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7/15/2021

महाराणा प्रताप के घोडा “चेतक” की कहानी | Chetak Horse

   
                           
   

महाराणा प्रताप के घोडा चेतक” की कहानी | Chetak Horse




Chetak Horse – चेतक महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम था। लेकिन इस घोड़े का नाम हमें इतिहासिक सूत्रों में नही दिखाई देता।


महाराणा प्रताप के घोडा “चेतक” की कहानी – Chetak Horse


कहा जाता है की चेतक बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था। हल्दीघाटी में अकबर के साथ युद्ध के समय चेतक महाराणा प्रताप का बड़ा सहयोगी था। उस समय चेतक ने अपनी जान दांव पर लगाकर 25 फुट गहरे दरिया से कूदकर महाराणा प्रताप की रक्षा की थी| हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप विजयी हुए लेकीन युद्ध में बुरी तरह घायल होने पर महाराणा प्रताप को रणभूमि छोड़नी पड़ी थी और अंत में इसी युद्धस्थल के पास चेतक घायल हो कर उसकी मृत्यु हो गयी।

हिंदी कवि श्याम पाण्डेय द्वारा लिखी गयी कविता “चेतक की वीरता” में चेतक का पूरा वर्णन दिया हुआ हैं| हल्दीघाटी में आज भी चेतक का मंदिर बना हुआ है और वहा चेतक के पराक्रम कथा वर्णित हुई है।

महाराणा प्रताप के साथ-साथ चेतन भी किसी सम्माननीय शक्सियत से कम नही था।

वास्तव में चेतक काफी उत्तेजित और फुर्तीला था और वो खुद अपने मालिक को ढूंडता था, चेतक ने महाराणा प्रताप को ही अपने मालक के रूप में चुना था। कहा जाता है की महाराणा प्रताप और चेतक के बीच एक गहरा संबंध था। वास्तव में यदि देखा जाए तो महाराणा प्रताप भी चेतक को बहुत चाहते थे।

वह केवल इमानदार और फुर्तीला ही नही बल्कि निडर और शक्तिशाली भी था।

उस समय चेतक की अपने मालिक के प्रति वफ़ादारी किसी दुसरे राजपूत शासक से भी ज्यादा बढ़कर थी। अपने मालिक कि अंतिम साँस तक वह उन्ही के साथ था और युद्धभूमी से भी वह अपने घायल महाराज को सुरक्षित रूप से वापिस ले आया था। इस बात को देखते हुए हमें इस बात को वर्तमान में मान ही लेना चाहिए की भले ही इंसान वफादार हो या ना हो, जानवर हमेशा वफादार ही होते है।


चेतक की वीरता पर कविता – Chetak Poem

                      “चेतक की वीरता”


रणबीच चौकड़ी भर-भर कर

चेतक बन गया निराला था

राणाप्रताप के घोड़े से

पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली

लेकर सवार उड जाता था

राणा की पुतली फिरी नहीं

तब तक चेतक मुड जाता था

गिरता न कभी चेतक तन पर

राणाप्रताप का कोड़ा था

वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर

वह आसमान का घोड़ा था

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं

वह वहीं रहा था यहाँ नहीं

थी जगह न कोई जहाँ नहीं

किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं

निर्भीक गया वह ढालों में

सरपट दौडा करबालों में

फँस गया शत्रु की चालों में

बढते नद सा वह लहर गया

फिर गया गया फिर ठहर गया

बिकराल बज्रमय बादल सा

अरि की सेना पर घहर गया।

भाला गिर गया गिरा निशंग

हय टापों से खन गया अंग

बैरी समाज रह गया दंग

घोड़े का ऐसा देख रंग

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