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10/14/2022

जानलेवा मिरर्गी का रोग !

   
                           
   

जानलेवा मिरर्गी का रोग !


मिरगी एक ऐसा रोग है, जिसमें व्यक्ति अचानक जमीन पर गिर कर प्रायः अर्द्ध मूच्र्छितावस्था में रहता है। रोगी को इसका पूर्वाभास भी नहीं होता, कि उसे मिरगी का दौरा पड़ने वाला है।


 इसमें रोगी हांफता है, मुंह से झाग उगलता है। उसकी आंखें फटी-फटी सी और पलकें स्थिर हो जाती हैं तथा गर्दन अकड़ कर टेढ़ी हो जाती है। रोगी हाथ-पैर पटकता है। उसके दांत भिंच जाते हैं और मुट्ठियां कस जाती हैं। वह अजीब सी आवाज करने लगता है।

 

दौरे के समय रोगी को सांस लेने में भी कष्ट होता है। लेकिन 20-25 मिनट बाद रोगी की सांस ठीक चलने लगती है और रोगी होश में आ जाता है। कभी-कभी रोगी, होश आने पर, सो भी जाता है।


 प्राचीन आयुर्वेदिक आचार्यों के मतानुसार चिंता, क्रोध, शोक, क्षोभ आदि मानसिक संतापों से दूषित हुए वात, पित्त और कफ मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं, जिससे स्मरण शक्ति नष्ट हो कर मिरगी रोग बन जाता है। इसके अतिरिक्त अधिक शारीरिक और मानसिक श्रम, अधिक शराब एवं नशा, हस्त मैथुन आदि भी रोग के कारण हो सकते हैं। 


रोग की शुरुआत प्रायः संक्रामक बुखार, सिर में चोट और आंतों में अधिक कीड़े होने के बाद हो जाती है। आयुर्वेद के अनुसार मिरगी रोग चार प्रकार के होते हैंः--


 1. वात की मिरगी 

2. कफ की मिरगी

 3. पित्त की मिरगी

 4. सन्निपात की मिरगी। 


वात की मिरगी:---


यदि रोगी के मुंह से झाग आये, दांत भिंच जाएं, कंपकपी छूटे, सांस तेजी से चले, तो वात की मिरगी रोग समझें। 


कफ की मिरगी:----


 यदि रोगी की त्वचा का रंग सफेद हो जाए, मुंह से सफेद झाग निकले, आंखों और मुंह का रंग भी सफेद हो, तो कफ का मिरगी रोग समझें।


 पित्त की मिरगी:---


 यदि रोगी के मुंह से पीला-पीला झाग आए, शरीर का रंग पीला पड़ जाए, तो उसे पित्त की मिरगी का रोगी समझना चाहिए। 


सन्निपात की मिरगी:----


 यदि उपर्युक्त सारे लक्षण पाये जाएं, तो सन्निपात का मिरगी रोग समझना चाहिए। 


इसके अतिरिक्त दुर्घटनावश भी रोग हो सकता है। यदि शरीर अधिक फड़के और भौंहें चढ़ी रहें, आंखे पलट जाएं, तो ऐसी स्थिति को असाध्य मिरगी कहते हैं। इसमें रोगी के बचने की उम्मीद कम हो जाती है। मिरगी का दौरा पड़ने पर रोगी के कसे हुए कपड़े ढीले कर दें। उसे मोटे गद्दे पर सुला दें। तकिया लगा कर सिर ऊंचा कर दें। याद रखें, रोगी को पेट के बल न लिटाएं। इससे रोगी की सांस रुकने के कारण मृत्यु भी हो सकती है। दांतों के बीच कपड़े की पोटली लगा दें। चेहरे पर ठंडे जल की पोटली लगा दें और मरीज को हवादार जगह पर रखें।


तिल और लहसुन खिलाएं !


 घरेलू उपचार तिलों के साथ लहसन खिलाएं। इससे वात का मिरगी रोग धीरे-धीरे जाता रहता है।

 दूध के साथ शतावरी खाने से साधारण पित्त का मिरगी रोग दूर होता है।

 शहद में ब्राह्मी का रस मिला कर लेने से कफ का मिरगी रोग ठीक हो जाता है।

 राई और सरसों को गो मूत्र में पीस कर शरीर पर लेप करें। इससे हर प्रकार की मिरगी में लाभ मिलता है। 

मीठे अनार के रस में मिस्री मिला कर पिलाने से बेहोशी दूर होती है।

 नींबू के साथ हींग चूसने से मिरगी का दौरा नहीं पड़ता। अकरवारा को सिरके मे मिला कर शहद के साथ प्रतिदिन प्रातः काल चाटने से मिरगी दूर होती है।

 लहसुन की कलियों को दूध में उबाल कर पीने से पुरानी मिरगी भी दूर हो जाती है। लहसुन कूट कर सुंघाने से मिरगी के दौरे की बेहोशी दूर होती है।

 वच को बारीक पीस कर ब्राह्मी अथवा शंखाहुली के रस, या पुराने गुड़ के साथ लें, तो मिरगी रोग में आराम मिलता है।

 पीपल, चित्रक, पीपरामूल, त्रिफला, चव्य, सौंठ वायविडंग, सेंधा नमक, अजवायन, धनिया, सफेद जीरा, सभी को बराबर मात्रा में पीस कर चूर्ण बना लें और सुबह-शाम पानी के साथ लेने से मिरगी रोग में लाभ होता है।


 सावधानियां मिरगी के रोगी को प्रायः---


 सभी प्रकार के नशें को त्याग देना चाहिए। उसे चाय-काफी, उत्तेजक द्रव्य, मांसाहारी भोजन से बिलकुल दूर रहना चाहिए और सोने से दो घंटे पूर्व भोजन कर लेना चाहिए।


 विवाहित स्त्री-पुरुषों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और अविवाहित स्त्री-पुरुष कृत्रिम मैथुन से बचें। उन्हें रोग पैदा करने वाले सभी मूल कारणों से बचना चाहिए, जैसे कब्ज, थकान, तनाव और मनोविकार।





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