सप्तकोटेश्वर मंदिर ( नरकट गोवा )
प्राचीन समय में गोवा था शिव का मुख्य स्थान। इस धरती पर थे शिव पार्वती के मुख्य मंदिर
पुर्तगाली सबसे पहले गोवा में आये थे। गोवा का प्राचीन इतिहास बताता है कि प्राचीन काल में भारत की संस्कृति की मुख्यधारा यहाँ से निकलकर देश भर में आगे जाती थी। गोवा को पुराने समय में पश्चिम का काशी बोला जाता था। यहाँ अनेक भव्य हिन्दू मंदिर थे। इसे गोआ राष्ट्र भी बोला जाता था। यहाँ का सप्तकोटेश्वर मंदिर कभी दुनियाभर में विख्यात था।
सप्तकोटेश्वर मंदिर में पूजा करने के लिए भारतभर से हिन्दू लोग जत्थों के रूप में आया करते थे। गोवा में जिस संख्या में आज चर्च हैं वह नहीं थे। और यहाँ सभी हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिर थे। मध्यकाल में आप गोवा का इतिहास उठाकर जरुर देखें। दरअसल मध्यकाल में खिलजी और तुगलक वंश ने गोवा और उसके आसपास के भूभाग पर कब्जा कर लिया था।
गोवा का सप्तकोटेश्वर मंदिर. शिव जी के छः प्रमुख स्थानों में से एक स्थान पर अपने मूल स्थान से विस्थापित हुआ मंदिर.
बहामनी, पुर्तगाली ऐसे कुछ आक्रांताओं ने इस मंदिर को लक्ष्य बनाया हुआ. पर मंदिर के शिवलिंगम् को ऐसे तैसे बचाने में हिंदू सफल रहें.
कदंब राजवंशों का राज गोवा पर रहा हैं और ये मंदिर इन लोगों का प्रमुख मंदिर हुआ करता था. कदंब राजा ने ये मंदिर अपनी रानी के लिये बनवाया था क्यों कि रानी शिव जी की बहुत बड़ी भक्त थी.
छत्रपती श्री शिवाजी महाराज के लिये ये मंदिर बहुत अहम था. इस मंदिर का महत्त्व महाराज जानते थे. तो वे जब जब गोमंतक (गोवा) भूमी पर आते तब तब इस शिवालय में पूजा, अभिषेक करना बिल्कुल नहीं भूलते. उस समय यह मंदिर बहुत छोटा हुआ करता था और शिवलिंगम् पुर्तगालीयों से छुपाकर मंदिर के पीछे कीचड़ में नारियल के पत्तों के छांव स्थापित किया हुआ था और महाराज उसी की पूजा करते. एक दिन महाराज ऐसेही सप्तकोटेश्वर की पूजा करने में मग्न थे और तभी नारियल के पत्ते का एक हिस्सा उनके कंधे पर गिरा. महाराज ने इस घटना को एक संकेत के रूप में लिया और उसी स्थान पर गोमंतक स्थापत्य शैली के अनुसार बड़ा मंदिर बनवाया और शिवलिंगम् को उसके सही स्थान पर शिवालय में स्थापित किया. इस मंदिर निर्माण की शुरुआत उन्होंने अपने हाथों से की.
महाराज के इस कार्य का शिलालेख मंदिर में देखा जा सकता हैं.
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