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7/20/2021

गौतम ऋषि, ( सप्तर्षियो मे से एक )

   
                           
   

गौतम ऋषि, ( सप्तर्षियो मे से एक 


ब्रह्मा के मानस पुत्र अंगिरा हुए और अंगिरा देव को ऋषि मारीच की बेटी सुरूपा व कर्दम ऋषि की बेटी स्वराट् और मनु ऋषि कन्या पथ्या ये तीनों विवाही गईं। सुरूपा के गर्भ से बृहस्पति, स्वराट् से गौतम, प्रबंध, वामदेव, उतथ्य और उशिर ये 5 पुत्र जन्मे। पथ्या के गर्भ से विष्णु, संवर्त, विचित, अयास्य, असिज, दीर्घतमा, सुधन्वा ये 7 पुत्र जन्मे। 

ऋग्वेद में उनके वंशधरों का उल्लेख मिलता है।


अतः गौतम ऋषि अंगिरा और स्वराट् के पुत्र हुए 


महर्षि गौतम सप्तर्षियों में से एक हैं। वे वैदिक काल के एक महर्षि एवं मन्त्रद्रष्टा थे। ऋग्वेद में उनके नाम से अनेक सूक्त हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार पत्नी अहिल्या थीं जो प्रातःकाल स्मरणीय पंच कन्याओं गिनी जाती हैं। अहिल्या ब्रह्मा की मानस पुत्री थी जो विश्व मे सुंदरता में अद्वितीय थी। हनुमान की माता अंजनी गौतम ऋषी और अहिल्या की पुत्री थी। 


दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने देवताओं द्वारा तिरस्कृत होने के बाद अपनी दीक्षा गौतम ऋषि से पूर्ण की थी। ऋषिओं के इर्श्या वश गोहत्या का झूठा आरोप लगाने के बाद बारह ज्योतिर्लिंगों मैं महत्वपूर्ण त्रयम्बकेश्वर महादेव नाशिक भी गौतम ऋषि की कठोर तपस्या का फल है जहाँ गंगा माता गौतमी अथवा गोदावरी नाम से प्रकट हुईं।


उत्तरप्रदेश की गोमती नदी भी ऋषि गौतम के ही नाम से विख्यात है।


इसके अतिरिक्त राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में स्तिथ गौतमेश्वर महादेव तीर्थ में स्तिथ मंदाकिनी गंगा कुंड के बारे में भी मान्यता है कि इसी कुंड में स्नान करने के पश्चात महर्षि गौतम को गौ हत्या के दोष से मुक्ति मिली थी इसके पश्चात महर्षि गौतम ने यहाँ महादेव की आराधना करके एक स्वयंभू शिवलिंग प्रकट किया था जो आज भी उन्ही के नाम पर गौतमेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है

गौतम जिन्हें 'अक्षपाद गौतम' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है, 'न्याय दर्शन' के प्रथम प्रवक्ता माने जाते हैं। इनकी पत्नी का नाम अहल्या और पुत्र तथा पुत्री के नाम क्रमश: शतानन्द व विजया थे। अक्षपाद गौतम ने 'न्याय दर्शन' का निर्माण तो शायद नहीं किया, पर यह कहा जा सकता है कि न्याय दर्शन का सूत्रबद्ध, व्यवस्थित रूप अक्षपाद के 'न्यायसूत्र' में ही पहली बार मिलता है। महर्षि गौतम परम तपस्वी एवं संयमी थे। महाराज वृद्धाश्व की पुत्री अहिल्या इनकी पत्नी थी, जो महर्षि के शाप से पाषाण बन गयी थी। त्रेता युग में भगवान श्रीराम की चरण-रज से अहिल्या का शापमोचन हुआ, जिससे वह पाषाण से पुन: ऋषि पत्नी बनी।





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