बसंत पंचमी की पौराणिक कथा
बसंत पंचमी को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. मान्यता है कि सृष्टि रचियता भगवान ब्रह्मा ने जीवों और मनुष्यों की रचना की थी. उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि वातावरण बिलकुल शांत हो और इसमें किसी की वाणी ना हो. यह सब करने के बाद भी ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं थे. सृष्टि की रचना के बाद से ही उन्हें सृष्टि सुनसान और निर्जन नजर आने लगी.
तब ब्रह्मा जी ने भगवान् विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का. कमंडल से धरती पर गिरने वाले जल से पृथ्वी पर कंपन हुऐ और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी(चार भुजाओं वाली) सुंदर स्त्री प्रकट हुई.
इस देवी के एक हाथ में वीणा और दुसरे हाथ में वर मुद्रा होती है बाकी अन्य हाथ में पुस्तक और माला थी. ब्रह्मा जी उस स्त्री से वीणा बजाने का अनुरोध किया. देवी के वीणा बजाने से संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त हुई. इसके बाद से देवी को 'सरस्वती' कहा गया.
इस देवी ने वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी दी इसलिए बसंत पंचमी के दिन घर में सरस्वती मां की पूजा भी की जाती है. इस दिन देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है.
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