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6/16/2022

श्मशान की सिद्ध भैरवी ( भाग--17 )

   
                           
   

श्मशान की सिद्ध भैरवी भाग--17 )


परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अलौकिक अध्यात्म-ज्ञानधारा में अवगाहन


पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि-कोटि नमन


        सायंकाल कालीबाड़ी गया, भट्टाचार्य महाशय से मिलकर मैंने अपनी स्थिति बतलायी, सपने की बात भी सुनाई। बहुत देर तक वह मौन रहे, फिर बोले--वह प्रधान कापालिक अत्यन्त कठोर भयानक प्रवृत्ति का साधक है। उसके बारे में चारुबाबू से बहुत कुछ सुन रखा है मैंने।

       कौन चारुबाबू ?

       बहुत बड़े तंत्र-साधक हैं चारुबाबू। उनका पूरा नाम था--चारुचंद्र गांगुली। रानी भवानी मंदिर के बगल वाले मकान में वह रहते थे। प्रायः अमावस्या की रात्रि में वह कापालिक भेष बदल कर किसी राजे-रजबाड़े की तरह सज-धज कर उनके यहाँ पहुँच जाया करता था।

       क्यों, किसलिए ?

       मदिरा-पान करने के लिए। दोनों एक साथ बैठकर खूब मदिरा-पान करते थे पूरी रात।

       अच्छा।

       हाँ, इसके साथ वे भैरवी साधना भी करते थे--भट्टाचार्य महाशय 'हो-हो' कर हंसे, फिर कहने लगे--चारु बाबू की एक लड़की थी--काकुली। मुझे तो अब ऐसा लगता है कि शायद मदिरा-पान के बहाने वह असुर काकुली के लिए ही वहां जाया करता था।

        काकुली बहुत ही सुन्दर और आकर्षक थी। 15-16 वर्ष से अधिक उम्र नहीं थी उसकी उस समय। चम्पई रंग, सुनहरी, काली चमकीली केश-राशि, नुकीली नाक, मोरनी जैसी ऑंखें, जिनमें हमेशा एक सपना-सा तैरा करता था। गुलाब जैसे होठों पर हमेशा लाजभरी मुस्कराहट तैरा करती थी।

       घर में और कोई नहीं था। इसलिए जब वे दोनों मदिरा-पान करने बैठते तो काकुली को दौड़-दौड़ कर कभी गिलास, कभी पानी और कभी भुनी हुई मछली लानी पड़ती थी। आखिर कब तक बचती वह बेचारी। एक दिन उस कापालिक की नज़र उसके सौंदर्य की सुगन्ध में लिपटे यौवन पर पड़ ही गयी और वह उस अछूते यौवन का अपनी भयानक साधना में उपयोग करने के लिए लालायित हो उठा।

       चारु बाबू इन सब बातों से अनजान रहे हों, ऐसी बात नहीं। सब कुछ जानते-समझते थे वह, लेकिन विवश थे बेचारे।

        क्यों, विवशता किस बात की ?

        वह कुछ महत्वपूर्ण तान्त्रिक सिद्धियां प्राप्त करना चाहते थे उस कापालिक से। उसने भी अगली दीपावली को मनचाही सिद्धियां प्रदान करने का आश्वासन दिया था चारुबाबू को। बस, इसी लालच के कारण वह मौन रह गए। आखिर जो होना था, वह होकर ही रहा। उस राहु ने ग्रस ही लिया काकुली को एक दिन।

        यह बात नहीं कि काकुली ने विरोध न किया हो। मगर उस भयानक कापालिक के सामने उसका कोई विरोध टिक न सका। अन्त में निढाल होकर अपने-आपको भाग्य भरोसे छोड़ दिया उसने। उसका एक प्रेमी था। उसके साथ विवाह भी तय हो गया था काकुली का। लेकिन जब उस प्रेमी ने यह सब सुना तो एक दिन जहर खाकर आत्महत्या कर ली उसने।

        फिर, फिर क्या हुआ ?

        फिर क्या होगा ? चारुबाबू को दुर्लभ सिद्धियां मिली या नहीं--यह तो बतलाया नहीं जा सकता, लेकिन काकुली का रूप और यौवन अवश्य तान्त्रिक साधना की बलि-वेदी पर उत्सर्ग हो गया। इस घटना को घटे पूरे 20 वर्ष हो गए, मगर काकुली का कोई पता नहीं चला कि वह कहाँ है ? कोई यह भी नहीं जानता कि वह जीवित है भी या नहीं। चारुबाबू भी नहीं जानते। घोर पश्चाताप के सिवाय और कुछ नहीं रह गया अब उनके पास। हर समय निराशा के सागर में डूबे रहते वह।


क्रमशः--


नोध : इस लेख में दी गई सभी बातें सामान्य जानकारी के लिए है हमारी पोस्ट इस लेख की कोई पुष्टि नहीं करता





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