कोई भी कार्य भाव से करें ( बोध कथा )
*एक मन्दिर था। उसमें सब लोग पगार पर काम करते थे। आरती वाला, पूजा कराने वाला और घण्टा बजाने वाला भी पगार पर था...!*
*घण्टा बजाने वाला आदमी आरती के समय भाव के साथ इतना मशगुल हो जाता था, कि होश में ही नही रहता था। घंटा बजाने वाला व्यक्ति पूरे भक्ति भाव से खुद का काम करता था।*
*मन्दिर में आने वाले सभी व्यक्ति भगवान के साथ साथ घण्टा बजाने वाले व्यक्ति के भाव के भी दर्शन करते थे, उसकी भी वाह वाह होती थी...!*
*एक दिन मन्दिर का ट्रस्ट बदल गया और नये ट्रस्टी ने ऐसा आदेश जारी किया कि अपने मन्दिर में काम करते,सब लोग पढ़े लिखे होने जरूरी है। जो पढ़े लिखे नही है उन्हें निकाल दिया जाएगा।*
*उस घण्टा बजाने वाले भाई को ट्रस्टी ने कहा कि 'तुम् आज तक की पगार ले लो, अब से तुम नौकरी पर मत आना.'। उस घण्टा बजाने वाले व्यक्ति ने कहा.*
*"साहब भले मैं पढ़ा लिखा नही हूँ, परन्तु इस कार्य मे मेरा भाव भगवान से जुड़ा हुआ है!"*
*ट्रस्टी ने कहा,"सुन लो तुम पढ़े लिखे नही हो, इसलिए तुम्हे रख नही पायेंगे..."*
*दूसरे दिन मन्दिर में नये लोगो को रख लिया गया, परन्तु आरती में आये लोगो को अब पहले जैसा मजा नही आता था, घण्टा बजाने वाले व्यक्ति की सभी को कमी महसूस होती थी।*
*कुछ लोग मिलकर घण्टा बजाने वाले व्यक्ति के घर गए और विनती की, कि तुम मन्दिर आओ।*
*उस भाई ने जवाब दिया, "मैं आऊंगा तो ट्रस्टी को लगेगा नौकरी लेने के लिए आया है इसलिए आ नहीं सकता हूँ" !*
*वहां आये हुए लोगो ने एक उपाय बताया कि 'मन्दिर के सामने आपके लिए एक दुकान खोल कर देते है, वहाँ आपको बैठना है और आरती के समय घण्टा बजाने आ जाना, फिर कोई नही कहेगा तुमको नौकरी की जरूरत है।..*
*उस भाई ने मन्दिर के सामने दुकान शुरू की।*
*वो इतनी चली कि एक दुकान से कई दुकान और दुकानों के साथ में एक फेक्ट्री भी खोली।*
*अब वो आदमी मर्सिडीज़ से घण्टा बजाने आता था ।*
*समय बीतता गया, ये बात पुरानी सी हो गयी।*
*मन्दिर का ट्रस्टी फिर बदल गया, नये ट्रस्ट को नया मन्दिर बनाने के लिए दान की जरूरत थी।*
*मन्दिर के नये ट्रस्टी को विचार आया की सबसे पहले उस फेक्ट्री के मालिक से बात करके देखते है ..!*
*ट्रस्टी मालिक के पास गया सात लाख का खर्चा है। फेक्ट्री मालिक को बताया।*
*फैक्ट्री के मालिक ने कोई सवाल किये बिना एक खाली चेक ट्रस्टी के हाथ में दे दिया और कहा चैक भर लो ट्रस्टी ने चैक भरकर उस फैक्ट्री मालिक को वापस दिया। फैक्ट्री मालिक ने चैक को देखा और उस ट्रस्टी को दे दिया।*
*ट्रस्टी ने चैक हाथ में लिया और कहा सिग्नेचर तो बाकी है"।*
*मालिक ने कहा मुझे सिग्नेचर करना नही आता है लाओ अंगूठा लगा देता हूँ "वही चलेगा ..."!*
*ये सुनकर ट्रस्टी चौक गया और कहा, "साहब तुमने अनपढ़ होकर भी इतनी तरक्की की यदि पढे लिखे होते तो कहाँ होते ...!!!"*
*तो वह सेठ हँसते हुए बोला, "भाई, मैं पढ़ा लिखा होता तो बस मन्दिर में घण्टा बजा रहा होता"!*
*सारांश*
*कार्य कोई भी हो, परिस्थिति कैसी भी हो, तुम्हारी सफलता तुम्हारी भावनाओ पर निर्भर करती है।*
*भावनायें शुद्ध होगी तो ईश्वर और सुंदर भविष्य पक्का तुम्हारा साथ देगा।...🙏👏🙏*
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