वाल्मीकि रामायण मे लव कुश कांड की सत्यता का विश्लेषण ।
🕊सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रवि: ।
सत्येन वाति वायुष्च सर्वम् सत्ये प्रतिष्ठीतम्।।🕊
भावार्थ * सत्य के कारण से ही धरती टिकी है, सूर्य भी सत्य के बल पर तप्ता है, वायु भी सत्य बल पर ही बहती है, इसलिए संसार मे सत्य की ही प्रतिष्ठा है।
दोस्तों! राम🙏 राम।
जो लव कुश कांड, भगवान वाल्मीकि जी ने कभी लिखा ही नहीं, बल्कि किसी षड्यंत्र कारी ने इसे रामायण मे जोड़ दिया है, उसको तर्क द्वारा खारिज करेंगे।
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झूठ कभी न कभी पकडा ही जाता है और सच् सौ पर्दों को चीर कर भी बाहर आता रहा है। इसलिए सत्य को कभी पराजित नहीं किया जा सकता।
अब लिखने वाले ने पूरी होशियारी से श्लोक आदि लिख कर समाज को ये जचा तो दिया कि ये भगवान वाल्मीकि जी ने लिखा है लेकिन उसकी इस कारीगिरी की हवा उसके द्वारा लिखा ये श्लोक ही निकाल देता है। कि सब झूठ गढ़ा गया है।
श्लोक इस तरह से है
🕊प्रेचेत सोह दश्मा: पुत्रो रघवनंदन।
मनसा कर्मणा वाचा भूतपूर्व न किल्वि षम।। 🕊
अब इस श्लोक का भाव देखिये
वाल्मीकि जी प्रभु श्रीराम जी से कह रहे हैं कि
है राम🙏 तुम जानते नहीं, मै ऋषि प्रेचेता का दसवां पुत्र वाल्मीकि हूँ और मैने जीवन मे कभी पापाचार नहीं किया कभी मिथ्या भाषण नहीं किया। इसलिए मेरे कहने से इन लव कुश जो आपके पुत्र हैं, इन्हे स्वीकार करें।
कितना हास्य स्पद् है ये सब?
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क्या भगवान वाल्मीकि जी ऐसा कह सकते थे?
इस तरह तो कोई झूठा आदमी ही अपने को सच्चा साबित करने के लिए तरह तरह से पिता आदि के नाम का सहारा लेकर अपनी बात मनवाने की कोशिस करता है।
आप सब जानते हैं कि भगवान वाल्मीकि जी के साथ चित्र कूट मे प्रभु श्रीराम जी ने कितने ही साल बिताए।
वह प्रभु श्रीराम जी द्वारा किये सभी यज्ञ आदि मे सम्मिलित होते थे, क्योंकि उनका आश्रम चित्र कूट से हजारों किलोमीटर दूर तो नहीं था।
जब भरत जी चित्रकूट आये तब भी वाल्मीकि जी वहाँ उपस्थित थे।
कहने का मतलब ये है कि प्रभु श्रीराम जी व भगवान वाल्मीकि जी एक दूसरे के चिर परिचित थे।
और इससे भी बढ़कर जब प्रभु अयोध्या से वन आ रहे थे तब वाल्मीकि जी से राम🙏 जी मिलकर ये कहते हैं
🕊तुम त्रिकाल दर्शी मुनि नाथा।
विश्व बदर जिमी तुम्हरे हाथा।। 🕊
अर्थात आप संसार मे तीनों कालों के ज्ञाता हैं, भविष्य मे क्या होगा, आप इसको पहले ही जानते हैं।
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इस चौपाई से तो ये सिद्ध हो रहा है कि राम जी इन ऋषि वर को मिलने से पहले ही जान गए थे, कि इनमें कितने गुण हैं।
यानी महाराज दशरथ और सब परिवार मे इनका जिकर चलता रहता होगा।
फिर वाल्मीकि जी को ये कहने की जरूरत क्यों पड़ती कि मै अमुक बाप का बेटा हूँ, और मेरे बारे मे ये सब प्रसिद्ध है।
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ये तो व्ही बात हुई कि कोई बीस साल तक अपने दादा के साथ रहकर विदेश आदि चला जाय और फिर जब दस साल बाद लौटा तो उसका दादा उसे कहे कि बेटा विश्वास कर मै ही तेरा दादा हूँ
इस तरह सिद्ध हो जाता है कि जितना ये श्लोक नकली है उतना ही ये किसी द्वारा परोसा गया लव कुश कांड।
सनातन धर्म को नीचा दिखाने के लिए ये सब खेल किया गया है जितनी जल्दी समझ जाओगे, हमारे धर्म की सेहत के लिए अच्छा रहेगा।
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मै मानता हूँ कि बचपन से आज तक सुनते आ रहे किस्से कहानियों को नकारना एक दम बहुत मुश्किल होता है। लेकिन सच जानना भी हम सब के लिए बहुत जरूरी है। कि शंबुक वध व सीता त्याग जैसी घटनाएं कभी हुई ही नहीं, ये सब षड्यंत्र किया गया है।
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यहाँ पाठकों को ये जान लेना भी जरूरी है कि लव कुश की शिक्षा दीक्षा वाल्मीकि आश्रम मे ही हुई, क्योंकि राम व सीता जी का ये दृढ़ मत था कि उनके बच्चों के लिए वाल्मीकि जी से बढ़कर कोई अन्य गुरु हो ही नही सकता था, जो लव कुश का सर्वांगीण विकास करने मे सक्षम होता,
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इस पर फिर कभी लिखूँगा कि ये घटना कैसे घटित हुई होगी।
आज के लिए इतना ही, आपके कोमेन्ट्स के इंतजार मे
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