होता है कि मूर्तिकार ने  शरीर रचना का हिस्सा बनने के लिए हर कल्पनीय प्राणी का उपयोग किया है, जिसमें से नाग एक पसंदीदा प्रतीत होता है।

यह विशाल  द्विभूजी प्रतिमा समभंगमुद्रा में खड़ी है तथा इसकी ऊँचाई 2.70 मीटर है। यह प्रतिमा शास्त्र के लक्षणों की दृष्टी से विलक्षण प्रतिमा है | इसमें मानव अंग के रूप में अनेक पशु, मानव अथवा देवमुख एवं सिंह मुख बनाये गये है | इसके सिर का जटामुकुट  जोड़ा सर्पों से निर्मित है | ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ के कलाकार को सर्प-आभूषण बहुत प्रिय था क्योंकि प्रतिमा में रुद्रशिव का कटी, हाथ एवं अंगुलियों को सर्प के भांति आकार दिया गया है | इसके अतिरिक्त प्रतिमा के ऊपरी भाग पर दोनों ओर एक-एक सर्पफण छत्र कंधो के ऊपर प्रदर्शित है | इसी तरह बायें पैर लिपटे हुए, फणयुक्त सर्प का अंकन है |दुसरे जीव जन्तुओ में मोर से कान एवं कुंडल, आँखों की भौहे एवं नाक छिपकली से,मुख की ठुड्डी केकड़ा से निर्मित है तथा भुजायें मकरमुख से निकली हैं | सात मानव अथवा देवमुख शरीर के विभिन अंगो में निर्मित हैं । निर्माण शैली के आधार पर ताला के पुरावशेषों को छठी शती ईसवीं के पूर्वाद्ध में रखा जा सकता है |

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