33 करोड़ देवी-देवता( 33 koti devta )
हमारे सनातन धर्म ग्रंथों में तैतीस कोटी ( तैतीस श्रेणी ) के देवी देवताओं का वर्णन मिलता है । जिसमे आठ वसु , ग्यारह रुद्र ,बारह आदित्य , इंद्र , प्रजापति मिलकर तैतीस कोटी देवता हुए । इनमे आठ वशु , धरती,जल , अग्नी, वायु,आकाश, चंद्र, सूर्य , नक्षत्र है (आप , ध्रुव,सोम,धर,अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास )है । इन्ही से शरीर का निर्माण होता है । ग्यारह रुद्र जिनसे शरीर चलता है इनके न होने से जीव मृत्य समान हो जाता है इनके नाम , प्राण, अपान, व्यान,समान, उदान , नाग, कूर्म, किरकल, देवदत्त, धनंजय ,जीवात्मा इनके संरक्षक भगवान शिव के अलग अलग स्वरूप है जिनके नाम शंभु, पिनाकी,गिरीश, प्राण, स्थाणु , भर्ग, भव ,सदाशिव , उपप्राण, शिव ,हर , शर्व , कपाली , है जिनसे शरीर की क्रियाएं नियंत्रित होती है ।
समय के बारहों महीने के स्वामी बारह आदित्य है जो हमारे शरीर के समय चक्र को दर्शाते है इनके नाम अंशुमान , आर्यमान, इंद्र , त्वष्टा , धातु , पजन्य , पूषा , भग , मित्र , वरुण , विवश्वमान , विष्णु है । इंद्र देव का अर्थ है जीव को ऊर्जा देने वाले , प्रजापति का अर्थ जिनके कारण , जन जीव औषधीय आदि उत्पन्न हुए अर्थात जो जो जन जीव को आगे बढ़ाए । यही हमारे तैतीस कोटी देवी देवता है । सृष्टि की सभी क्रियाओं को संचालित करने के लिए ये हमारे तैतीस श्रेणी के देवता हैं । हमारे शरीर के अंदर इनका प्रत्येक स्थान पर इनका नियंत्रण है लेकिन शरीर एक है । उसी प्रकार सभी देवताओं के मूल आदि परमात्मा सदाशिव महाविष्णु है । अतः हमे हमेशा परमात्मा का स्मरण करते रहना चाहिए। धर्म की सुरक्षा हेतु हमेशा तैयार रहना चाहिए । और सनातन धर्म संस्कृति को आगे बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए । क्योंकि सनातन धर्म अपनाने से ही विश्व का कल्याण होगा नही तो लोग आपस में ही कटते मरते रहेंगे ।
जय शिव शंकर हर हर महादेव
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