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5/11/2022

श्मशान की सिद्ध भैरवी ( भाग--07 )

   
                           
   

श्मशान की सिद्ध भैरवी ( भाग--07 )




परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अलौकिक अध्यात्म-ज्ञानधारा का पावन अवगाहन


पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि वन्दन


-----------:तीन प्रकार की आत्मा:-----------        ***********************************


      इस प्रकार पारलौकिक जगत में तीन प्रकार की आत्माएं हैं। पहली है--प्रेतात्मा, दूसरी है--सूक्ष्मात्मा और तीसरी है--देवात्मा। इस दृष्टि से पारलौकिक जगत भी तीन मुख्य भागों में विभक्त है। पहले में देवत्माएँ निवास करती हैं। दूसरे में सूक्ष्मात्मायें और तीसरे में रहती हैं--प्रेतात्माएँ। तमोबल का सम्पूर्ण विषय पारलौकिक जगत से ही सम्बंधित है।


------:मरते समय धार्मिक पुस्तकों के श्रवण का रहस्य:------

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      मैंने पूछा--मरते समय मन आत्मा में कैसे लीन हो सकता है ?

       

      एकाग्रता से--स्वर्णा ने बताया--मरते समय मन कहीं भटक नहीं रहा है अथवा किसी प्रकार वासना में डूबा हुआ नहीं है तो ऐसी स्थिति में वह अपने आप आत्मा में लीन हो जाता है। मरते समय शरीर से आत्मा अलग होते समय मन स्थिर और एकाग्र रहे--इसी कारण उस समय लोगों को धार्मिक पुस्तकों को पढ़कर सुनाया जाता है..भगवान का नाम सुनाया जाता है। इन सबसे केवल इतना ही लाभ है कि मन कुछ क्षणों के लिए स्थिर और एकाग्र हो जाता है। यदि उन्हीं कुछ क्षणों में आत्मा ने शरीर छोड़ दिया तो समझ लो कि मन उसमें लीन हो चुका है।

      तीनों प्रकार की आत्माएं अपनी-अपनी सीमा में भटकती रहती हैं शरीर पाने के लिए, लेकिन शरीर उन्हें तभी मिलता है जब उनके मन की प्रमुख वासनाएं क्षीण हो जाती हैं और वह आत्मा में लीन हो जाता है। इसमें एक दिन भी लग सकता है और एक हज़ार वर्ष भी। वे तीनों प्रकार की आत्माएं अपनी-अपनी वासनाओं के अनुरूप मनुष्य की अच्छी-बुरी सहायता करने के लिए बराबर तैयार रहा करती हैं। अनजाने में सहायता किया भी करती हैं। पारलौकिक जगत के रहस्यों से जो लोग परिचित हैं और तमोबल पर जिनका अधिकार है, वे इन तीनों प्रकार की आत्माओं से इच्छानुसार संपर्क स्थापित कर सकने में समर्थ होते हैं और संपर्क स्थापित करके उनसे इच्छानुसार सहयोग भी प्राप्त करते हैं।

       प्रेतात्माओं की स्थिति तो तामसिक वासनाओं के कारण पागलों जैसी होती है, इसलिए उनसे किसी प्रकार का स्थायी सहयोग नहीं प्राप्त किया जा सकता है। वे केवल मंत्र-बल के प्रभाव के वशीभूत होकर भभूत, लोंग, इलाइची आदि ही ला सकती हैं। इनसे कहीं अधिक प्रबल व शक्तिशाली होती हैं--सूक्ष्मात्माएँ।  उनसे जो सहायता या सहयोग प्राप्त होता है, उनमें थोड़ा स्थायित्व होता है। उनसे संपर्क स्थापित करने के लिए मंत्र-बल के साथ-साथ इच्छा-शक्ति का होना भी आवश्यक है। मन्त्र और इच्छा इन दोनों की मिश्रित शक्तियों के वशीभूत होकर वे सूक्ष्मात्मायें एक विशेष सीमा तक मनुष्य की सहायता करती हैं। मनोनुकूल कार्य भी करती हैं।

       तीसरी हैं--देवात्माएँ।  वे बहुत ही शक्तिशाली और क्षमता वाली होती हैं। सूक्ष्म जगत की सबसे प्रबल एवं शक्ति-संपन्न आत्मा समझी जाती हैं। उनसे संपर्क स्थापित करने और मनोनुकूल सहयोग प्राप्त करने के लिए विशेष यौगिक क्रियाओं की आवश्यकता पड़ती है।

      विशेष रूप से वे देवात्माएँ मनुष्य के विचारों और भावों को प्रभावित करती हैं। आध्यात्मिक और बौद्धिक चिंतन-मनन की दिशा में उनका सहयोग विशेष रूप से प्राप्त होता है। ज्ञान-विज्ञान के तिमिराच्छन्न रहस्यों को समझने तथा उन्हें प्रकाश में लाने की दिशा में भी वे सहायता करती हैं।--स्वर्णा ने कहा--यह बताने की आवश्यकता नहीं है--अब तक भारतीय साहित्य, संस्कृति तथा ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में जो भी प्रगति हुई है या हो रही है--वह सब उन्हीं की अगोचर सहायता से हुई है और हो रही है। मनुष्य मस्तिष्क में फैले हुए सूक्ष्म ज्ञान-तंतुओं से उन आत्माओं का सम्बन्ध रहता है। मनुष्य जिस दिशा में सोचता-विचारता है, तत्काल उसी दिशा में वे उसकी सहायता करने लग जाती हैं। वास्तव में सूक्ष्म अथवा पारलौकिक जगत की  इन तीनों प्रकार की आत्माओं का कार्य-व्यापार अत्यधिक रहस्यमय है। उनकी मति-गति और क्रिया-कलाप भी कम रहस्यमय और विलक्षण नहीं है, फिर भी उन्हें मानवीय श्रेणी में ही लिया जाता है, क्योकि वे कभी मनुष्य थीं और भविष्य में भी उनके मनुष्य होने की पूरी संभावना है।


क्रमशः--


नोध : इस लेख में दी गई सभी बातें सामान्य जानकारी के लिए है हमारी पोस्ट इस लेख की कोई पुष्टि नहीं करता

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