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10/09/2022

शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक महत्व !

   
                           
   

शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक महत्व !


9 अक्टूबर 2022 रविवार


हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन माह की शुरुआत से कार्तिक महीने के अंत तक शरद ऋतु रहती है। शरद ऋतु में 2 पूर्णिमा पड़ती है। इनमें अश्विन माह की पूर्णिमा महत्वपूर्ण मानी गई हैं। 


इसी पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार इस बार शरद पूर्णिमा रविवार, 9 अक्टूबर को है। इसे कोजगार पूर्णिमा भी कहते हैं, वहीं इसके अलावा जागृति पूर्णिमा या कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। पुराणों के अनुसार कुछ रातों का बहुत महत्व है ! जैसे नवरात्रि, शिवरात्रि और इनके अलावा शरद पूर्णिमा भी शामिल है। 




श्रीमद्भागवत के अनुसार:---


श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार चन्द्रमा को औषधि का देवता माना जाता है। इस दिन चांद अपनी 16 कलाओं से पूरा होकर अमृत की वर्षा करता है। मान्यताओं से अलग वैज्ञानिकों ने भी इस पूर्णिमा को खास बताया है, जिसके पीछे कई सैद्धांतिक और वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं।


 इस पूर्णिमा पर चावल और दूध से बनी खीर को चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। इससे रोग खत्म हो जाते हैं और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।  


वैज्ञानिक शोध के अनुसार चांदी का विशेष महत्व:---


एक अन्य वैज्ञानिक शोध के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। इस दिन बनने वाला वातावरण दमा के रोगियों के लिए विशेषकर लाभकारी माना गया है।  


चंद्रमा से बढ़ जाता है औषधियों का प्रभाव:---


एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा पर औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। यानी औषधियों का प्रभाव बढ़ जाता है रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।


 लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।  


क्यों बनाई जाती है खीर ?


वैज्ञानिकों के अनुसार दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और भी आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। इससे पुनर्योवन शक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।


तमाम रोगों के लिए चमत्कारी खीर !


खीर में मौजूद सभी सामग्री जैसे दूध, चीनी और चावल के कारक भी चंद्रमा ही है इसलिए इनमें चन्द्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है। शरद पूर्णिमा के दिन खुले आसमान के नीचे खीर पर जब चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तो यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क है कि दूध में लैक्टिक अम्ल होता है जो कि चंद्रमा की किरणों से रोगाणुनाशक शक्ति अर्जित करता है। चावल के स्टार्च के मिश्रण से ये प्रक्रिया और तेज हो जाती है। इस खीर को खाने से दमा, त्वचा रोग और श्वांस रोग में विशेष लाभ मिलता है। आयुर्वेद के आचार्यों ने श्वास रोग को पित्त से उत्पन्न बीमारी माना है।

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