पित्त ज्वर ( Bilious Fever )
परिचय :
पित्त गर्मी का ही अंश है। पित्त ठंड़ी शीतल वस्तुओं से शान्त होता है। इसमें नाड़ी मेढ़क या कौए की तरह कूद-कूदकर चलती है।
कारण :
नमकीन, खट्टे, गरम, तीखे और गरिष्ठ पदार्थों को ज्यादा खाने से या ज्यादा खाना, ज्यादा मेहनत, तेज धूप या आग के सामने बैठना और ज्यादा क्रोध यानी गुस्सा करने से भी इसका बुखार हो सकता है।
लक्षण :
पित्त बुखार काफी तेज रहता है। इस बुखार में शरीर ठंड़ा रहता है। पसीना ज्यादा आता है। आंखों और त्वचा का रंग पीला हो जाता है और मल पीले रंग का पतला या गाढ़ा हो जाता है। पेशाब का रंग पीला हो जाता है। दिमाग में गर्मी के बढ़ने पर बकवाद पैदा करता है। भूख को रोक देता है। मुंह का स्वाद कड़वा होता है। मुंह के अन्दर काफी कफ हो जाता है, खांसी, भूख न लगना, प्यास, आलस्य, बेहोशी, बार-बार कभी गर्मी कभी सर्दी लगना, हाथ-पैरों और सिर में दर्द, आंखों में जलन, किसी काम में मन न लगना और भ्रम जैसे लक्षण होते हैं। इसमें नाड़ी कभी ठंड़ी कभी कम ठंड़ी और पतली छोटी हो जाती है तथा हल्की गति से चलती है।
उपचार :
- पुरानी इमली 25 ग्राम और छुहारे 20 ग्राम लेकर 1 लीटर दूध में उबालकर छान लें, फिर इसे पीने से जलन और घबराहट दूर होती है।
- 25 ग्राम इमली को रात भर एक गिलास पानी में भिगोकर सुबह उस छने हुए पानी में बूरा मिलाकर ईसबगोल के साथ पिलाने से पित्तज्वर समाप्त हो जाता है।
- नीबू के साथ नागदोन खाने से पित्त का बुखार उतर जाता है।
- चावल और छुहारे को पानी में भिगो दें इससे धुले पानी के साथ 0.24 ग्राम जस्ता भस्म खाने से बुखार ठीक हो जाता है।
- पित्त बुखार की घबराहट में तुलसी के पत्तों का शर्बत बनाकर पी लें।
- अदरख और पटोलपत्र का काढ़ा पीने से उल्टी, जलन और कफ आदि का बुखार ठीक हो जाता है।
- हींग को घी में मिलाकर मालिश करने से पित्त के बुखार में लाभ होगा।
- पित्ती होने पर पिसी हुई 10 कालीमिर्च और आधा चम्मच घी मिलाकर पीएं तथा इन दोनों को ही शरीर पर मालिश करें।
- पित्तज्वर में अधिक प्यास लगने पर नींबू बिजौरा की कली, शहद तथा सेंधानमक एक साथ पीसकर मुंह के तलुवे पर लेप करने से प्यास एकदम मिट जाती है।
- काले अंगूर और अमलतास के गूदे के 40-60 मिलीलीटर काढ़े को सुबह-शाम पिलाने से पित्त के बुखार में आराम मिलता है।
- अंगूर के शर्बत के रोजाना सेवन से भी जलनयुक्त बुखार आदि रोग शान्त होते हैं।
- यदि प्यास अधिक हो तो अंगूर और मुलेठी के लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग काढ़े को दिन में 2-3 बार पित्त के बुखार में सेवन करें।
- मुनक्का, कालीमिर्च और सेंधानमक तीनों को पीसकर गोलियां बनाकर मुंह में रखें।
- बराबर मात्रा में आंवला तथा मुनक्के को अच्छी तरह महीन पीसकर थोड़ा घी मिलाकर मुंह में रखें।
- मूंग और मुलहठी का जूस बनाकर पीने से पित्त बुखार ठीक हो जाता है।
- पित्त के बुखार में शहतूत का रस या उसका शर्बत मिलाकर पिलाने से प्यास, गर्मी और घबराहट दूर हो जाती है।
- सौंफ का ठंड़ा शर्बत बनाकर पीने से बुखार की गर्मी खत्म होती है।
- सौंफ को पानी में देर तक उबालकर काढ़ा बनाकर, छानकर शर्करा को मिलाकर सेवन करने से पित्त प्रकोप से हुआ बुखार खत्म हो जाता है।
- पित्त के बुखार में अगर पेट में जलन महसूस हो तो सफेद चंदन पानी में पीसकर 20 से 25 ग्राम नाभि या पेट पर डालें।
- 10 मिलीलीटर जामुन के रस में 10 ग्राम गुड़ मिलाकर आग पर तपायें। इसे तपाकर उसके भाप को पीना चाहिए।
- 100 मिलीलीटर दूध में 5 ग्राम सोंठ का चूर्ण उबालें, फिर उसमें चीनी मिलाकर रात को सोते समय खाने से पित्तविकार दूर होता है।
- सफेद पेठे (कुम्हड़े) को छीलकर उसमें से नर्म गर्भ और बीज को निकाल दें। बीच वाला हिस्सा लगभग 3 से 4 लीटर पानी में पकायें, फिर कपड़े से निचोड़कर रस को अलग सुरक्षित रख लें। पकाए हुए सफेद पेठे को गाय के 400 ग्राम घी में, तांबे के बर्तन में डालकर हल्का भूरा होने तक सेंके। इसके बाद इसमें अलग से रखे हुए पेठे के रस तथा 3 किलो शक्कर मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर उसमें 40-40 ग्राम पीपर, सौंठ और जीरे का चूर्ण और धनिया, तमालपत्र, कालीमिर्च, इलायची के दाने और 10 ग्राम दालचीनी का चूर्ण डालकर 15-20 मिनट तक हिलाएं। ठंडा होने पर उसमें 150 ग्राम शहद मिला लें। इस मिश्रण को 20 से 30 ग्राम तक की मात्रा में रोज सुबह-शाम खाकर ऊपर से गाय के दूध को पीने से वजन बढ़ता है। चेहरे पर चमक आती है और पित्तज्वर, रक्तपित्त, प्यास, जलन, टी.बी., प्रदर, कमजोरी, उल्टी, खांसी, दमा, आवाज का खराब होना, आन्त्रवृद्धि, पित्तज्वर, खांसी, श्वास (दमा) और स्वरभेद (आवाज का खराब होना) आदि रोगों से धीरे-धीरे छुटकारा मिलता है।
- 4 लौंग पीसकर पानी में घोलकर रोगी को पिलाने से तेज ज्वर कम होता है।
- गूलर की जड़ के रस को शक्कर के साथ मिलाकर पीने से पित्तज्वर के रोग में आराम आता है।
- 5 से 10 मिलीलीटर गूलर की ताजी जड़ के रस में या जड़ की छाल के 50 मिलीलीटर हिम (10 गुणा पानी में भिगोकर 3 घंटे बाद छानकर) में शक्कर मिलाकर सुबह-शाम पीने से प्यास-युक्त बुखार में आराम आता है।
- आंवले का रस, शहद और गाय के घी आदि इन सब द्रव्यों को बराबर मात्रा में लेकर आपस में घोटकर लेने से पित्त दोष तथा रक्तविकार से उत्पन्न आंखों के रोगों में भी लाभकारी है।
- चिरौंजी को दूध में पीसकर शरीर पर लेप करने से शीतपित्त में लाभ मिलता है।
- लगभग 10 ग्राम चंदन को 500 लीटर पानी के साथ काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ी सी मिश्री डालकर पीने से पित्त ज्वर में होने वाली उल्टी बन्द हो जाती है और धीरे-धीरे बुखार उतर जाता है।
- कड़ुवे परवल और जौ के काढ़े में शहद मिलाकर सेवन करने से पित्त ज्वर, तृषा (प्यास) और दाह (जलन) समाप्त हो जाती है। कड़वे परवल की जड़ का पानी शर्करा (चीनी) के साथ देने से भी पित्त ज्वर में लाभ होता है।
- कड़वे परवल के पत्ते और धनिये का काढ़ा भी पित्त ज्वर में दिया जाता है। बुखार के रोगी के शरीर पर उसके पत्तों के रस की मालिश (मर्दन) भी करने से आराम मिलता है।
- परवल, मोथा, नेत्रबाला, लालचंदन, कुटकी, सोठ, पित्त-पापड़ा, खस और अडूसा का काढ़ा बनाकर पीने से पित्त कफ का बुखार और प्यास दूर होती है।
- सूखे धनिया के दाने रात में पानी में भिगो दें और सुबह के समय उनका काढ़ा तैयार करें। उस काढ़े में मिश्री मिलाकर पी लें। इससे पित्त के बुखार में लाभ होगा।
- घबराहट व बैचेनी में पोदीने का रस लाभदायक होता है।
- पित्त के बुखार में गुड़हल के शर्बत को पीना फायदेमन्द होता है।
- लगभग 1 लीटर पानी को इतनी देर तक उबाले कि वह बचकर 700 मि.ली रह जाये तब यह पानी पीने से पित्त बुखार खत्म हो जाता है।
- नारंगी का गुदा निकालकर उस पर चीनी डालकर थोड़ा सा गर्म करके खाने से बुखार और खांसी दोनों ठीक होती है।
- नीम के कोमल पत्तों को नींबू के रस में पीसकर माथे पर लगाने से जलन और बुखार ठीक हो जाता है।
- नीम और गिलोय का रस निकालकर उसमें शहद को मिलाकर खाने से पित्त ज्वर मिट जाता है।
- नीम के पेड़ की छाल का फांट या घोल को आंवले के 4 ग्राम चूर्ण के साथ शीत पित्त समाप्त होती है।
- शरीर के ददोडे पर कालीमिर्च के चूर्ण को घी में मिलाकर मसलने से या तेल में कपूर की मालिश करें।
- नीम के तेल या नीम के बीजों की गिरी सरसों के तेल में जलाकर उस तेल की मालिश करें। नीम के पत्ते जब तक कड़वे न लगे तब तक चबाते रहने से पित्ती ठीक होती है।
- नीम के पेड़ की डंठल, धनियां, सोंठ और शक्कर (चीनी) का काढ़ा बनाकर देना चाहिए।
- नीम के पत्तों के फेन-युक्त रस को शरीर पर मलने से जलन शान्त हो जाती है।
- नीम की छाल, हल्दी, गिलोय, धनिया और सोंठ इन पांचों को बराबर लेकर काढ़ा बनायें और उसमें गुड़ मिलाकर रोगी को खिलाने से पित्त के बुखार में फायदा होता है।
- ढाक के कोमल पत्तों को नींबू के रस में पीसकर शरीर पर लगाने से गर्मी उतर जाती है।
- पित्तपापड़े का काढ़ा पीने से पित्त बुखार खत्म हो जाता है।
- धमासा, बांस, कुटकी, पित्तपापड़ा, मालकांगनी और चिरायता का काढ़ा पीने से पित्त का बुखार दूर होता है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. हमारी ये पोस्ट इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से संपर्क करें.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts,please let me know