3 नवम्बर 1947 अगर उस दिन 50 वीर अहीर न होते तो आज श्री नगर पाकिस्तान में होता ।
आज ही के दिन 700-800 पठानों की तादाद में पाकिस्तानी सेना श्रीनगर के उद्गम स्थल में बडगाम एयरपोर्ट पहुंची थी।
50 वीर अहीरों की कंपनी [A-Company, 4 to Kumau] बडगाम में 700-800 पाकिस्तानियों के साथ फसी हुई। कंपनी के मेजर साहब ने अनुभवी हवलदारजी से पूछा - क्या करूँ ?
50 जवानों की जिंदगी का सवाल राव साहब ने कहा- "मेजर साहब, अहीर पीछे नहीं हटते। हमारे सामने तीन सड़कें खुली हैं। चौथा रास्ता जो युद्ध के मैदान से बाहर जाता है, हमारे लिए बंद है। 50 लोगों की जान बचाई तो श्रीनगर नहीं रहेगा। मुख्यालय से मदद मांगो, हम अपना काम शुरू करते हैं। "मेजर साब मुख्यालय से बुलाने गए और गोली का शिकार हो गए। भीषण युद्ध हुआ था। गोलियों की बारिश से आदमी ही नहीं जंगल के पेड़ भी उजागर हो रहे थे
अहीरों ने एक बार फिर दिखा दिया कि वो तलवार चलाने में ही नहीं, बंदूक चलाने में भी निपुण हैं। 8 घंटे बाद सुबह जब 1 कुमाऊ सैनिक और दुश्मन
जब मुआवजे के लिए प्रतिपूर्ति आई तो देखा कि तीनो तरफ ए कंपनी से घिरने के बावजूद 8 घंटे में 300 से ज्यादा पठानों को परलोक भेज दिया गया और बाकी फरार हो गए।
मेजर सोमनाथ शहीद हो गए थे और उन्हें भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार - परम वीर चक्र दिया गया था, जिसे उनकी सास ने डिजाइन किया था, जब वे युद्ध शुरू होने के कुछ ही मिनट बाद दुश्मन की गोलियों का शिकार हो गए थे और उनके बाएं हाथ में फ्रैक्चर हो गया था, जिसकी वजह से उन्हें नहीं हुआ था एक भी गोली चली है। (तस्वीर में देखें) इस कार्रवाई में भारतीय सेना के 23 जवान शहीद हो गए। लेकिन श्रीनगर बच गया और आज भारतीय कश्मीर का हिस्सा है। दुश्मन भी यकीन करते है और सवाल करते है, कि अहीर शेर सा लड़ाकू योद्धा है, जय हो वीर-हिरोनी
जय यादव जय माधव
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