अद्भुत दर्शन माँ चामुंडा की जीवंत प्रतिमा
यह तस्वीर है #जजपुर_उड़ीसा में मिली "#माँ_चामुंडा" की मूर्ति की। यह मूर्ति 8 वी सदी की है और इसमे नरमुंडों की माला के साथ उनके एक हाथ मे एक मुंड है, उनके दाई ओर एक भक्त व्रजासन में बैठा है, 5 गीदड़ है, एक शंख औऱ एक घण्टा है औऱ नीचे है भैरव।
यह मूर्ति देखकर एक बार आपके रौंगटे खड़े जरूर हो जाएंगे, दरअसल ये वही से मिली जिस जगह को पुराणों में "बैतरणी" का नाम दिया गया है।
चामुंडा या चामुंडेश्वरी, चंडी का एक डरावना रूप है, देवी माँ और 7 मातृकाओं में से एक। 8वीं ईस्वी सन् की यह आकर्षक नक्काशी धर्मशाला, जाजपुर, ओडिशा में खोजी गई थी। यह सरकारी संग्रहालय भुवनेश्वर, ओडिशा में प्रदर्शित है।
चामुंडा_देवी तांत्रिकों की अधिष्ठात्री_देवी है, जितने भी तंत्र मंत्र यंत्र है, सभी को उनके साधक उनकी साधना से सिद्ध कर लेते है। तंत्र साधना में शांति कर्म, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन और मारण नामक छ: तांत्रिक षट् कर्म होते हैं। इसके अलावा नौ प्रयोगों का वर्णन मिलता है:- मारण, मोहनं, स्तंभनं, विद्वेषण, उच्चाटन, वशीकरण, आकर्षण, यक्षिणी साधना, रसायन क्रिया तंत्र के ये नौ प्रयोग हैं।
कामाख्या_देवी (असम) के अलावा, कालका_जी, बगलामुखी_देवी (हिमाचल) भी तांत्रिकों की पसंदीदा जगह है, किन्तु चामुंडा की इस मूर्ति के साधक ऐसे विलक्षण थे कि उस समय राजा लोग उनके आशीर्वाद से बड़े बड़े कार्य सिद्ध कर लेते थे।
बौद्ध_धर्म की दो शाखाओं में से "महायान" बौद्ध के अनुसार दक्षिण पंथी है और "वज्रयान" वामपन्थ है। "वज्रयान" तंत्र साधना के लिए जाना जाता है, औऱ कहीं न कही भारतीय तंत्र विद्या या देवी चामुंडा के उपासक ही वज्रयान के जन्मदाता है। तिब्बत के बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा इसी शाखा से आते है।
परन्तु 8 वी सदी में बौद्ध और हिन्दू दोनो ही तंत्र के लिए देवी चामुंडा की उपासना करते थे।
इनके दर्शन हमारे आपके लिए सौभाग्य का विषय है यह सब इंटरनेट की वजह से ही संभव हो पाया है कि हम आप कहां बैठे हैं और हम को कैसे इतनी दूर मां_चामुंडा की मूर्ति के दर्शन हुए हैं एक बार दिल से बोलिए....🚩🚩
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