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10/01/2022

माँ कात्यायनी

   
                           
   

माँ कात्यायनी


नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। 


नवरात्र पूजन के छठें दिन माँ कात्यायनी के पूजन, मंत्र जाप, ध्यान, स्तोत्र, कवच पाठ करने से बृहस्पति ग्रह से जुड़ी समस्त पीड़ाएं दूर हो जाती है। जिससे जीवन में संयम, धैर्य और प्रसिद्धि में वृद्धि में होती है। आर्थिक स्थिति में सुधार आता है। धन की प्राप्ति होती है।


श्लोक :-


चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन।


कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥


इनका स्वरूप अत्यंत ही भव्य एवं दिव्य है। इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला, और भास्वर है। इनकी चार भुजाएं हैं। माता जी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रामें है तथा नीचे वाला वरमुद्रामें, बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।


ध्यान :-


वन्दे वांछित मनोरथार्थचन्द्रार्घकृतशेखराम्।


सिंहारूढचतुर्भुजाकात्यायनी यशस्वनीम्॥


स्वर्णवर्णाआज्ञाचक्रस्थितांषष्ठम्दुर्गा त्रिनेत्राम।


वराभीतंकरांषगपदधरांकात्यायनसुतांभजामि॥


पटाम्बरपरिधानांस्मेरमुखींनानालंकारभूषिताम्।


मंजीर हार केयुरकिंकिणिरत्नकुण्डलमण्डिताम्।।


प्रसन्नवंदनापज्जवाधरांकातंकपोलातुगकुचाम्।


कमनीयांलावण्यांत्रिवलीविभूषितनिम्न नाभिम्॥


स्तोत्र :-


कंचनाभां कराभयंपदमधरामुकुटोज्वलां।


स्मेरमुखीशिवपत्नीकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥


पटाम्बरपरिधानांनानालंकारभूषितां।


सिंहास्थितांपदमहस्तांकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥


परमदंदमयीदेवि परब्रह्म परमात्मा।


परमशक्ति,परमभक्ति्कात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥


विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्वहर्ती,विश्वप्रीता।


विश्वाचितां,विश्वातीताकात्यायनसुतेनमोअस्तुते॥


कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।


कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥


कांकारहíषणीकां धनदाधनमासना।


कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥


कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।


कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥


कवच :-


कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।


ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य संदरी॥


कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥


मंत्र :-


या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥


अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कात्यायनी -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।


प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह मंत्र सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका यथाशक्ति जाप करना चाहिए।


माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है -


कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।


कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं।


ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं आश्विन  कृष्ण  चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था।


माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।


माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।


माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।


नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं।





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