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9/06/2022

पंच कैलाश यात्रा का क्या महत्व है?

   
                           
   

पंच कैलाश यात्रा का क्या महत्व है ?


5-मणिमहेश -कैलाश ;-


1-हिमाचलप्रदेश के चंबा शहर से करीब 85 किलोमीटर की दूरी पर बसे मणिमहेश में भगवानभोले मणि के रूप में दर्शन देते हैं। इसी कारण मणिमहेश कहा जाता है।धौलाधार, पांगी व जांस्कर पर्वत शृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वतमणिमहेश-कैलाश के नाम से जाना जाता है। हजारों साल से श्रद्धालु रोमांचक यात्रा पर आ रहे हैं।


2-चंबा को शिवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताहै कि भगवान शिव इन्हीं पहाड़ों में निवास करते हैं। मणिमहेश यात्रा कबशुरू हुई, इसके बारे में अलग-अलग विचार हैं, लेकिन कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव ने कई बार अपने भक्तों को दर्शन दिए हैं। 13,500 फुट की ऊंचाई परकिसी प्राकृतिक झील का होना किसी दैवीय शक्ति का प्रमाण है। 


आस्था के साथ रोमांच भी


3-धर्म ग्रंथों के अनुसार हिमालय की धौलाधार, पांगी और जांस्कर शृंखलाओं सेघिरा कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से प्रसिद्ध है। श्रीकृष्णजन्माष्टमी (भाद्रपद कृष्ण अष्टमी) से श्रीराधाष्टमी (भाद्रपद शुक्लअष्टमी) तक लाखों श्रद्धालु पवित्र मणिमहेश झील में स्नान के बाद कैलाशपर्वत के दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं। पहाड़ों, खड्डों नालों से होतेहुए मणिमहेश झील तक पहुंचने का रास्ता रोमांच से भरपूर है।


4-मणिमहेश यात्राको अमरनाथ यात्रा के बराबर माना जाता है। जो लोग अमरनाथ नहीं जा पाते हैंवे मणिमहेश झील में पवित्र स्नान के लिए पहुंचते हैं। अब मणिमहेश झील तकपहुंचना और भी आसान हो गया है। यात्रा के दौरान भरमौर से गौरीकुंड तकहेलीकॉप्टर की व्यवस्था है और जो लोग पैदल यात्रा करने के शौकीन हैं उनकेलिए हड़सर, धनछो, सुंदरासी, गौरीकुंड और मणिमहेश झील के आसपास रहने के लिएटेंटों की व्यवस्था भी है।


5-गौरीकुंड पहुंचने पर प्रथम कैलाश शिखर के दर्शन होते हैं। गौरीकुंड माता गौरी का स्नान स्थल है। यात्रा में आने वाली स्त्रियां यहां स्नान करती हैं। यहांसे डेढ़ किलोमीटर की सीधी चढ़ाई के बाद मणिमहेश झील पहुंचा जाता है। यह झीलचारों ओर से पहाड़ों से घिरी हुई, देखने वालों की थकावट को क्षण भर मेंदूर कर देती है। बादलों में घिरा कैलाश पर्वत शिखर दर्शन देने के लिए कभी-कभी ही बाहर आता है इसके दर्शन उपरांत ही तपस्या सफल होती है।


6-झील के किनारे और पर्वत शिखर के नीचे एक मंदिर है जहां यात्री शीश नवाते हैं। ये मंदिर बिना छत का है। कहते हैं शिव भक्तों ने दो बार मंदिर पर छत का निर्माण करवाया पर बर्फीले तूफानों में छत उड़ गई। यात्रा शुरू होने पर हड़सर गांव के कुछ पुजारी यहां मूर्तियां लाते हैं और समाप्ति पर वापस ले जाते हैं। हजारों की संख्या में श्रद्धालु मणि महेश झील में स्नान कर पूजा करते हैं और अपनी इच्छा पूरी होने पर लोहे का त्रिशूल, कड़ी व झंडी इत्यादि चढ़ाते हैं। राधा अष्टमी वाले दिन जब सूरज की किरणें कैलाश शिखर पर पड़ती हैं तो उस समय स्नान करने से मनुष्यों को अनेक प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।


7-सुबह की पहली किरण जब मणि महेश पर्वत के पीछे से फूटती है तो पर्वत शिखर के कोने में एक अद्भुत प्राकृतिक छल्ला बन जाता है। यह दृश्य किसी बहुमूल्य नगीने की भांति होता है। इस दृश्य को देखकर शिवभक्तों की थकावट क्षण भर में दूर हो जाती है। इसके दर्शनों उपरांत झील स्थित स्थान पर नतमस्तक होने पर यात्रा पूर्ण होती है।मणिमहेश पर्वत के शिखर पर भोर में एक प्रकाश उभरता है जो तेजी से पर्वत की गोद में बनी झील में प्रवेश कर


जाता है। यह इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर बने आसन पर विराजमान होने आ गए हैं तथा ये अलौकिक प्रकाश उनके गले में पहने शेषनाग की मणि का है। इस दिव्य अलौकिक दृश्य को देखने के लिए यात्री अत्यधिक सर्दी के बावजूद भी दर्शनार्थ हेतु बैठे रहते हैं।


8-हिमाचलसरकार ने इस पर्वत को टरकॉइज माउंटेन यानी वैदूर्यमणि या नीलमणि कहा है।मणिमहेश में कैलाश पर्वत के पीछे जब सूर्य उदय होता है तो सारे आकाश मंडलमें नीलिमा छा जाती है और किरणें नीले रंग में निकलती हैं। मान्यता है किकैलाश पर्वत में नीलमणि का गुण-धर्म हैं जिनसे टकराकर सूर्य की किरणें नीलेरंग में रंगती हैं। 


मणिमहेश यात्रा या भरमौर जातर की पौराणिक कथा;-


1-शैवतीर्थ स्थल मणिमहेश कैलाश हिमाचल प्रदेश में चंबा जिले के भरमौर में है।आदिकाल से प्रचलित मणिमहेश यात्रा कब से शुरू हुई यह तो पता नहीं मगर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह बात सही है कि जब मणिमहेश यात्रा पर गुरु गोरखनाथ अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे तो भरमौर तत्कालीन ब्रम्हापुर में रुके थे। ब्रम्हापुर जिसे माता ब्रम्हाणी का निवास स्थान माना जाता था मगर गुरु गोरखनाथ अपने नाथों एवं चौरासी सिद्धों सहित यहीं रुकने का मन बना चुके थे। वे भगवान भोलेनाथ की अनुमति से यहां रुक गए मगर जब माता ब्रम्हाणी अपने भ्रमण से वापस लौटीं तो अपने निवास स्थान पर नंगे सिद्धों को देख कर आग बबूला हो गईं।


2-भगवान भोलेनाथ के आग्रह करने के बाद ही माता ने उन्हें रात्रि विश्राम की अनुमति दी और स्वयं यहां से 3 किलोमीटर ऊपर साहर नामक स्थान पर चली गईं, जहां से उन्हें नंगे सिद्ध नजर न आएं मगर सुबह जब माता वापस आईं तो देखा कि सभी नाथ व चौरासी सिद्ध वहां लिंग का रूप धारण कर चुके थे जो आज भी इस चौरासी मंदिर परिसर में विराजमान हैं। यह स्थान चौरासी सिद्धों की तपोस्थली बन गया, इसलिए इसे चौरासी कहा जाता है। गुस्से से आग बबूला माता ब्रम्हाणी शिवजी भगवान के आश्वासन के बाद ही शांत हुईं।


3-भगवान शंकर ने दिया आशीर्वाद... भगवान शंकर के ही कहने पर माता ब्रम्हाणी नए स्थान पर रहने को तैयार हुईं तथा भगवान शंकर ने उन्हें आश्वासन दिया कि जो भी मणिमहेश यात्री पहले ब्रम्हाणी कुंड में स्नान नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं मानी जाएगी। यानी मणिमहेश जाने वाले प्रत्येक यात्री को पहले ब्रम्हाणी कुंड में स्नान करना होगा, उसके बाद ही मणिमहेश की डल झील में स्नान करने के बाद उसकी यात्रा संपूर्ण मानी जाती है। ऐसी मान्यता सदियों से प्रचलित है।


मणिमहेश यात्रा के बारे में;-


1-मणिमहेश झील हिमाचल प्रदेश में प्रमुख तीर्थ स्थान में से एक बुद्धिल घाटी में भरमौर से 21 किलोमीटर दूर स्थित है। झील कैलाश पीक (18,564 फीट) के नीचे13,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। हर साल, भाद्रपद के महीने में हल्के अर्द्धचंद्र आधे के आठवें दिन, इस झील पर एक मेला आयोजित किया जाता है, जो कि हजारों लाखों तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है, जो पवित्र जल में डुबकी लेने के लिए इकट्ठा होते हैं। भगवान शिव इस मेले / जातर के अधिष्ठाता देवता हैं। माना जाता है कि वह कैलाश में रहते हैं।


2-कैलाश पर एक शिवलिंग के रूप में एक चट्टान के गठन को भगवान शिव की अभिव्यक्ति माना जाता है।स्थानीय लोगों द्वारा पर्वत के आधार पर बर्फ के मैदान को शिव का चौगान


कहा जाता है।कैलाश पर्वत को अजेय माना जाता है। कोई भी अब तक इस चोटी को माप करने में सक्षम नहीं हुआ है, इस तथ्य के बावजूद कि माउंट एवरेस्ट सहित बहुत अधिक ऊंची चोटियों पर विजय प्राप्त की है|


3-एक कहानी यह रही कि एक बार एक गद्दी ने भेड़ के झुंड के साथ पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की। माना जाता है कि वह अपनी भेड़ों के साथ पत्थर में बदल गया है। माना जाता है कि प्रमुख चोटी के नीचे छोटे चोटियों की श्रृंखला दुर्भाग्यपूर्ण चरवाहा और उसके झुंड के अवशेष


हैं।एक और किंवदंती है जिसके अनुसार साँप ने भी इस चोटी पर चढ़ने का प्रयास किया लेकिन असफल रहा और पत्थर में बदल गया। यह भी माना जाता है कि भक्तों द्वारा कैलाश की चोटी केवल तभी देखा जा सकता है जब भगवान प्रसन्न होते हैं। खराब मौसम, जब चोटी बादलों के पीछे छिप जाती है, यह भगवान की नाराजगी का संकेत है|


4-मणिमहेश झील के एक कोने में शिव की एक संगमरमर की छवि है, जो तीर्थयात्रियों द्वारा पूजी जाती हैं,जो इस जगह पर जाते हैं। पवित्र जल में स्नान के बाद, तीर्थयात्री झील के परिधि के चारों ओर तीन बार जाते हैं। झील और उसके आस-पास एक शानदार दृश्य दिखाई देता है| झील के शांत पानी में बर्फ की चोटियों का प्रतिबिंब छाया के रूप में प्रतीत होता है।


5-मणिमहेश विभिन्न मार्गों से जाया जाता है । लाहौल-स्पीति से तीर्थयात्री कुगति पास के माध्यम से आते हैं। कांगड़ा और मंडी में से कुछ कवारसी या जलसू पास के माध्यम से आते हैं। सबसे आसान मार्ग चम्बा से है और भरमौर के माध्यम से जाता है । वर्तमान में बसें हडसर तक जाती हैं । हडसर और मणिमहेश के बीच एक महत्वपूर्ण स्थाई स्थान है, जिसे धन्चो के नाम से जाना जाता है जहां तीर्थयात्रियों आमतौर पर रात बिताते हैं ।यहाँ एक सुंदर झरना है।


6-मणिमहेश झील से करीब एक किलोमीटर की दूरी पहले गौरी कुंड और शिव क्रोत्री नामक दो धार्मिक महत्व के जलाशय हैं, जहां लोकप्रिय मान्यता के अनुसार गौरी और शिव ने क्रमशः स्नान किया था | मणिमहेश झील को प्रस्थान करने से पहले महिला तीर्थयात्री गौरी कुंड में और पुरुष तीर्थयात्री शिव क्रोत्री में पवित्र स्नान करते हैं ।


 7- भगवान शिव गांव हड़सर से चलने के बाद यात्रियों को एक स्नान धनछो जल प्रपात में करना चाहिये। इसकी कहानी कही जाती है कि जब भस्मासुर भगवान शिव के सिर पर हाथ रख कर उन्हें भष्म करने के लिए प्रयास कर रहा था उस समय भगवान शिव इस जल प्रपात के अंदर छिप गये थे। काफी लंबे समय तक वो यहीं पर रहे। धनछो के आगे दो रास्ते हो जाते हैं, बांदर घाटी और भैरो घाटी;एक खड़ी चढ़ाई व दूसरा घुमावदार पहाड़ी पर पथरीला रास्ता, जहां पर सीधा पांव रखना मुश्किल होता है।। इन रास्तों पर कुछ दूर चलने के बाद हवा में आक्सीजन की कमी होनी आरंभ हो जाती है।मान्यता है कि जब दैत्यों के अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गए तब भगवान शिव की कृपा से भस्मासुर नामक दैत्य इसी स्थान पर भस्म हुआ था। शिवभक्त घराट नामक स्थान पर भीमकाय एवं विशाल पहाड़ के अंदर से बहुत भयंकर आवाजें सुनते हैं जैसे हजारों गति से हवाएं चल रही हों।


8-यात्रियों को आगे की यात्रा आक्सीजन सिलेंडर के साथ करनी पड़ती है। यहां से कुछ दूर चलने के बाद गौरीकुंड आता है। गौरीकुंड में महिलाएं स्नान करती हैं। गौरी कुंड के बाद शिवकलौत्री नामक स्थान आता है सीधे कैलाश से पानी निकल कर आता है यहां पर भी स्नान करने का विधान है । पानी बर्फ की तरह ठंडा होता है फिर भी श्रद्धालु स्नान करते हैं। गौरी कुंड के बाद पाप पुण्य का पुल आता है। गौरीकुंड से लेकर आगे तक बहुत से लंगर लगे होते हैं यहां पर हजारों यात्रियों के ठहरने का प्रबंध भी रहता है।


9-इसके आगे एक आध घंटे की यात्रा कर यात्री उपर मनीमहेश झील पर पंहुच जाते हैं।मणिमहेश कैलाश की उंचाई 18654 फुट की है जबकि मणिमहेश झील की उंचाई 13200 फुट की है। लोग मनीमहेश झील में स्नान करने के बाद अपनी अपनी श्रद्धा के अनुसार कैलाश पर्वत को देखते हुए नारियल व अन्य सामान अर्पित करते हैं झील के किनारे बने मंदिरों में भी सामान चढ़ाते हैं। 


 9-हड़सर से पैदल यात्रा;-पंजाब के पठनकोट से होते हुए बनीखेत के रास्ते चंबा 120 किलोमीटर पड़ता है। चम्बा से भरमौर 70 किलोमीटर व भरमौर से हड़सर 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इसके आगे हड़सर से मणि महेश खड़ी चढ़ाई, संकरे व पथरीले रास्तों वाली 14 मील की पैदल यात्रा है, तंग पहाड़ी में बसा हड़सर इस क्षेत्र का अंतिम गांव है।हड़सर से मणिमहेश-कैलाश 15 किलोमीटर दूर है।चंबा, भरमौर और हड़सर तक सड़क बनने से पहले चंबा से ही पैदल यात्रा शुरू हो जाती थी।  


 10-तीन चरणों में होती है यात्रा 


तीन चरणों में होती है यात्रा वास्तव में पहले यात्रा तीन चरणों में होती थी। पहली यात्रा रक्षा बंधन पर होती थी। इसमें साधु संत जाते थे। दूसरा चरण भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर किया जाता था जिसमें जम्मू काशमीर के भद्रवाह , भलेस के लोग यात्रा करते थे। ये सैंकड़ों किलो मीटर की यात्रा पैदल ही अपने बच्चों सहित करते हैं। तीसरा चरण दुर्गाअष्टमी या राधा अष्टमी को किया जाता है जिसे राजाओं के समय से मान्यता प्राप्त है। अब प्रदेश सरकार ने भी इसे मान्यता प्रदान की है।





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