श्मशान की सिद्ध भैरवी ( भाग--14 )
परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन गुरुदेव पण्डित अरुण कुमार शर्मा काशी की अद्भुत अलौकिक अध्यात्म-ज्ञानधारा में पावन अवगाहन
पूज्यपाद गुरुदेव के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन
इन तमाम घटनाओं को मैंने तारानाथ भट्टाचार्य को बतलाया तो वह एकबारगी स्तब्ध रह गए। काफी देर मौन बैठे न जाने क्या-क्या सोचते रहे, फिर बोले--तुम तो जानते ही हो कि काशी प्राचीन काल से ही विभिन्न धार्मिक एवं आध्यात्मिक सम्प्रदायों का केंद्र-स्थली रही है। भारत में जितने धर्म और जितनी संस्कृतियाँ हैं, उन्हीं में से एक तान्त्रिक धर्म और संस्कृति भी है। यदि प्रागैतिहासिक काल को देखें तो यह स्पष्ट होता है कि इस धरती पर तंत्र का प्रादुर्भाव और उसका प्रचार-प्रसार *यक्ष* जाति द्वारा हुआ है और उसका केंद्र भारत ही रहा है।
आर्यों के पहले से यहाँ अनेक इतर जातियां थीं, उन्हीं में से एक यक्ष जाति भी थी। यक्षों की अपनी एक स्वतंत्र परम्परा थी जिसमें शक्ति की प्रधानता थी। यदि उनकी परम्परा को हम 'शक्तिवाद' कहें तो अतिशयोक्ति न होगी।
यक्षों ने शक्ति को नारी के रूप में परिकल्पित किया। उनकी साधना में नारी प्रधान थी, क्योंकि नारी में ही उन्होंने अपनी शक्ति की झलक देखी। उनके लिए नारी 'विश्वशक्ति' थी और विश्ववासना की प्रतिमूर्ति थी।
*वासना के नाश के लिए वासना का ही सहारा लेना पड़ता है और उसके लिए नारी आवश्यक है।*
यक्षों की इसी विचारधारा ने कुण्डलिनी, योग, चक्र, पद्म, नाड़ी-ज्ञान, बलि, शक्ति के रूप में अनेक देवियों की उपासना, शक्ति-पूजा, गुह्य-पूजा, योनि-पूजा, श्मशान के महत्व आदि को जन्म दिया।
कालान्तर में इसी विचारधारा के आधार पर यक्षों का शक्तिवाद छः भागों में बँट गया। वे ही छः भाग तंत्र के छः प्रमुख संप्रदाय हैं--1- शैव संप्रदाय, 2- वीर शैव संप्रदाय, 3- शाक्त संप्रदाय, 4- कौल संप्रदाय, 5- अघोर संप्रदाय और 6- कापालिक संप्रदाय। इन सभी सम्प्रदायों की कई-कई शाखाएं भी हैं।
------:कापालिक सम्प्रदाय:------ **********************************
इनमें से कापालिक सम्प्रदाय अपनी भयानक तामसिक साधना के लिए प्रसिद्ध है। चक्र-पूजा, योनि-पूजा, गुह्य-पूजा, नर-बलि, पशु-बलि, श्मशान-साधना, चिता-साधना आदि के द्वारा अनुष्ठित होने वाली कापालिक साधना का मुख्य लक्ष्य-शव-साधना होता है जिसकी सहायता से कापालिक सम्प्रदाय के साधक मानवेतर शक्ति-सम्पन्न सूक्ष्म शरीरधारी आत्माओं से संपर्क करते हैं।
यह सुनकर मैंने कहा--स्वर्णा ने मुझे इस सम्बन्ध में विस्तार से बहुत कुछ बतलाया है। इतना ही नहीं, उसने पारलौकिक जगत में निवास करने वाली मानवेतर शक्ति-सम्पन्न आत्माओं के सहयोग से मेरे सामने ऐसे-ऐसे चमत्कारों की भी सृष्टि की जिसने मुझे हतप्रभ कर दिया। सच पूछिये तो ये सब देख-सुनकर ही मेरे मन में तंत्र-मन्त्र, भूत-प्रेत के प्रति रूचि और जिज्ञासा जगी।
कापालिक साधना-स्थलियां देश-समाज से अलग क्यों ?
भट्टाचार्य महोदय ने आगे बतलाया--सभी साधनाओं में शव-साधना सबसे अधिक भयानक और तामसिक है। उसमें पग-पग पर जान जाने का खतरा रहता है। इसके आलावा बहुत रहस्यमयी भी है वह। उसका रहस्य, 'रहस्य' ही बना रहे, उसकी गुह्यता और गोपनीयता की रक्षा रहे, किसी प्रकार का बिघ्न न पैदा हो और किसी प्रकार का आक्षेप-विक्षेप भी न हो--इसलिए कापालिक सम्प्रदाय के अनुयायी अपनी साधना-स्थली देश-समाज से एकदम अलग रखते हैं। उनके रहस्यमय क्रिया-कलापों पर किसी की नज़र न पड़े--इसके लिए वे बराबर सतर्क भी रहा करते हैं।
क्रमशः--
नोध : इस लेख में दी गई सभी बातें सामान्य जानकारी के लिए है हमारी पोस्ट इस लेख की कोई पुष्टि नहीं करता
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