सम्राट वीर विक्रमादित्य परमार - उज्जैन
भविष्य पुराण के प्रतिसर्ग के प्रथम
खंड में विवरण मिलता है कि कलिकाल के 3000 वर्ष बीतने के
पश्चात 101 वर्ष ईसा पूर्व सम्राट
वीर विक्रमादित्य का जन्म हुआ था।
(भविष्य पुराण,गीता प्रेस पृ●245)
विक्रमादित्य ने 100 वर्षों तक शासन
किया था।
महाराजा विक्रमादित्य के बारे में देश को
लगभग शून्य बराबर ज्ञान है,जिन्होंने भारत
को सोने की चिड़िया बनाया था,और स्वर्णिम
काल लाया था।
उनकी विजय गाथा उज्जैन तक ही सिमित
नही थी बल्कि दक्षिण भारत के शकों के
साम्राज्य को ध्वस्त किया।
शालिवाहन शकों का एक प्रतापी राजा था,
उसने ही शालिवाहन संवत आरम्भ किया था।
शकों ने भारत पर आक्रमण करके एक बड़े
भूभाग पर अधिकार कर लिया।
यहाँ की संस्कृति में वे घुलमिल गए थे।
शेष भूभाग पर आर्यवंशिय राजाओं का
आधिपत्य था।
उज्जैन पर भी आर्यवंशिय राजाओं का
ही राज्य था।
विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने के
पश्चात् अपनी विजय यात्रा में पूर्व में जावा
सुमात्रा से पश्चिम के गांधार तक अपना
सनातन साम्राज्य स्थापित किया।
शकों के आक्रमण को ही पश्चिमी एवं
वामपंथी इतिहासकारों ने इसे आर्यों
का आक्रमण बताया।
शाक्यद्वीप (मिस्र,Egypt) शक आये थे।
उनमे भी वर्ण व्यवस्था थी।
विक्रमादित्य का साम्राज्य स्थापित होने के
बाद भी शक वापस नही गए।
आज भी उनके वंशज हमारे रक्त गोत्र में
घुल मिल गए हैं।
उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन,जिनके तीन
संताने थी,सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती,
उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे
छोटा वीर विक्रमादित्य।
बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा
पदमसैन के साथ कर दी,जिनके एक लड़का
हुआ गोपीचन्द,आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री
ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और
तपस्या करने जंगलों में चले गए।
फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी
से योग दीक्षा ले ली।
आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल
विक्रमादित्य के कारण अस्तित्व में है।
अशोक मौर्य ने बौद्ध धर्म अपना लिया था
और बौद्ध बनकर 25 साल राज किया था।
भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति
पर आ गया था,देश में बौद्ध और जैन हो
गए थे।
रामायण,और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो
गए थे,महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी
खोज करवा कर स्थापित किया।
विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और
सनातन धर्म को बचाया।
विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास
ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा,जिसमे भारत
का इतिहास है।
अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम
भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे।
हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर
आ गए थे।
उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने
राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी
से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या
करने जंगलों में चले गए।
राज अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को
दे दिया।
वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ
जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने
लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म
बचा हुआ है,हमारी संस्कृति बची हुई है।
महाराज विक्रमादित्य ने केवल धर्म ही नही
बचाया उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने
की चिड़िया बनाई,उनके राज को ही भारत
का स्वर्णिम राज कहा जाता है।
विक्रमदित्य के काल में भारत का कपडा,
विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे।
भारत में इतना सोना आ गया था कि
विक्रमादित्य काल में सोने की सिक्के
चलते थे।
हिन्दू कैलंडर भी विक्रमादित्य का स्थापित
किया हुआ है,आज जो भी ज्योतिष गणना
है जैसे,हिन्दी सम्वंत,वार,तिथी
याँ,राशि,नक्षत्र,
गोचर आदि उन्ही के काल में पुंर्जुवित हुईं।
इस कार्य के लिए आचार्य वराहमिहिर जैसे
खगोलविद रत्न की सेवाएं लीं गयी।
उन्हें नवरत्नों में स्थान दिया गया था।
वे बहुत ही पराक्रमी,बलशाली और बुद्धिमान
राजा थे।
कई बार तो देवता भी उनसे न्याय करवाने
आते थे।
विक्रमादित्य के काल में हर नियम धर्मशास्त्र
के हिसाब से बने होते थे।
न्याय,राज सब धर्मशास्त्र के नियमो पर
चलता था।
विक्रमादित्य का काल राम
राज के बाद सर्वश्रेष्ठ माना गया है,
जहाँ प्रजा धनि और धर्म पर चलने
वाली थी।
महाकवि काली दास महाकाल के भक्त थे,
उनकी प्रेरणा से हस्तिनापुर में नक्षत्र स्तम्भ
का निर्माण हुआ।
प्रसिद्ध खगोलविद आचार्य वराहमिहिर को
उसका प्रभारी बनाया गया।
आचार्य वाराहमिहिर नवरत्नों में एक थे।
कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल में स्तम्भ
की ऊपर की परतों को खुरच कर मुगल
संस्कृति को उकेरा गया।
स्तम्भ के नाम का उर्दू में अनुवाद हुआ,
नक्षत्र = क़ुतुब,स्तम्भ = मीनार।
तात्कालीन हस्तिनापुर में आचार्य वाराह
मिहिर का निवास स्थान भी था।
वह स्थान अभी (मिहिरावली)मेहरौली के नाम से जाना
जाता है।
पर बड़े दुःख की बात है की भारत के
सबसे महानतम राजा के बारे में अंग्रेजी
मानसिकता के गुलाम शासको के शासन
काल में लिखित इतिहास भारत की जनता
को शून्य ज्ञान देता है।
जब कि कुतुबमीनार-राजा विक्रमादित्य
द्वारा बनवाया गया
“”हिन्दू नक्षत्र निरीक्षण केंद्र”” है।
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जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,,
जयति पुण्य भूमि भारत,,,
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