श्रीनाथद्वारा
जिसके सामने औरंगजेब भी हुआ नतमस्तक..!!"
नाथद्वारा कस्बा राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है। यहां श्री नाथ जी मंदिर स्थित है, जो कि पुष्टिमार्गीय वैष्णव सम्प्रदाय का प्रधान (प्रमुख) पीठ है। नाथद्वारा का शाब्दिक अर्थ श्रीनाथ जी का द्वार होता है। श्री कृष्ण यहां श्रीनाथ जी के नाम से विख्यात हैं। काले पत्थर की बनी श्रीनाथ जी की इस मूर्ति की स्थापना 1669 में की गई थी।
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यहां श्रद्धाभाव के साथ दूर-दूर से भक्त दर्शन के लिए आते हैं। नाथद्वारा कस्बे की तंग गलियों के बीच स्थित श्रीनाथ जी के प्रति लोगों की इतनी गहरी आस्था और श्रद्धाभाव है कि साल भर यहां भक्तों का हुजूम लगा रहता है। यूं तो श्रीनाथ जी का मंदिर भारत् के लगभग हर शहर में और दुनिया में कई जगह हैं, लेकिन श्रीनाथ जी के हर मंदिर में ऐसी भीड़ एकत्रित नहीं होती है। दरअसल कुछ ज्योतिषियों और वास्तुविदों का मानना है कि इसका कारण मंदिर की भौगोलिक स्थिति और बनावट है। जो लोग श्रीनाथ जी में आस्था रखते हैं वे ये मानते हैं कि यहां जो भी मन्नत मांगी जाती है, वो जरूर पूरी होती है।
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जनश्रुतिः एक बार औरंगजेब श्रीनाथद्वारा मन्दिर को ध्वस्त करने आया था तो मन्दिर की सीढ़ियां चढ़ते ही उसकी नेत्र-ज्योति नष्ट हो गई। वह अंधा होकर रास्ता टटोलने लगा और भयभीत होकर उसने वहीं से भगवान श्रीनाथ जी से अपने कुकृत्यों की क्षमा मांगी। इसके बाद उसकी नेत्र ज्योति वापस आ गई। इस घटना के बाद औरंगजेब सेना सहित वापस लौट गया। जब यह घटना उसकी मां को पता लगी तो उसने एक हीरा मूर्ति के श्रंगार के लिए अर्पित किया। जो श्रीनाथ मूर्ति की ठोढ़ी पर लगा है। एेसा माना जाता है कि हमले से पूर्व भी औरंगजेब ने सेना भेजकर मन्दिर नष्ट करने की चेष्टा की थी, लेकिन जब उसकी सेना खमनेर आकर बनारस नदी के तट पर रुकी तो श्रीनाथद्वारा मन्दिर से भौरों ने बड़ी मात्रा में निकलकर सेना पर हमला कर दिया और और सेना को वापस लौटना पड़ा इस हमले से क्रुद्ध होकर ही औरंगजेब स्वयं हमला करने आया जिसे बाद में माफी मांगकर लौटना पड़ा। उस समय औरंगजेब ने जो फरमान जारी किया उसका शिलालेख आज भी साक्ष्य के रूप में मन्दिर के मुख्य द्वार पर लगा है।
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मन्दिर में 125 मन चावल का भोग नित्य लगता है। क्षेत्र के वनवासी बंधु भोग प्राप्त करते हैं जिसे "लूटना" कहा जाता है। इसके अतिरिक्त 56 प्रकार के भोग भी श्रीनाथ जी को अर्पित किए जाते हैं। भोग में उपयोग होने वाली कस्तूरी को सोने की चक्की से पीसा जाता है । भंडार घर में घी-तेल का भण्डार रहता है। मन्दिर गृह को नन्द बाबा का भवन कहा जाता है ! लगभग दर्जन भर राज्यों के 30 गांव मन्दिर को दान में मिले हुए हैं। यहां बिना जाति-भेद के दर्शन सुलभ हैं।
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गौरतलब है कि श्रीनाथ द्वारा में श्रीनाथ जी की जो मूर्ति है वह पहले गोवर्धन पर्वत पर विराजमान थी। मुगल शासक औरंगजेब के डर से कि कहीं वह मूर्ति को नष्ट भ्रष्ट न कर दे। आचार्य दामोदरदास बृज क्षेत्र गोवर्धन पर्वत से से मेवाड़ लेकर आए थे। माना जाता है कि मार्ग में पड़ने वाली सभी रियासतों आगरा, किशनगढ़ कोटा, जोधपुर आदि के राजाओं से, इन्होंने प्रभु को अपने राज्य में प्रतिष्ठित कराने का आग्रह किया लेकिन औरंगजेब की डर से कोई भी शासक तैयार नहीं हो सका लेकिन मेवाड़ नरेश महाराजा राज सिंह ने वहां मूर्ति स्थापना करायी तथा श्रीनाथ जी की सेवा-पूजा के लिए सिहाड़ ग्राम समर्पित किया | साथ ही महाराजा राज सिंह ने औरंगजेब को चुनौतीपूर्ण स्वर में कहा था- "वह आए यहां, मंदिर तक पहुंचने से पहले उसे एक लाख" राजपूतों से निपटना होगा ।
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कैसे पहुंचे : बस सेवा-श्रीनाथद्वारा के लिए देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से बस सुविधा उपलब्ध है।
*रेल सेवा-*नाथद्वारा के निकटवर्ती रेल्वे स्टेशन मावली 28 और उदयपुर 48 तक देश के प्रमुख शहरों से रेल सेवा उपलब्ध है।
वायु सेवा- नाथद्वारा के निकटवर्ती हवाई अड्डे डबोक 48 से देश के प्रमुख शहरों तक आने- जाने के लिए वायुयान सेवा उपलब्ध है।
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