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1/27/2023

शीतला षष्ठी

   
                           
   
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          शीतला षष्ठी व्रत का पालन महिलाएं करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से दैहिक और दैविक ताप से मुक्ति मिलती है। साथ ही यह व्रत पुत्र प्रदान करने वाला और सौभाग्य देने वाला होता है। जो महिलाएं पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखती हैं उनके लिए ये व्रत उत्तम कहा गया है। साथ ही इस व्रत को करने से मन शीतल रहता है। इसके अलावा चेचक से भी मुक्ति मिलती है।

                                  विधि

          शीतला षष्ठी व्रत के दिन व्रत रखने वालों को जल्दी उठाना चाहिए। इसके बाद नहा-धोकर शीतला माता की पूजा करें। इस दिन गर्म खाद्य-पदार्थ का सेवन नहीं किया जाता है। साथ ही गर्म पानी से स्नान करना भी वर्जित है। इसलिए इसका ध्यान रखें। 
          शीतला षष्ठी के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है। इस दिन चूल्हे का पूजन किया जाता है। पूजा के लिए सभी नैवेद्य या भोग एक दिन पहले ही बना लेना चाहिए। लकड़ी के पटरे या चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर, उस पर शीतला माता की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। 
          स्वयं आसन पर बैठकर शीतला माता के चरणों को धोने के लिए जल अर्पित करें तदुपरान्त आचमन करने के लिए जल अर्पित करें और अन्त में स्नान लिए जल अर्पित करें।
          मन्त्रोच्चारण के साथ वस्त्र अर्पित करें–‘इदं वस्त्र समर्पयामि, ॐ श्रीं शीतलायै नमः’ इसके बाद चंदन और अक्षत का तिलक अर्पित करें। फिर पुष्प और पुष्पमाला अर्पित करें। इसके बाद शीतला माता को धूप-दीप दिखाएँ। भोग में जो बासा कल रात बनाया हो उस भोजन का भोग अर्पित करें। इसके बाद शीतला षष्ठी व्रत की कथा सुनें-सुनाएँ। कथा के बाद शीतला माता की आरती करें। पूजा के बाद दोनों हाथ जोड़कर शीतला माता से क्षमा प्रार्थना करते हुए कहें–

        आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
        पूजां  चैव  न  जानामि   क्षमस्व  परमेश्वरि॥
        मन्त्रहीन   क्रियाहींन    भक्तिहीनं  सुरेश्वरि।
        यत्पूजितं  मया   देवि   परिपूर्णं  तदस्तु  मे॥

                          शीतला षष्ठी कथा

          पौराणिक काल की बात है एक गांव में एक वृद्ध ब्राह्मण दम्पति रहते थे। उनके सात पुत्र और पुत्रवधु थी, किन्तु दुर्भाग्यवश सभी पुत्र नि:संतान थे। एक वृद्धा ने उस ब्राह्मणी को कहा कि वे अपने सभी पुत्रवधुओं सहित शीतला माता का षष्ठी व्रत करें। उस वृद्धा की बात मानकर ब्राह्मणी ने अपनी सभी पुत्रवधुओं सहित शीतला माता का षष्ठी व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसकी सभी पुत्रवधुओं को संतान का सुख प्राप्त हुआ। भूलवश एक बार ब्राह्मणी तथा उसकी बहुओं ने शीतला व्रत विधि के विपरीत गर्म जल से स्नान कर लिया तथा आग जलाकर व्रत के दिन भोजन बनाकर भोजन कर लिया। इससे शीतला माता रूष्ठ हो गईं और उसी रात ब्राह्मणी ने भयानक स्वप्न देखा और उसकी आँख खुल गई। जागने पर उसने देखा कि उसके परिवार के सभी सदस्य मृत हो चुके हैं।
          यह देखकर ब्राह्मणी विलाप करने लगी। उसके विलाप को सुनकर पास पड़ोस के लोग इकट्ठे हो गए और उन्होंने उस ब्राह्मणी को कहा कि यह सब शीतला माता का प्रकोप है क्योंकि तुमने शीताला षष्ठी के व्रत में गर्म जल से स्नान तथा गर्म भोजन कर व्रत भंग किया है। यह सुनकर वह रोती हुई घने वन की ओर जाने लगी। रास्ते में उसे एक बुढ़िया दिखाई पड़ी, वह बुढ़िया अग्नि की ज्वाला में तड़प रही थी। 
          बुढ़िया ने ब्राह्मणी से कहा कि इस जलन को दूर करने के लिए उसके शरीर पर दही का लेप करें। तब उस ब्राह्मणी ने कहीं से दही लाकर बुढ़िया के शरीर पर लगाया जिससे उस बुढ़िया की जलन समाप्त हो गई। तब उस ब्राह्मणी ने उस बुढ़िया रूपी माता से अपने भूल की क्षमा मांगी और अपने परिवार को पुन: जीवित करने की याचना की।
          शीतला माता उस ब्राह्मणी का पश्चाताप देखकर उससे कहा कि वह अपने घर जाए और परिवार के सभी सदस्य पर दही का लेप करे। ब्राह्मणी ने वैसा ही किया। शीतला माता की कृपा से ब्राह्मणी के परिवार के सभी सदस्य जीवित हो गए। उस दिन से ही इस व्रत को संतान की प्राप्ति तथा दीर्घायु के लिए किया जाता है।
                         
                           "जय जय श्री राधे"

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