सनकादि ऋषि ( sankadik rishi )
सनकादि ऋषि (सनकादि = सनक + आदि) से तात्पर्य ब्रह्मा के चार पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन व सनत्कुमार से है। पुराणों में उनकी विशेष महत्ता वर्णित है। ये ब्रह्मा की अयोनिज संताने हैं और भगवान विष्णु के १ अवतार हैं | जो १० सृष्टियों में से ही गिने जाते हैं। ये प्राकृतिक तथा वैकृतिक दोनों सर्गों से हैं।
सनकादि ऋषियों ने श्री हरि भगवान के हंसावतार से ब्रह्मज्ञान की निगूढ़ शिक्षा ग्रहण की तथा उसका प्रथमोपदेश अपने शिष्य देवर्षि नारद को किया था। वास्तव में यह चारों ऋषि ही चारों वेदों के समान माने गए हैं, चारों वेद इन्हीं का स्वरूप हैं। पूर्व चाक्षुष मन्वंतर के प्रलय के समय जो वेद शास्त्र प्रलय के साथ लीन हो गए थे, इन चार कुमारों के उन वेद शास्त्रों को हंसावतार से प्राप्त किया। नारद मुनि को इन्होंने ही समस्त वेद शास्त्रों से अवगत करवाया, तदनंतर उन्होंने अन्य ऋषियों को वेदों का उपदेश दिया। इन्हें आत्मा तत्त्व का पूर्ण ज्ञान था। वैवस्वत मन्वंतर में इन्हीं पांच वर्ष के बालकों ने सनातन धर्म ज्ञान प्रदान किया और निवृति धर्म के प्रवर्तक आचार्य हुए। वे सर्वदा ही दिगंबर भेष धारण किए रहते थे!
ज्ञान प्रदान तथा वेद शास्त्रों के उपदेश, भगवान विष्णु की भक्ति और सनातन धर्म हेतु इन कुमारों ने तीनों लोकों में भ्रमण किया। इन्होंने भगवान विष्णु को समर्पित कई स्त्रोत लिखे।
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