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12/26/2021

सूर्यपुत्री माँ ताप्ति की जय

   
                           
   

सूर्यपुत्री माँ ताप्ति की जय




आज का श्रृंगार दर्शन,

"मोक्ष एवं मुक्तिदायनी है तापी, हरती है लोगों का ताप,,,,,,
"भागीरथी गंगा में स्नान का, मेकलसूता नर्मदा के दर्शन का जो पुण्य लाभ मिलता है, वही पुण्य लाभ सिर्फ ढाई अक्षरों के नाम ताप्ती के स्मरण मात्र से प्राप्त होता है। जीवन दायनी पुण्य सलिला सूर्यपुत्री ताप्ती के बारे में हमारे वेद - पुराणों एवं उपनिषदों में अनेक प्रसंग लिखे हुए हैंस जो अकसर सुनने एवं पढ़ने को मिलते रहते हैं। स्कंद पुराण, वराह पुराण, ताप्ती पुराण, सूर्य पुराण, शनि पुराण, और यहां तक महाभारत के आदि पर्व में भी ताप्ती महात्मय का जिक्र है। आदि पर्व के प्रारंभ में लिखा गया है कि महाभारत से पहले पाण्डव एवं कौरवो के पूर्वजों का जिक्र किया गया है उनमें कुरू का नाम आता है। राजा कुरू राजा संवरण एवं सूर्यपुत्री ताप्ती के एक मात्र पुत्र थे जिसकी वंश बेला में पाण्डव पुत्र एवं कौरव पुत्र हुए। ताप्ती भारत की पश्चिम दिशा में बहने वाली प्रमुख दो नदियो में से एक है। यह नाम ताप अर्थात उष्ण गर्मी से उत्पन्न हुआ है। वैसे भी ताप्ती ताप - पाप - श्राप और त्रास को हरने वाली आदीगंगा कही जाती है। स्वंय भगवान सूर्यनारायण ने स्वंय के ताप को कम करने के लिए ताप्ती को धरती पर भेजा था। यह सतपुड़ा पठार पर स्थित मुलताई के तालाब से उत्पन्न हुई है लेकिन इसका मुख्य जलस्त्रोत मुलताई के उत्तर में 21 अंक्षाश 48 अक्षंाश पूर्व में 78 अंक्षाश एवं 48 अंक्षाश में स्थित 790 मीटर ऊँची पहाड़ी है जिसे प्राचिनकाल में ऋषिगिरी पर्वत कहा जाता था जो बाद में नारद टेकड़ी कहा जाने लगा । इस स्थान पर स्वंय ऋषि नारद ने घोर तपस्या की थी तभी तो उन्हे ताप्ती पुराण चोरी करने के बाद उत्पन्न कोढ़ से मुक्ति का मार्ग मिला थी। देवऋषि नारद ने ही ताप्ती नदी में स्नान का महत्व बताया। मुलताई का नारद कुण्ड वही स्थान है जहाँ पर नारद को स्नान के बाद कोढ़ से मुक्ति मिली थी। ताप्ती नदी सतपुड़ा की पहाडिय़ो एवं चिखलदरा की घाटियों को चीरती हुई महाखडड् में बहती है। 250 किलोमीटर अपने मुख्य जलस्त्रोत से बहने के बाद ताप्ती पूर्वी निमाड़ में पहँुचती है। पूर्वी निमाड़ में भी 48 किलोमीटर सकरी घाटियो का सीना चीरती ताप्ती 242 किलोमीटर का सकरा रास्ता खानदेश का तय करने के बाद 129 किलोमीटर पहाड़ी जंगली रास्तो से कच्छ क्षेत्र में प्रवेश करती है। लगभग 701 किलोमीटर लम्बी ताप्ती नदी में सैकड़ो कुण्ड एवं जल प्रताप के साथ डोह है जिसकी लम्बी खाट में बुनी जाने वाली रस्सी को डालने के बाद भी नापी नही जा सकी है। इस नदी पर यूँ तो आज तक कोई भी बांध स्थाई रूप से टिक नहीं सका है जिसके पीछे आज भी यह तर्क दिया जाता है कि नदी का मैदानी हो या पहाड़ी क्षेत्र में वेग तेज है। हालांकि मुलताई के पास बना चन्दोरा बांध तो बनाया जा चुका है लेकिन उसके फूट जाने के बाद इस बात का पर्याप्त आधार है कि कम जलधारा के बाद भी ताप्ती का जल वेग के सामने वह टिक नहीं पाया। चंदोरा जलाशय की दिवारो में दो बार आई दरार ने दो गांवो का वजूद ही मिटा डाला। तापी का तेज वेग को बुरहानपुर, जलगांव, भूसावल और सूरत से अच्छ कौन जान सका है। ताप्ती कई बार सूरत को बदसूरत कर चुकी है। सूरत के लोग मानते है कि चार साल में एक बार पूरे सूरत की हर गलियों में आने वाला पानी का बहाव इस बात का प्रमाण है कि मॉ ताप्ती सूरतवासियों की अभिलाषा अनुरूप घर - घर जाती है अपने पांव को पखारने के लिए। कच्छ के सूरत की विकास एवं प्रगति के पीछे तापी का प्रताप मानने वालो में देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पीछे नहीं है। वे स्वंय बैतूल में एक जनसभा में स्वीकार कर चुके है कि उनके सूरत की सूरत बदलने में मॉ तापी का बडा योगदान है। लाखो कच्छ प्रांत के सूरतवासी स्वंय के धन्य धान्य होने के पीछे मां ताप्ती का प्रताप ही बताते है। वैसे तो ताप्ती मां अपने नाम मात्र स्मरण से अपने भक्त पर मेहरबान हो जाती है लेकिन किसी ने उसके अस्तित्व को नकारने की कुचेष्टा की तो वह फिर शनिदेव की बहन है कब किसकी साढ़े साती कर दे कहा नही जा सकता। ताप्ती नदी के किनारे अनेक सभ्यताओं ने जन्म लिया और वे विलुप्त हो गई। भले ही आज ताप्ती घाटी की सभ्यता के पर्याप्त सबूत न मिल पाये हो लेकिन ताप्ती के तपबल को आज भी कोई नकारने की हिम्मत नहीं कर सका है। वैसे तो जबसे से इस सृष्टि का निमार्ण हुआ है तबसे मूर्ति पूजक हिन्दू समाज नदियों को देवियों के रूप में सदियों से पूजता चला आ रहा है। हमारे धार्मिक गंथो एवं वेद तथा पुराणों में भारत की पवित्र नदियों में ताप्ती एवं पूर्णा का भी उल्लेख मिलता है। सूर्य पुत्री ताप्ती अखंड भारत के केन्द्र बिन्दु कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के प्राचीन मुलतापी जो कि वर्तमान में मुलताई कहा जाता है। इस मुलताई नगर स्थित तालाब से निकल कर समीप के गौ मुख से एक सुक्ष्म धार के रूप में बहती हुई गुजरात राज्य के सूरत के पास अरब सागर में समाहित हो जाती है। सूर्य देव की लाड़ली बेटी एवं शनिदेव की प्यारी बहना ताप्ती जो कि आदिगंगा के नाम से भी प्रख्यात है वह आदिकाल से लेकर अनंत काल तक मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र एवं गुजरात के विभिन्न जिलों की पूज्य नदियों की तरह पूजी जाती रहेगी। जिसका एक कारण यह भी है कि सूर्यपुत्री ताप्ती मुक्ति का सबसे अच्छा माध्यम है। सबसे आश्चर्य जनक तथ्य यह है कि सूर्य पुत्री ताप्ती की सखी सहेली कोई और न होकर चन्द्रदेव की पुत्री पूर्णा है जो की उसकी सहायक नदी के रूप में जानी - पहचानी जाती है। पूर्णा नदी भैंसदेही नगर के पश्चिम दिशा में स्थित काशी तालाब से निकलती हैं। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्घालु लोग अमावस्या और पूर्णिमा के समय इन नदियों में नहा कर पूर्ण लाभ कमाते हैं। एक किवदंती कथाओं के अनुसार सूर्य और चन्द्र दोनों ही आपस में एक दूसरे के विरोधी रहे हैं , तथा दोनों एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते हैं। ऐसे में दोनों की पुत्रियों का अनोखा मिलन बैतूल जिले में आज भी लोगों की श्रद्घा का केन्द्र बना हुआ हैं। ताप्ती का पूर्णा से मिलन पश्चिम दिशा की ओर तेज प्रभाव से बहने वाली ताप्ती नदी मध्यप्रदेश महाराष्ट्र व गुजरात में करीब 470 मील (सात सौ बावन किलोमीटर) बहती हुई अरब सागर में मिलती हैं। ताप्ती नदी बैतूल जिले में सतपुड़ा की पहाडिय़ों के बीच से निकलती हुई महाराष्ट्र के खान देश में 96 मील समतल तथा उपजाऊ भूमि के क्षेत्र से गुजरती हैं। खान देश में ताप्ती की चौड़ाई 250 से 400 गज तथा ऊंचाई 60 फीट है। इसी तरह गुजरात में 90 मील के बहाव में यह नदी अरब सागर में मिलती हैं। ताप्ती की सहायक नदी कहलाने वाली पूर्णा नदी भैंसदेही के काशी तालाब से निकलती हुई आगे चलकर महाराष्ट्र के भुसावल नगर के पास ताप्ती में मिल जाती हैं। पुराणों में ताप्ती जी की जन्मकथा इतिहास के पन्नों पर छपी कहानियों को पढऩे से पता चलता है कि बैतूल जिले की मुलताई तहसील मुख्यालय के पास स्थित ताप्ती तालाब से निकलने वाली सूर्य पुत्री ताप्ती की जन्मकथा महाभारत में आदि पर्व पर उल्लेखित है। पुराणों में सूर्य भगवान की पुत्री तापी जो ताप्ती कहलाई सूर्य भगवान के द्वारा उत्पन्न की गई। ऐसा कहा जाता है कि भगवान सूर्य ने स्वयं की गर्मी या ताप से अपनी रक्षा करने के लिए ताप्ती को धरती पर अवतरित किया था। भविष्य पुराणों में ताप्ती महिमा के बारे में लिखा है कि सूर्य ने विश्वकर्मा की पुत्री संजना से विवाह किया था। संजना से उनकी दो संताने हुई- कालिन्दनी और यम. उस समय सूर्य अपने वर्तमान रूप में नहीं वरन अण्डाकार रूप में थे। संजना को सूर्य का ताप सहन नहीं हुआ। अत: अपने पति की परिचर्चा अपनी दासी छाया को सौंपकर वह एक घोड़ी का रूप धारण कर मंदिर में तपस्या करने चली गई । छाया ने संजना का रूप धारण कर काफी समय तक सूर्य की सेवा की। सूर्य से छाया को शनिचर और ताप्ती नामक दो संतान हुई। इसके अलावा सूर्य की एक और पुत्री सावित्री भी थी। सूर्य ने अपनी पुत्री को यह आशीर्वाद दिया था कि वह विनय पर्वत से पश्चिम दिशा की ओर बहेगी। यम चतुर्थी के दिन ताप्ती भाई-बहन के स्नान का महत्व पुराणों में ताप्ती के विवाह की जानकारी पढऩे को मिलती है। वायु पुराण में लिखा है कि कृत युग में चन्द्रवंश में ऋष्य नामक एक प्रताप राजा राज्य करते थे। उनके एक सवरण को गुरू वशिष्ठ ने वेदों की शिक्षा दी। एक समय की बात है सवरण राजपाट का दायित्व गुरू वशिष्ठ के हाथों सौंपकर जंगल में तपस्या करने के लिए निकल गये। वैभराज जंगल में सवरण ने एक सरोवर में कुछ अप्सराओं को स्नाने करते हुए देखा जिनमें से एक ताप्ती भी थी। ताप्ती को देखकर सवरण मोहित हो गया और सवरण ने आगे चलकर ताप्ती से विवाह कर लिया। सूर्य पुत्री ताप्ती को उसके भाई शनिचर (शनिदेव) ने यह आशीर्वाद दिया कि जो भी भाई-बहन यम चतुर्थी के दिन ताप्ती और यमुना जी में स्नान करेगा उन्हें कभी भी अकाल मौत नहीं होगी। प्रतिवर्ष कार्तिक माह में सूर्य पुत्री ताप्ती के किनारे बसे धार्मिक स्थलों पर मेला लगता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्घालु नर नारी कार्तिक अमावस्या पर स्नान करने के लिये आते हैं। भगवान श्री राम द्वारा निर्मित बारह शिवलिंग ऐसी पुरानी मान्यता है कि भगवान श्री राम, लखन, सीता समेत वन गमन के उपरांत इस स्थान पर ठहरे हुए थे। ठीक उसी समय स्वयं श्री राम के हाथों द्घारा निर्मित यह बारह शिवलिंग तथा सीता स्नानागार शुशुप्त रूप से आज भी विद्यमान है, जो पाषाण शिला पर अंकित पुराना इतिहास के गवाह है। ग्राम खेड़ी सांवलीगढ़ से ग्यारह किलोमीटर दूर त्रिवेणी भारती बाबा की तपोभूमि ताप्ती घाट जो इस क्षेत्र में तो क्या संपूर्ण बैतूल जिले में बहुधा जानी पहचानी जगह है। बारहलिंग नामक स्थान पर जो ताप्ती नदी के तट पर स्थित है, यहां कि प्राकृतिक छठा सुन्दर मनमोहक दृश्य आने-जाने वाले यात्रियों का मन मोह लेते है। घने हरियाले जंगलो से आच्छादित प्रकृति की अनुपम छटा बिखरेती हुई ताप्ती नदी शांत स्वरों में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है। यहां पर नदी के दूसरे तट पर ताप्ती माई का एक विशाल मंदिर दत्तात्रेय, रामलखन सीता तथा गैबीदास महाराज की समाधी स्थल मुख्य आकर्षण का केंद्र है। प्रतिवर्ष यहां कार्तिक पूर्णिमा को तीन दित तक चलने वाला मेला लगता है। यहां समूचे क्षेत्र की जनता अटूट श्रद्धा भक्ति के साथ मेले में तीन दिवस के विधिविधान के साथ भगवान सूर्य को अर्ध देकर स्नान कर पूजा अर्चना करते है और फिर मेले में खरीद फरोख्त करते है। रात्रि में आदिवासियों द्वारा डंडार, नौटंकी आदि कई प्रकार के आयोजन किए जाते है। किंतु विड़म्बना है कि प्रशासन की नाक के नीचे ऐसे प्राकृतिक स्थल कि ओर उनका जरा भी ध्यान नहीं है और आज यह स्थल दुर्व्यवस्थाओं का शिकार हो रहा है। नदियों के आसपास सर्वाधिक शिवलिंग बैतूल जिलेे मे सूर्य पुत्री और चन्द्रपुत्री में आज भी दर्जनों की संख्या में मिलने वाले पुराने मंदिरों के अवशेषों में शिवलिंगों की संख्या अधिक है। कहा तो यहां तक जाता है कि ताप्ती नदी के किनारे बसे बारह लिंग नामक स्थान पर नदी में आज भी प्रकृति द्वारा बनाये गये बारह लिंग लोगों की श्रद्घा का केन्द्र बने हुये हैं। बैतूल जिले की ये दोनों नदियां अपने अंचल में अनेकों शिवलिंगों को समाये हुये हैं। लाखों की संख्या में पहुंचाने वाले शिव भक्तों की श्रद्घा का केन्द्र बनी हुई सूर्य पुत्री ताप्ती और चन्द्रपुत्री पूर्णा बैतूल जैसे पिछड़े जिले का इतिहास के अनेक अनसुलझे रहस्यों को छुपाये हुई है। सदियों से बनता चला आ रहा है पत्थरों से बना रामसेतू भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम द्वारा बनाये गये रामसेतू को लेकर भले ही विवाद छीड़ा हो लेकिन मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में तो सदियो से भगवान श्री राम द्वारा स्थापित बारह शिवलिंगो की पूजा करने के लिए आसपास की जनजाति के लोग ताप्ती नदी के इस छोर से उस छोर पर जाने के लिए पत्थरो का पूल ठीक उसी तरह बनाते चले आ रहे है जैसा कि रामसेतू बना था। पूर्व से पश्चिम की ओर तेज प्रवाह से बहने वाली सूर्यपुत्री आदि गंगा कही जाने वाली ताप्ती नदी के एक छोर से दुसरे छोर कार्तिक माह की पूर्णिमा को लगने वाले बारहलिंग के मेले के लिए आने वाली हजारो श्रद्घालु जनता को आने - जाने के लिए इसी पत्थरो से बने अस्थायी पूल से आना - जाना करना पड़ता हैै। अपने पिता राजा दशरथ एवं माता कैकेई के आदेश का पालन करते हुये अपनी पत्नि सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास काटते हुये चित्रकुट से दण्डकारण क्षेत्र में प्रवेश करते समय भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम जिस पथ से रावण की लंका की ओर चले गये थे उस पथ में शामिल बैतूल जिले का पौराणिक इतिहास कई अनसुलझे रहस्यो को अपने आँचल में छुपाये हुये है। ऐसी पौराणिक कथाओ से जुड़ी एक कथा अनुसार राम से जुड़ी दंत एवं प्रचलित तथा पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीराम ने ताप्ती नदी के किनारे बारह शिव लिंगो की स्थापना कर उनका पूजन किया था तथा इसी स्थान पर रात्री विश्राम करने की व$जह से आसपास की जनजाति के लोगा यहाँ पर तीन दिन की तीरथ यात्रा क लिए आकर रात्री मुकाम करते हैै। कथाओ एवं पुराणो के अनुसार श्री राम ने वनो में उगने वाले फलो में से एक को जब माता सीता को दिया तो उन्होने इसका नाम जानना चाहा तब भगवान श्री राम ने कहा कि हे सीते अगर तुम्हे यह फल यदि अति प्रिय है तो आज से यह सीताफल कहलायेगा। आज बैतूल जिले के जंगलो एवं आसपास की आबादी वाले क्षेत्रो में सर्वाधिक संख्या में सीताफल पाया जाता है। बारहलिंग नामक स्थान पर आज भी सीता स्नानागार एवं विलुप्त अवस्था में भगवान श्री राम द्वारा पत्थरो पर ऊकेरे गये बारह शिवलिंग स्पष्ट दिखाई पड़ते हैै। सूरजमुखी - सूर्यमुखी ताप्ती यँू तो भारत की पवित्र नदियो में उल्लेखीत माँ नर्मदा एवं माँ ताप्ती ही पश्चिम मुखी नदियाँ है। ताप्ती और नर्मदा ही एक स्थान पर पूर्व की ओर बही है। गंगा सागर को पवित्र स्थान इसलिए कहा जाता है कि उस स्थान पर गंगा जी पूर्व की ओर बहती है। ताप्ती जिस स्थान पर पूर्व की ओर बही है उस स्थान को सूर्यमुखी , सूरज मुखी , गंगा सागर जैसे कई नामो से पुकारा जाता है। अग्रितोड़ा नामक गांव के पास सूर्यपुत्री ताप्ती ने पश्चिम से पूर्व की ओर अपनी जलधारा को बदल दिया है इसलिए प्रतिवर्ष मकर संक्राति के दिन हजारो की संख्या में दूर - दराज और अन्य जिलो एवं प्रदेशो से श्रद्घालु भक्त माँ ताप्ती के जल में स्नान कर उस जल से उसके पिता सूर्यनारायण एवं भाई शनिदेव को जल अपर्ण कर उनकी पूजा अराधना करते है। मकर संक्राति के अवसर पर ताप्ती में स्नान और ध्यान को ज्योतिषी शास्त्र एवं पंडित तथा जानकार लोग सबसे शुभ अवसर मानते है क्योकि इस दिन आपस में एक दुसरे के घोर विरोधी पिता एवं पुत्र दोनो मां ताप्ती के जल में स्नान और ध्यान से प्रसन्नचित होकर इच्छानुसार मनोकामना पूर्ण करते है। इस स्थान पर रामकुण्ड है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस कुण्ड में भगवान श्री राम ने स्नान ध्यान किया था। जब मेघनाथ ने ताप्ती और नर्मदा की धारा उल्टी बहा दी यूं तो यह आम धारणा है कि बैतूल जिला सदियों पहले रावण के अधीन राज्य का एक अंग था. इस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी इसी कारण सदियों से होलिका दहन के दूसरे दिन रावण के बलशाली पुत्र मेघनाथ की पूजा करते चले आ रहे है। जिले के हर गांव में जहां पर आदिवासी परिवार रहता है उस गांव में एक स्थान पर जैरी का खंबा गाड़ा होता है और इसी जैरी के खंबे पर चढ़कर पूजा अर्चना की जाती है। रावण संहिता में उल्लेखित कहानी के अनुसार नर्मदा और ताप्ती नदी के किनारे जब रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने अपने तप बल के बल पर नर्मदा और ताप्ती की धाराओं को उल्टी बहा दिया तो उसे देखकर आदिवासी लोग डर गए . उस समय से लेकर आज तक उक्त सभी डरे सहमे आदिवासियों के वंशज पीढ़ी दर पीढ़ी से रावण और उसके बलशाली पुत्र मेघनाथ को ही अपना राजा मानकर उसकी पूजा अर्चना करते चले आ रहे है। रावण संहिता में मेघनाथ को लेकर कई किवदंत कहानियां लिखी हुई है जिसके अनुसार भवगान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी पुत्री कही जाने वाली माँ नर्मदा एवं सूर्य पुत्री माँ ताप्ती नदी के किनारे रावण और उसके पुत्र मेघनाथ ने काफी समय तक जटिल एवं कठिन तपस्याएं करके अपने तपबल के बल पर बहुत सारी सिद्घियां प्राप्त की थी।कोई कुछ भी कहे लेकिन आज भी गंगा ताप्ती के सामने बौनी है सहशस्त्र नामों एवं स्थानों पर बहती है सूर्यपुत्री ताप्ती की जल धारा सृष्टि के निमार्ण के संग धरती पर आई ताप्ती के सहशस्त्र नाम एवं सहशस्त्र जलधारायें है जो पूरी दुनियां में आज भी अविरल बह रही है। कहीं उसे प्राणहिता कहा जाता है तो कही उसे तावी के रूप में जाना जाता है। दुनिया में आज भी कई नदियों को सूर्य की पुत्री के रूप में जाना जाता है। ग्रीस की प्राचिन सभ्यता से लेकर सिंधु घाटी और युनानी और दक्षिण आफ्रिकी सभ्यताओं में सूर्यपुत्री ताप्ती को जल की देवी के रूप में जाना पहचाना तथा पूजा जाता है। इस दौर के घर पहुंचे टीवी धारावाहिक में सास भी कभी बहू थी , या सौ दिन सास के एक दिन बहू का जैसे धारावाहिक में आज दिखाया जाने वाला झगड़ा बरसो पुराना है। पौराणिक कथाओं में उल्लेखित वर्णन के अनुसार एक समय वह था जब कपिल मुनि से शापित जलकर नष्ट हो पाषाण बने अपने पूर्वजों का उद्धार करने इस पृथ्वी लोक पर, गंगा जी को लाने भागीरथ ने हजारों वर्ष घोर तपस्या की थी। उसके फलस्वरूप गंगा ने ब्रम्ह कमण्डल (ब्रम्हलोक से) धरती पर, भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने आने का प्रयत्न तो किया परंतु वसुन्धरा पर उस सदी में मात्र ताप्ती नदी की ही सर्वत्र महिमा फैली हुई थी। ताप्ती नदी का महत्व समझकर श्री गंगा पृथ्वी लोक पर आने में संकुचित होने लगी, तदोउपरांत प्रजापिता ब्रम्हा विष्णु तथा कैलाश पति शंकर भगवान की सूझ से देवर्षिक नारद ने ताप्ती महिमा के सारे ग्रंथ लुप्त करवा दिये, तब ही गंगा धारा पर सूक्ष्म धारा में हिमालय से प्रगट हुई, ठीक उस समय से सूर्य पुत्री कहलाने वाली ताप्ती नदी का महत्व कुछ कम हो गया। कुछ ऐसी ही गाथाये मुनि ऋषियों से अक्सर सुनी जाती रही है। आज भी ताप्ती जल में एक विशेष प्रकार का वैज्ञानिक असर पड़ा है। जिसे प्रत्यक्ष रूप से स्वयं भी आजमाईश कर सकते है। ताप्ती जल में मनुष्य की अस्थियां एक सप्ताह के भीतर घुल जाती है। इस नदी में प्रतिदिन ब्रम्हामुहुर्त में स्नान करने में समस्त रोग एवं पापो का नाश होता है। तभी तो राजा रघु ने इस जल के प्रताप से कोढ़ जैसे चर्म रोग से मुक्ति पाई थी।ंगा को यहां आने पर सबसे पहले अपने मान - सम्मान की चिंता हुई क्योकि उसे उसे पहले से ही पता था कि सूर्य परिवार की सदस्य ताप्ती की महीमा पूरे जग में फैली हुई थी। ऐसे में उसने पहले शर्त यह रखी थी कि ताप्ती का महात्मय कम किया जाये, अगर ऐसा न हुआ तो जग में उसे कोई पूज नहीं पाएगा। अपनी पूजा और महात्मय के लिए रखी शर्तो पर आई गंगा बाद में ताप्ती परिवार की ही बहू बनी। ताप्ती के पुत्र कुरू के पुत्र दक्ष के पुत्र शान्तनु के संग गंगा का विवाह हुआ। गंगा की एक मात्र संतान भीष्म पितामह थे जिसके देह त्यागने के बाद गंगा की वंश बेल आगे बढ़ नहीं सकी। भले ही उस समय गंगा को धरती पर लाने के लिए देवऋषि नारद को ताप्ती महात्मय चुराना पड़ा लेकिन चोरी के अपराध में हुई कोढ़ से मुक्ति के लिए नारद टेकड़ी पर देवऋषि नारद को बारह वर्षो तक कठिन तपस्या करके कोढ़ से मुक्ति का पाने का मां ताप्ती से वरदान मांगा। आज भी भले ही गंगा की चहूँ ओर महीमा फैली हो लेकिन उसे आज भी गंगा अष्टमी के दिन स्वंय उपस्थित होकर मेकलसूता नर्मदा के सामने नतमस्तक होना पड़ता है। जिसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि गंगा स्वंय किसी भी मृत व्यक्ति को मोक्ष प्रदान नहीं कर सकती। सदियों से अस्थियों का दलदल बनी गंगा साल में एक बार गंगा अष्टमी को नर्मदा के पास उसमें बिहाई गई अस्थियों को लेकर आती है और उन सबकी मुक्ति के लिए मेकलसूता देव कन्या नर्मदा से याचना करती है। पूरी दुनिया में सिर्फ नर्मदा एवं ताप्ती ही मोक्ष दायनी एवं मुक्ति दायनी पुण्य सलिला है जो स्वंय में इतना तेज रखती है कि उसमें विर्सजित अस्थियों को मोक्ष प्रदान प्राप्त हो जाता है। दोनो पश्चिम मुखी नदियां किसी अन्य नदियों में नहीं मिलती है और एक ही सागर में सौ किमी की दूरी में अरब सागर में मिल जाती है। ताप्ती का महात्मय कम करने के बाद भी गंगा का धरती पर वजूद नहीं रह पाया क्योकि गंगा पुत्र भीष्म की प्रतिज्ञा के बाद गंगा की वंश बेल आगे बढ़ नहीं पाई जबकि ताप्ती का परिवार बढ़ते चला गया। देश दुनिया में जितने भी कुरूवंशी है वे ताप्ती परिवार के अंग है। गंगा का महत्व ताप्ती के तेज के सामने बौना कैसे यह बताने के एक लिए एक कथा पर्याप्त है। कथा का संदर्भ महाभारत से है जहां पर छल से मारे गए कर्ण की अंतिम इच्छा अनुरूप भगवान श्री कृष्ण को ऐसा स्थान नही मिला जहां पर कोई शवदाह न हुआ हो। ऐसे में सूरत में ताप्ती के किनारे भगवान श्री कृष्ण ने अपने हाथो की अंजुली पर कर्ण का अंतिम संस्कार करके उसकी अस्थियों का विर्सजन सूर्यपुत्री के जल में प्रवाहित किया। सूर्यपुत्र एवं पुत्री के महत्व को परिभाषित कथाओं के संदर्भ में सूर्य परिवार में सबसे अधिक पुण्य लाभ ताप्ती के हिस्से में गया। ताप्ती ने सबसे पहले अपने पिता का ताप कम किया उसके बाद वह जग का ताप कम करने के लिए जल रूप में धरती पर उस समय आई जब जीवन की संरचना ब्रहमा जी कर रहे थे। जल और जीवन से बना संसार आज भी ताप्ती के जल के महत्व को समझता है। नाम और स्थान बदल जाने के बाद भी ताप्ती - तपती - तापी मोक्ष का मार्ग प्रदान करती है।
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