Ghazal Shayari : ग़ज़ल शायरी
हर जनम में....
हर जनम में उसी की चाहत थे;
हम किसी और की अमानत थे;
उसकी आँखों में झिलमिलाती हुई;
हम ग़ज़ल की कोई अलामत थे;
तेरी चादर में तन समेट लिया;
हम कहाँ के दराज़क़ामत थे;
जैसे जंगल में आग लग जाये;
हम कभी इतने ख़ूबसूरत थे;
पास रहकर भी दूर-दूर रहे;
हम नये दौर की मोहब्बत थे;
इस ख़ुशी में मुझे ख़याल आया;
ग़म के दिन कितने ख़ूबसूरत थे
दिन में इन जुगनुओं से क्या लेना;
ये दिये रात की ज़रूरत थे।
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कोई बिजली इन ख़राबों में घटा रौशन करे;
ऐ अँधेरी बस्तियो! तुमको खुदा रौशन करे;
नन्हें होंठों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब;
और माथे पर कोई हर्फ़-ए-दुआ रौशन करे;
ज़र्द चेहरों पर भी चमके सुर्ख जज़्बों की धनक;
साँवले हाथों को भी रंग-ए-हिना रौशन करे;
एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए;
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे;
ख़ैर अगर तुम से न जल पाएँ वफाओं के चिराग;
तुम बुझाना मत जो कोई दूसरा रौशन करे।
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तेरा चेहरा सुब्ह का तारा लगता है;
सुब्ह का तारा कितना प्यारा लगता है;
तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है;
तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है;
रात हमारे साथ तू जागा करता है;
चाँद बता तू कौन हमारा लगता है;
किस को खबर ये कितनी कयामत ढाता है;
ये लड़का जो इतना बेचारा लगता है;
तितली चमन में फूल से लिपटी रहती है;
फिर भी चमन में फूल कँवारा लगता है;
'कैफ' वो कल का 'कैफ' कहाँ है आज मियाँ;
ये तो कोई वक्त का मारा लगता है।
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नज़र फ़रेब-ए-कज़ा खा गई तो क्या होगा;
हयात मौत से टकरा गई तो क्या होगा;
नई सहर के बहुत लोग मुंतज़िर हैं मगर;
नई सहर भी कजला गई तो क्या होगा;
न रहनुमाओं की मजलिस में ले चलो मुझको;
मैं बे-अदब हूँ हँसी आ गई तो क्या होगा;
ग़म-ए-हयात से बेशक़ है ख़ुदकुशी आसाँ;
मगर जो मौत भी शर्मा गई तो क्या होगा;
शबाब-ए-लाला-ओ-गुल को पुकारनेवालों;
ख़िज़ाँ-सिरिश्त बहार आ गई तो क्या होगा;
ख़ुशी छीनी है तो ग़म का भी ऐतमाद न कर;
जो रूह ग़म से भी उकता गई तो क्या होगा।
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तेरे कमाल की हद...
तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा;
उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा;
कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम;
ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा;
पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा;
कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा;
न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब;
मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा।
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मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना;
तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना;
तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई;
तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना;
शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो;
अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना;
तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते;
पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना;
इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का;
तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना;
अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी;
तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना।
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बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये;
कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये;
करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला;
यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये;
मगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जाना;
ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये;
अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिए;
ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये;
गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारा;
गिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गये;
तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़';
इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये।
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भड़का रहे हैं आग...
भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागार से हम;
ख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम;
कुछ और बड़ गए अंधेरे तो क्या हुआ;
मायूस तो नहीं हैं तुलु-ए-सहर से हम;
ले दे के अपने पास फ़क़त एक नज़र तो है;
क्यों देखें ज़िंदगी को किसी की नज़र से हम
माना कि इस ज़मीं को न गुलज़ार कर सके;
कुछ ख़ार कम कर गए गुज़रे जिधर से हम।
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फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया;
अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया;
हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में;
इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया;
रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर;
यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया;
कुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से;
फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गया;
इक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतें;
दिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गया;
ख्वाहिश तो थी "साजिद" मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की;
लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया।
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ज़रा-सी देर में...
ज़रा-सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा;
ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा;
न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं;
हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा;
सफ़ीना हो के हो पत्थर, हैं हम अंज़ाम से वाक़िफ़;
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा;
समन्दर के सफर में किस्मतें पहलू बदलती हैं;
अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा;
मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको;
किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा।
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