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5/02/2022

ग्रहों से उत्पन्न होने वाले रोग यदि जन्मकुंडली में यह ग्रह खराब हो तो निम्न रोग उत्पन्न कर सकते है

   
                           
   

ग्रहों से उत्पन्न होने वाले रोग यदि जन्म कुंडली में यह ग्रह खराब हो तो निम्नरोग उत्पन्न कर सकते है




सूर्य की बीमारी :


* व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है।

* दिमाग समेत शरीर का दायां भाग सूर्य से प्रभावित होता है।

* सूर्य के अशुभ होने पर शरीर में अकड़न आ जाती है।

* मुंह में थूक बना रहता है।

* दिल का रोग हो जाता है, जैसे धड़कन का कम-ज्यादा होना।

* मुंह और दांतों में तकलीफ हो जाती है।

* बेहोशी का रोग हो जाता है।

* सिरदर्द बना रहता है।


चंद्र ग्रह से होती यह बीमारी:


* चन्द्र में मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है।

* मिर्गी का रोग।

* पागलपन।

* बेहोशी।

* फेफड़े संबंधी रोग।

* मासिक धर्म गड़बड़ाना।

* स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।

* मानसिक तनाव और मन में घबराहट।

* तरह-तरह की शंका और अनिश्चित भय।

* सर्दी-जुकाम बना रहता है।

* व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं।


मंगल देता यह बीमारी:


* नेत्र रोग।

* उच्च रक्तचाप।

* वात रोग।

* गठिया रोग।

* फोड़े-फुंसी होते हैं।

* जख्मी या चोट।

* बार-बार बुखार आता रहता है।

* शरीर में कंपन होता रहता है।

* गुर्दे में पथरी हो जाती है।

* आदमी की शारीरिक ताकत कम हो जाती है।

* एक आंख से दिखना बंद हो सकता है।

* शरीर के जोड़ काम नहीं करते हैं।

* मंगल से रक्त संबंधी बीमारी होती है। रक्त की कमी या अशुद्धि हो जाती है।

* बच्चे पैदा करने में तकलीफ। हो भी जाते हैं तो बच्चे जन्म होकर मर जाते हैं।

 


बुध ग्रह की बीमारी.:


*तुतलाहट।

*सूंघने की शक्ति क्षीण हो जाती है।

*समय पूर्व ही दांतों का खराब होना।

*मित्र से संबंधों का बिगड़ना।

*अशुभ हो तो बहन, बुआ और मौसी पर विपत्ति आना।

*नौकरी या व्यापार में नुकसान होना।

*संभोग की शक्ति क्षीण होना।

*व्यर्थ की बदनामी होती है।

*हमेशा घूमते रहना, ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में।

*कोने का अकेला मकान जिसके आसपास किसी का मकान न हो।

अगले पन्ने पर, बृहस्पति ग्रह से होती कौन-सी बीमारी, जानि ए


गुरु की बीमारी :


*गुरु के बुरे प्रभाव से धरती की आबोहवा बदल जाती है। उसी प्रकार व्यक्ति के शरीर की हवा भी बुरा प्रभाव देने लगती है।

*इससे श्वास रोग, वायु विकार, फेफड़ों में दर्द आदि होने लगता है।

*कुंडली में गुरु-शनि, गुरु-राहु और गुरु-बुध जब मिलते हैं तो अस्थमा, दमा, श्वास आदि के रोग, गर्दन, नाक या सिर में दर्द भी होने लगता है।

*इसके अलावा गुरु की राहु, शनि और बुध के साथ युति अनुसार भी बीमारियां होती हैं, जैसे- पेचिश, रीढ़ की हड्डी में दर्द, कब्ज, रक्त विकार, कानदर्द, पेट फूलना, जिगर में खराबी आदि।

अगले पन्ने पर, शुक्र ग्रह से होती कौन-सी बीमारी, जानि ए


शुक्र की बीमारी :


* घर की दक्षिण-पूर्व दिशा को वास्तु अनुसार ठीक करवाएं।

* शरीर में गाल, ठुड्डी और नसों से शुक्र का संबंध माना जाता है।

* शुक्र के खराब होने से वीर्य की कमी भी हो जाती है। इससे किसी भी प्रकार का यौन रोग हो सकता है या व्यक्ति में कामेच्छा समाप्त हो जाती है।

* लगातार अंगूठे में दर्द का रहना या बिना रोग के ही अंगूठे का बेकार हो जाना शुक्र के खराब होने की निशानी है।

* शुक्र के खराब होने से शरीर में त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न होने लगते हैं।

* अंतड़ियों के रोग।

* गुर्दे का दर्द

* पांव में तकलीफ आदि।

अगले पन्ने पर, शनि से होती कौन-सी बीमारी, जानि ए


शनि की बीमारी :


* शनि का संबंध मुख्‍य रूप से दृष्टि, बाल, भवें और कनपटी से होता है।

* समय पूर्व आंखें कमजोर होने लगती हैं और भवों के बाल झड़ जाते हैं।

* कनपटी की नसों में दर्द बना रहता है।

* समय पूर्व ही सिर के बाल झड़ जाते हैं।

* फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं और तब सांस लेने में तकलीफ होती है।

* हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, तब जोड़ों का दर्द भी पैदा हो जाता है।

* रक्त की कमी और रक्त में बदबू बढ़ जाती है।

* पेट संबंधी रोग या पेट का फूलना।

* सिर की नसों में तनाव।

* अनावश्यक चिंता और घबराहट बढ़ जाती है।


राहु की बीमारी :


* गैस प्रॉब्लम।

* बाल झड़ना

* उदर रोग।

* बवासीर।

* पागलपन।

* राजयक्ष्मा रोग।

* निरंतर मानसिक तनाव बना रहेगा।

* नाखून अपने आप ही टूटने लगते हैं।

* मस्तिष्क में पीड़ा और दर्द बना रहता है।

* राहु व्यक्ति को पागलखाने, दवाखाने या जेलखाने भेज सकता है।

* राहु अचानक से भी कोई बड़ी बीमारी पैदा कर देता है और व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

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केतु की बीमारी :


* पेशाब की बीमारी।

* संतान उत्पति में रुकावट।

* सिर के बाल झड़ जाते हैं।

* शरीर की नसों में कमजोरी आ जाती है।

* केतु के अशुभ प्रभाव से चर्म रोग होता है।

* कान खराब हो जाता है या सुनने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है।

* कान, रीढ़, घुटने, लिंग, जोड़ आदि में समस्या उत्पन्न हो जाती है।


( नोट- उपरोक्त लेख केवल सामान्य जानकारी हेतु है )

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