काशीराज काली मंदिर ( वाराणसी )
मंदिरों के इस शहर काशी में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जिन्हें देखने के बाद सहसा ही मन कह उठता है ष्लाजवाबष्। स्थापत्य कला की दृष्टि से बेहतरीन मंदिरों में से एक है काशी राज काली मंदिर।
इस मंदिर में काली जी की भव्य प्रतिमा के साथ शिवलिंग और अन्य देवी.देवताओं की मूर्तियां विराजमान हैं। पूरी तरह से पत्थर से निर्मित यह रथाकार विशाल मंदिर कारीगरी का नायाब उपहार है।
गोदौलिया चौराहे से चौक जाने वाले रास्ते पर करीब बीस कदम की दूरी पर दाहिने हाथ पर बेहद कलात्मकता लिए बड़ा सा पत्थर का गेट है। इसी द्वार से भीतर जाने पर काशीराज काली मंदिर है।
इस मंदिर का निर्माण काशी नरेश श्री नरनारायण की पत्नी जो कि प्रभुनारायण की मां थी ने संवत 1943 में कराया था। इस मंदिर के निर्माण में उस समय के बेहतरीन कारीगरों ने छैनी हथौड़ा से नक्काशी की थी।
मंदिर को सुन्दर और आकर्षक बनाने के लिए बड़ी ही बारीकी से कार्य किया गया। मंदिर के हर हिस्से की बनावट का खास ध्यान रखा गया है।
इसका प्रमाण मंदिर के अगल.बगल और पीछे का हिस्सा है। इस हिस्से पर दरवाजे का आकार बना है जो हुबहू लकड़ी के दरवाजे सा प्रतीत होता है। लेकिन यह लकड़ी का दरवाजा न होकर पत्थर पर नक्काशी का बेहतरीन नमूना है। पत्थर पर त्रिस्तरीय निर्माण किया गया है। इसकी भित्ती पर शंखनुमा आकृति बनी हुई है। मंदिर की दीवारों पर छोटे.छोटे मंदिरए घण्टे सहित अन्य आकृतियों को बड़ी ही बारीकी से उभारा गया है।
मंदिर को आकर्षक बनाने के लिए किये गये मेहनत का अंदाजा इसके खम्भों से लगाया जा सकता है। मंदिर के प्रत्येक खम्भों के निर्माण में छः महीने का समय लगा था। जिससे इसके खम्भे आज भी बेहद खूबसूरत बने हुए हैं। मंदिर सुबह पांच बजे खुलता है इसी दौरान आरती होती है। दिन में 11 बजे मंदिर का गर्भगृह बंद हो जाता है फिर पुनः शाम चार बजे खुलता है जो रात आठ बजे शयन आरती तक खुला रहता है। महाशिवरात्रि के दिन मंदिर में कार्यक्रम आयोजित होता है।
स्थापत्य कला की दृष्टि से जितनी बेहतरीन इस मंदिर की बनावट है उसी प्रकार इसका मुख्य द्वार भी आकर्षक है। जो गोदौलिया से चौक जाने वाले मार्ग पर स्थित है। इस मंदिर परिसर में ही काशी खण्डोक्त गौतमेश्वर महादेव का मंदिर भी है।
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