गोपेश्वर महादेव वृंदावन
भगवान् शिव से बड़ा कोई श्री विष्णु का भक्त नहीं और भगवान् विष्णु से बड़ा कोई श्री शिव का भक्त नहीं है, इसलिये भगवान् शिव सबसे बड़े वैष्णव और भगवान विष्णु सबसे बड़े शैव कहलाते हैं।
नौ साल के छोटे बालरूप में जब श्री कृष्ण ने महारास का उद्घोष किया तो वृन्दावन में पूरे ब्रह्माण्ड के तपस्वी प्राणियों में भयंकर हलचल मच गयी कि काश हमें भी इस महारास में शामिल होने का मौका मिल जाय।
दूर दूर से गोपियाँ जो की पूर्व जन्म में एक से बढ़कर एक ऋषि, मुनि, तपस्वी, योगी, भक्त थे, महारास में शामिल होने के लिए आतुरता से दौड़ें आये, महारास में शामिल होने वालों की योग्यता को परखने की जिम्मेदारी थी, श्री ललिता सखी की, जो स्वयं श्री राधाजी की प्राणप्रिय सखी थीं और उन्ही की स्वरूपा भी थीं।
हमेशा एकान्त में रहकर कठोर तपस्या करने वाले भगवान् शिव को जब पता चला की श्री कृष्ण महारास शुरू करने जा रहें हैं तो वो भी अत्यन्त खुश होकर, तुरन्त अपनी तपस्या छोड़ पहुंचे श्री वृन्दावन धाम और बड़े आराम से सभी गोपियों के साथ रास स्थल में प्रवेश करने लगे, पर द्वार पर ही उन्हें श्री ललिता सखी ने रोक दिया और बोली कि हे महाप्रभु, रास में सम्मिलित होने के लिए स्त्रीत्व जरूरी है।
तब भोलेनाथ ने तुरन्त कहा की ठीक है तो हमें स्त्री बना दो, तब ललिता सखी ने भोलेनाथ का गोपी वेश में श्रृंगार किया और उनके कान में श्री राधाकृष्ण के युगल मन्त्र की दीक्षा दी, चूँकि भोलेनाथ के सिर की जटा और दाढ़ी मूंछ बड़ी बड़ी थी इसलिए ललिता सखी ने उनके सिर पर बड़ा सा घूँघट डाल दिया जिससे किसी को उनकी दाढ़ी मूँछ दिखायी न दे।
महादेव भोलेनाथ के अति बलिष्ठ और बेहद लम्बे चौड़े शरीर की वजह से वो सब गोपियों से एकदम अलग और विचित्र गोपी लग रहे थे, जिसकी वजह से हर गोपी उनको बड़े आश्चर्य से देख रही थी, महादेव को लगा की कहीं श्री कृष्ण उन्हें पहचान ना लें, इसलिये वे सारी गोपियों की भीड़ में सबसे पीछे जाकर खड़े हो गए।
अब श्री कृष्ण भी ठहरे मजाकिया स्वाभाव के और उन्हें पता तो चल ही चुका था की स्वयं भोले भण्डारी यहाँ पधार चुके हैं, तब उन्होंने विनोद लेने के लिये कहा कि महारास सबसे पीछे से शुरू किया जायेगा।
इतना सुनते ही भोलेनाथ घबराये और घूँघट में ही दौड़ते दौड़ते सबसे आगे आकर खड़े हो गये, पर जैसे ही वो आगे आये वैसे ही श्री कृष्ण ने कहा की अब महारास सबसे आगे से शुरू होगा।
तब महादेव फिर दौड़कर पीछे पहुचें तो श्री कृष्ण ने फिर कहा रास पीछे से शुरू होगा तब महादेव फिर दौड़ कर आगे आये, इस तरह कुछ देर तक ऐसे ही आगे-पीछे चलता रहा और बाकी की सभी गोपियाँ आश्चर्य से खड़े होकर श्री कृष्ण और श्री महादेव के बीच की लीला देख रही थी।
वे यह सोच रही थीं कि ये कौन सी गोपी है जो डील डौल से तो भारी भरकम है, पर बार बार शर्माकर कभी आगे भाग रही है तो कभी पीछे और, जैसे लग रहा है श्री कृष्ण भी इसको जानबूझकर हैरान करने के लिए बार बार आगे पीछे का नाम ले रहें हों, कुछ देर बाद श्री कृष्ण ने कहा कि महारास सबसे पहले इस चंचल गोपी से शुरू होगा जो स्थिर बैठ ही नहीं रही है।
यह कहकर श्री कृष्ण ने भोलेनाथ का घूंघट हटा दिया और आनन्द से उद्घोष किया, 'आओ गोपेश्वर महादेव!' आपका इस महारास में स्वागत है, और उसके बाद जो महाउत्सव ऐसा हुआ की ऋषि-महर्षि भी हाथ जोड़कर नेति-नेति कहते रहे, इस महारास के महासुख को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, तब से आज तक भगवान् शिवशंकर वृन्दावन में गोपेश्वर रूप में ही निवास करते हैं।
वृन्दावन के गोपेश्वर महादेव मन्दिर में जहाँ उनका रोज शाम को गोपी रूप में नित्य रास के लिये श्रृंगार किया जाता है।
श्री गोपेश्वर महादेव का दर्शन और इनकी इस कथा का चिन्तन करने से श्री कृष्ण की भक्ति में प्रगाढ़ता आती है और इस कलियुग में भक्ति ही वो सबसे सुलभ तरीका है जो इस लोक के साथ परलोक में भी सुख प्रदान करता हैं।
🙏🌹।जय श्री गोपेश्वर महादेव ।।🌹🙏
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts,please let me know