1/06/2023
माघमास विशेष
〰️〰️🌼〰️〰️
माघ एक ऐसा माह जो भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास व दसवां सौरमास कहलाता है। दरअसल मघा नक्षत्र युक्त पूर्णिमा होने के कारण यह महीना माघ का महीना कहलाता है। वैसे तो इस मास का हर दिन पर्व के समान जाता है। लेकिन कुछ खास दिनों का खास महत्व भी इस महीने में हैं। उत्तर भारत में 06 जनवरी को पौष पूर्णिमा के साथ ही माघ स्नान की शुरुआत हो जायेगी जिसका समापन 05 फरवरी को माघी पूर्णिमा के दिन होगा।
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार
माघं तु नियतो मासमेकभक्तेन य: क्षिपेत्।
श्रीमत्कुले ज्ञातिमध्ये स महत्त्वं प्रपद्यते।।
अर्थात जो माघ मास में नियमपूर्वक एक समय भोजन करता है, वह धनवान कुल में जन्म लेकर अपने कुटुम्बजनों में महत्व को प्राप्त होता है।
पद्मपुराण, उत्तरपर्व में कहा गया है
ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी।
मासानां च तथा माघः श्रेष्ठः सर्वेषु कर्मसु।।
अर्थात जैसे ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चन्द्रमा श्रेष्ठ है, उसी प्रकार महीनों में माघ मास श्रेष्ठ है।
माघ में मूली का त्याग करना चाहिए। देवता और पितर को भी मूली अर्पण न करें।
माघ में तिलों का दान जरूर जरूर करना चाहिए। विशेषतः तिलों से भरकर ताम्बे का पात्र दान देना चाहिए।
महाभारत अनुशासन पर्व के 66वें अध्याय के अनुसार
माघ मासे तिलान् यस्तु ब्राह्मणेभ्यः प्रयच्छति। सर्वसत्वसमकीर्णं नरकं स न पश्यति॥
जो माघ मास में ब्राह्मणों को तिल दान करता है, वह समस्त जन्तुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता।
श्री हरि नारायण को माघ मास अत्यंत प्रिय है। वस्तुत: यह मास प्रातः स्नान (माघ स्नान), कल्पवास, पूजा-जप-तप, अनुष्ठान, भगवद्भक्ति, साधु-संतों की कृपा प्राप्त करने का उत्तम मास है। माघ मास की विशिष्टता का वर्णन करते हुए महामुनि वशिष्ठ ने कहा है, ‘जिस प्रकार चंद्रमा को देखकर कमलिनी तथा सूर्य को देखकर कमल प्रस्फुटित और पल्लवित होता है, उसी प्रकार माघ मास में साधु-संतों, महर्षियों के सानिध्य से मानव बुद्धि पुष्पित, पल्लवित और प्रफुल्लित होती है। यानी प्राणी को आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। ‘
माघ मास में प्रतिदिन माघ महात्म्य पाठ के एक अध्याय पोस्ट किया जाएगा।
माघ माहात्म्य – प्रथम अध्याय
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
एक समय श्री सूतजी ने अपने गुरु श्री व्यासजी से कहा कि गुरुदेव कृपा करके आप मुझे से माघ मास का माहात्म्य कहिए क्योंकि मैं आपका शिष्य हूँ. व्यासजी कहने लगे कि रघुवंश के राजा दिलीप एक समय यज्ञ के स्नान के पश्चात पैरों में जूते और सुंदर वस्त्र पहनकर शिकार की सामग्री से युक्त, कवच और शोभायमान आभूषण पहने हुए अपने सिपाहियों से घिरे हुए जंगल में शिकार खेलने के लिए अपनी नगरी से बाहर निकले. उनके सिपाही जंगल में शिकार के लिए मृग, व्याघ्र, सिंह आदि जंतुओं की तलाश में इधर-उधर फिरने लगे।
उस वन में वनस्थली अत्यंत शोभा को प्राप्त हो रही थी, कहीं-2 मृगों के झुंड फिरते थे. कहीं गीदड़ अपना भयंकर शब्द कर रहे थे. कहीं गैंडों का समूह हाथियों के समान फिर रहा था. कहीं वृक्षों के कोटरों में बैठे हुए उल्लू अपना भयानक शब्द कर रहे थे. कहीं सिंहों के पदचिन्हों के साथ घायल मृगों के रक्त से भूमि लाल हो रही थी. कहीं दूध से भरी थनों वाली सुंदर भैंसे फिर रही थी, कहीं पर सुगंधित पुष्प, हरी-भरी लताएँ वन की शोभा को बढ़ा रही थी. कहीं बड़े-बड़े पेड़ खड़े थे तो कहीं पर उन पेड़ों पर बड़े-बड़े अजगर और उनकी केंचुलियाँ भी पड़ी हुई थी।
उसी समय राजा के सिपाहियों के बाजे की आवाज सुनकर एक मृग वन में से निकलकर भागने लगा और बड़ी-बड़ी चौकड़ियाँ भरता हुआ आगे बढ़ा. राजा ने उसके पीछे अपना घोड़ा दौड़ाया परन्तु मृग पूरी शक्ति से भागने लगा. मृग कांटेदार वृक्षों के एक जंगल में घुसा और राजा ने भी उसके पीछे वन में प्रवेश किया परंतु दूर जाकर मृग, राजा की दृष्टि से ओझल होकर निकल गया. राजा निर्जन वन में अपने सैनिकों सहित प्यास के मारे अति दुखी हो गया. दोपहर के समय अधिक मार्ग चलने से सैनिक थक गये और घोड़े रुक गए. कुछ देर बाद राजा ने एक बड़ा भारी सुंदर सरोवर देखा जिसके किनारों पर घने वृक्ष थे. इसका जल सज्जनों के हृदय के समान स्वच्छ और पवित्र था।
सरोवर का जल लहरों से बड़ा सुंदर लगता था. जल में अनेक प्रकार के जल-जंतु मछलियाँ आदि स्वच्छंदता से इधर-उधर फिर रही थी. दुष्टों के समान निर्दयी चित्त वाले मगरमच्छ भी थे. किसी-किसी जगह लोभी के समान सिमाल भी पड़ी हुई थी. जैसे विपत्ति में पड़े हुए लोगों को दुखों को हरने वाले दानी पुरुष के समान यह सरोवर अपने जल से सबको सुखी करता था, जैसे मेघ चातक के दुख को हरता है, इस सरोवर को देखकर राजा की थकावट दूर हो गई. रात्रि को राजा ने वहीं विश्राम किया और सैनिक पहरा देने लगे और चारों तरफ फैल गे।
रात के अंतिम समय में शूकरों के एक झुंड ने आकर सरोवर में पानी पीया और कमल के झुंड के पास आया तब शिकारियों ने सावधान होकर शूकरों पर आक्रमण किया और उनको मारकर पृथ्वी पर गिरा दिया. उस समय सब शिकारी कोलाहल करते हुए बड़ी प्रसन्नता के साथ राजा के पास गए और राजा प्रभात हुआ देखकर उनके साथ ही अपनी नगरी की तरफ चल पड़ा ।
जिसका शरीर तपस्या और नियमों के कारण बिलकुल सूख गया था, जो मृगछाला और वल्कल पहने हुए था और नख रोम तथा केश धारण किए हुए था, राजा ने ऎसे घोर तपस्वी को देखकर बड़े आश्चर्य से उसको प्रणाम किया और हाथ जोड़कर खड़ा हो गया. तपस्वी ने राजा से कहा कि हे राजन! इस पुण्य शुभ माघ में इस सरोवर को छोड़कर तुम यहाँ से क्यों जाने की इच्छा करते हो तब राजा कहने लगा कि महात्मन्! मैं तो माघ मास में स्नान के फल को कुछ भी नहीं जानता. कृपा करके आप विस्तारपूर्वक मुझको बताइए ।
क्रमशः...
अगले लेख में माघ मास महात्म्य द्वितीय अध्याय पोस्ट किया जाएगा।
Recommended Articles
- आस्था
गणपति के वाहन मुषक की विभिन्न कथायेFeb 08, 2023
गणपति के वाहन मुषक की विभिन्न कथाये 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि आश्रम बनाकर तप करते थे. उनकी पतिव्रता पत्नी मनोमयी इतनी...
- आस्था
गणेश जी का विवाह किस से और कैसे हुआ और उनके विवाह में क्या रुकावटें आई...?Feb 08, 2023
गणेश जी का विवाह किस से और कैसे हुआ और उनके विवाह में क्या रुकावटें आई...?〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र गणेश जी की पू...
- आस्था
सुबह उठ कर भूमि-वंदन क्यों करना चाहिए ?Feb 07, 2023
सुबह उठ कर भूमि-वंदन क्यों करना चाहिए ?शास्त्रों में मनुष्य को प्रात:काल उठने के बाद धरती माता की वंदना करके ही भूमि पर पैर रखने का विधान किया गया है ...
- आस्था
शवयात्रा के पीछे "राम नाम सत्य है" ऐसा क्यों बोला जाता है :–Jan 28, 2023
*🚩शवयात्रा के पीछे "राम नाम सत्य है" ऐसा क्यों बोला जाता है :–**एक समय कि बात जब तुलसीदास जी अपने गांव में रहते थे वो हमेशा श्री राम कि भक्ति मे लीन ...
Labels:
आस्था
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts,please let me know